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हर क्रिया के साथ, हम एक तीर लक्ष्य की ओर निशाना साध रहे हैं। क्या हम हर बार कहते हैं “अरे निशाने पर सही नहीं गया! क्या मैं इसे फिर से कर सकता हूं?”
बातचीत पिछली रात शुरू हुई थी, जैसे कई अन्य बातचीत होती हैं, पूरी तरह से निर्दोष बातचीत। घर के रास्ते पर, मुझे असहजता का एहसास हुआ। उन शब्दों पर विचार करते हुए जो मैंने पहले अपनी दोस्त से साझा किए थे, मुझे लगा कि क्या मैं वही पुराना संकेत महसूस कर रही हूं जो शायद पवित्र आत्मा की ओर से मुझे मिल रहा है। रात के अँधेरे में भी ईश्वर का आत्मा मुझे सलाह देता है, जिसे स्तोत्र 16:7 में वर्णित किया गया है? “मैं अपने परामर्शदाता ईश्वर को धन्य कहता हूँ। रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” गेराज में गाड़ी लगाते हुए, मैंने तुरंत उस विचार को नकार दिया… आखिरकार, यह महिला कुछ अन्य महिलाओं के साथ कुछ समस्या का सामना कर रही थी, इसलिए उसने उन समस्याओं को लेकर मुझसे संपर्क किया, और मैं अपनी प्रतिक्रिया में सहानुभूति और समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी।
अगली सुबह, हालांकि, यह स्पष्ट था कि स्तोत्रकार का अनुभव अब मेरा था: प्रभु वास्तव में “मेरा परामर्शदाता ईश्वर मुझे परामर्श देता है; रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” मुझे कुछ साल पहले शब्दों की शक्ति के बारे में मैंने जो सीखा था, जागते ही वह तुरंत याद आया। हाँ, जो कुछ मैंने पिछली रात साझा किया था, वह सत्य था। यह उस संदर्भ में सहायक भी था, जो मेरी इस व्यक्ति के साथ संबंधों के संदर्भ में था। मेरी प्रतिक्रिया प्रेरणादायक नहीं थी! अफसोस, इसे आवश्यक भी नहीं कहा जा सकता था! सौभाग्य से, मेरा आंकलन सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, क्योंकि मेरी टिप्पणियों को दयालु माना जा सकता था, क्योंकि जब हम अपनी दोस्त की चिंताओं पर चर्चा कर रहे थे, तब मैंने इन महिलाओं के उन सुंदर गुणों को याद किया।
जैसे हम में से अधिकांश किसी न किसी विशेष प्रकार का आइस क्रीम या अन्य पसंदीदा भोजन के स्वाद का बार-बार आनंद लेते हैं, वैसे ही हम में से कुछ के पास एक विशेष पाप होता है जिसका बार-बार स्वाद लेने का हमारा मन करता है। (एक कहानी याद आती है कि एक व्यक्ति पुरोहित के पास जाकर हर बार पाप स्वीकार में यह कहता है कि वह अशुद्ध विचारों में उलझा हुआ था…पुरोहित पूछते हैं: “क्या आपने उन विचारों के साथ रहकर पाप किया ?” पाप स्वीकार करनेवाला व्यक्ति जवाब देता है: “नहीं, लेकिन उन विचारों ने मेरे साथ रहकर पाप किया होगा!”) मैंने महसूस किया कि मैंने अपने विशेष ‘स्वाद’ वाले पाप के सामने समर्पण कर दिया था, जिसे मैं अक्सर स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी उसे दोहराती रहती थी… लेकिन जैसा कि कहानी में उस आदमी के पापस्वीकार से हमें हंसी आती है, उसी तरह मेरे पापस्वीकार के बारे में सोचकर मुझसे उस तरह की हंसी नहीं निकलती!
अपने इस द्वंद्व पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि समान स्थिति में क्या कोई और इस तरह की सोच रख सकते हैं… किसी और का ‘पसंदीदा पाप’ क्या हो सकता है? क्या उन्होंने भी उसे बार-बार ईश्वर, पुरोहित या यहां तक कि किसी ऐसे दोस्त के सामने, जिसे वे विश्वास करते हैं, इस तरह बार बार पाप स्वीकार किया होगा,?
बचपन से बड़े होने के पल
बाइबिल में ‘पाप’ शब्द का यूनानी अनुवाद ‘हमार्टानो’ है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति तीर चला रहा है, लेकिन निशाना चूक जाता है। जो व्यक्ति निशाने से चूकता था, उसे पापी कहा जाता था। मेरी सारी कोशिशों के बावजूद, मैं भी निशाने से चूक गयी थी!
उस सुबह ईश्वर से बात करने के बाद, मैंने अपनी दोस्त को संदेश भेजा। माफी मांगने के लिए टाइप करते हुए एक ऐसा विचार जो मेरे मन में आया उसे भी साझा करने के बाद, मुझे अंततः अपने ‘हमार्टानो’ की जड़ समझ में आई। मैंने अपने संदेश में लिखा: “मेरे शब्दों का उपयोग करने और लोगों के साथ कहानियाँ और बातचीत साझा करने की मस्ती मुझ पर हावी थी, जिसके कारण मुझे अनावश्यक और प्रेरणा न देनेवाले कार्यों के लिए इसका उपयोग करने की अपनी इच्छाओं को मैं रोक नहीं पाती थी।” मैंने संदेश समाप्त करते हुए अपनी दोस्त से कहा कि अगर मैं भविष्य में इन ‘सीमाओं’ से बाहर जाऊं, तो वह मुझे जवाबदेह ठहराए।
मुझे जल्द ही जवाब में एक संदेश मिला: “चाहे हम कितने भी समय से येशु के साथ चल रहे हों, हमारे पास हमेशा और प्रगति करने के अवसर होते हैं। तुम माफ़ किए गए हो! मैं सहमत हूँ कि हमारी बातचीत जितनी देर तक चली, उतनी लंबी नहीं होनी चाहिए थी, जिससे हम एक खतरनाक क्षेत्र में पहुंच गए थे। मैं उन परिस्थितियों के प्रति अधिक सचेत रहने की पूरी कोशिश करूंगी और जरूरत पड़ने पर तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगी, और तुम्हारे लिए भी वही करने की उम्मीद करती हूं। प्रभु का धन्यवाद कि उसने हमें अपनी कृपा और दया से दिखाया, और हमें यह समझाया कि हमें कहां बेहतर करने की आवश्यकता है।”
मेरी दोस्त की कृपालु प्रतिक्रिया और ईमानदारी की सराहना करते हुए, मुझे ‘बेहतर करने’ की प्रेरणा मिली! मुझे एहसास हुआ कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जिसे हम अपने सामान्य प्रलोभन में शामिल होकर या उसे बढ़ावा देकर पोषित कर रहे हैं, इसलिए इस परिणामी व्यवहार की जड़ तक पहुंचना अनिवार्य है। पवित्र आत्मा से यह जड़ हमारे सामने प्रकट करने के लिए कहने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हम इस क्षेत्र में बार-बार निशाना क्यों चूकते हैं।
हमारे साथ अतीत में क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे अंदर एक खालीपन पैदा हो गया था, जिसे हम अपने पाप के स्वाद से भरना चाहते हैं? इस भोग-विलास से हम किस ज़रूरत या इच्छा को पूरा कर रहे हैं? क्या हमारे टूटेपन के कारण कोई घाव सड़ रहा है, जिसे भरने की ज़रूरत है? हम किस तरह की स्वस्थ प्रतिक्रिया पर विचार कर सकते हैं, जिससे न केवल दूसरों को चोट पहुँचने से रोका जा सके, बल्कि हम अपनी कमज़ोरियों में खुद के प्रति करुणा और अनुग्रह भी दिखा सकें? यह जानते हुए कि हमें ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना है, दूसरों से प्रेम करने की कोशिश करने से खुद से भी प्रेम करने की ज़रूरत बढ़ती है, है न?
बोयें, उगाएं और छांटें
कभी-कभी, हम सालों तक एक ही व्यवहार में बने रहते हैं। मेरी दोस्त के अन्दर जवाब देने का साहस था, लेकिन बहुत से लोगों के पास ऐसा साहस नहीं होता है, इस कारण, हम ऐसे पैटर्न में बने रहते हैं जो पवित्र आत्मा के प्रयासों को सीमित करते हैं ताकि हम मसीह की प्रतिछाया के अनुरूप बन सकें। हम बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जब तक हम पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं, शायद किसी और को अपना जवाबदेही के भागीदार बनाने के द्वारा, हम हार मान सकते हैं और अपनी पसंद के स्वाद पर वापस जा सकते हैं। चाहे वह रॉकी रोड आइसक्रीम हो, या मेरे द्वारा अनावश्यक शब्दों का चयन, प्रभु चाहते हैं कि हम जानें कि यदि हम उनकी आत्मा को हमें अन्य विकल्पों की ओर ले जाने देते हैं तो हमारा जीवन और हमारे आस-पास के अन्य लोगों का जीवन कितना अधिक सुखद हो सकता है ।
मुझे पता था कि जिस प्रवृत्ति में मैं इतनी आसानी से फंस गयी थी, उसको बदलने का तरीका खोजने की मुझे ज़रूरत है। जब मेरी दोस्त ने देखा कि मैं फिर से उस परिचित रास्ते पर चलना शुरू कर रही हूँ, तब मैंने उससे जवाबदेह होने में मेरी मदद करने के लिए कहा। चूँकि पाप से बचने के हमारे सभी प्रयास येशु के चरित्र का बेहतर अनुकरण करने की ओर ले जाते हैं, इसलिए गलाती 5:22-23 मेरे मन में आया। मैं पाप के अपने विशेष स्वाद के बजाय आत्मा के फलों में से किसी एक के साथ अपनी भूख को संतुष्ट करना चुन सकती थी। प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, भलाई, ईमानदारी, सौम्यता और आत्म-संयम के फल उत्पन्न करना येशु मसीह के समान बनने केलिए हमारे प्रयासों में पवित्र आत्मा के साथ हमारी भागीदारी का प्रमाण है। अभ्यास से परिपूर्णता नहीं मिलती, लेकिन यह प्रगति जरूर करता है! इन गुणों में से किसी एक का अभ्यास करने की दिशा में अपने इरादे को निर्देशित करके मुझे पता था कि मैं अंततः धार्मिकता का फल देखूंगी। प्रत्येक फल एक बीज बोने से शुरू होता है, फिर अंततः जब तक कि हम सही प्रकार का फल नहीं देखते, तब तक खाद देकर, उगाकर और छंटाई की जाती है।
इस बीच, मैं अपने मन को अनुस्मारकों से खाद देना शुरू करूँगी, ऐसी कहावत के द्वारा: “शब्द तीर की तरह होते हैं; एक बार कमान से छोड़े जाने के बाद उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता।” जब मैं अपने व्यवहार की जड़ जानती हूँ, और मैंने अपनी मित्र को मुझे जवाबदेह ठहराने के लिए आमंत्रित किया है, तब मैं आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुन रही हूँ, जैसा कि मेरी मित्र ने बहुत ही संक्षेप में बताया, उसी तरह जब मुझे लगता है कि दूसरे लोग हमें ‘खतरनाक क्षेत्र में डाल रहे हैं’, तब उनके साथ बातचीत समाप्त कर रही हूँ।
यह देखने और चखने के बाद कि प्रभु अच्छे हैं, मैं जानती हूँ कि केवल वही वास्तव में मेरे दिल की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। स्तोत्र 16:8 आगे कहता है: “मैं प्रभु को सदा अपनी आँखों के सामने रखता हूँ; वह मेरे दाहिने विराजमान है, मैं विचलित नहीं होऊँगा।” मैं लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिए एक बार फिर अपना तीर उठाती हूँ। प्रभु की कृपा से, समय के साथ, मेरा तीर निशाने के करीब पहुँच जाएगा। येशु की शिष्य बनने के लिए प्रतिबद्ध, मैं अपने स्वर्ग रुपी घर का मार्ग येशु का अनुसरण करूँगी।
निश्चय ही तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। मैं चिरकाल तक प्रभु के मंदिर में निवास करूँगा। (स्तोत्र 23:6)
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क्या कोई आपको परेशान कर रहा है और आपको पागल बना रहा है? एलेन के पास स्टेनलेस स्टील जैसे कुछ ठोस सुझाव हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी रेगिस्तान में जहाँ मैं रहती हूँ, वहाँ औसतन 7 इंच प्रति वर्ष वर्षा होती है, इसलिए हम अपने लिए पानी एक गहरे कुएँ से प्राप्त करने पर निर्भर हैं। कुआं खोदने वालों को हमारे परिसर में पानी खोजने के लिए धरती में 600 फीट नीचे तक ड्रिल करना पड़ा। यह पीने के लिए सुरक्षित है, और यह स्रोत पाने के लिए हम बहुत आभारी हैं। लेकिन यह खनिजों से भरा बहुत कठोर पानी है। नतीजतन, यह हमारे सभी पाइपों, सिंक के नल, फिटिंग्स और शॉवर हेड्स में कैल्शियम की जमी हुई परत छोड़ देता है।
जब भी कोई पानी उबालता है, तो बर्तन पर एक सफ़ेद, चाक जैसी परत जम जाती है। अगर इसे साफ़ नहीं किया जाता है, तो हर बार उबालने पर यह परत जम जाती है और कैल्शियम धातु की एक मोटी परत जम जाती है जिसे हटाने के लिए छेनी की ज़रुरत और बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हम सालों से सिर्फ़ स्टेनलेस स्टील या कास्ट-आयरन के बर्तन रखते हैं ताकि हम स्क्रबर से रगड़कर मिनरल परत को हटा सकें। हर रसोई के सिंक पर एक स्टेनलेस स्टील का स्क्रबर होता है जिसका इस्तेमाल हम इस उद्देश्य के लिए करते हैं क्योंकि, जैसा कि हमारे एक पडोसी कहते हैं: “आप स्टेनलेस स्टील को सिर्फ़ स्टेनलेस स्टील से ही साफ़ कर सकते हैं।”
कभी-कभी जब मैं बर्तन साफ कर रही होती हूँ, तो मैं उस कहावत के बारे में सोचती हूँ जो कहती है: “जिस तरह लोहे से लोहां पजाया जाता है, मनुष्य से मनुष्य का सुधार होता है।” (सूक्ति ग्रन्थ 27:17) मैं सोचती हूँ कि कैसे परमेश्वर हमारे जीवन में मुश्किल लोगों का इस्तेमाल हमें साफ़ करने और हमारी खुरदरी त्वचा को चमकाने के लिए करते हैं। एक पुरोहित ने एक बार कहा था: “अगर आप संत बनना चाहते हैं, तो आपको किसी ऐसे व्यक्ति की उम्मीद करनी चाहिए जिसके साथ रहना मुश्किल हो। आपको उस तरह की पीड़ा की अपेक्षा करनी चाहिए और प्रेम करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।”
कड़ी मेहनत से हासिल सबक
मुझे एक व्यक्ति याद है जिसके साथ मुझे लंबे समय तक काम करना पड़ा था। वह मुझसे नफरत करता था और मेरी पीठ पीछे मेरे बारे में बुरी बातें करता था। वह कर्कश और चिड़चिड़ा था और उससे प्यार करना मेरे लिए बड़ा मुश्किल था। और मुझे कबूल करना चाहिए, मैंने भी उसके प्रति बहुत अच्छा काम नहीं किया। उसके व्यवहार ने मेरे दिल की कुछ कुरूपता और पाप को सतह पर ला दिया, और मैंने अपने कुछ करीबी दोस्तों से उसके बारे में शिकायत की।
काफी समय बाद, मैंने प्रार्थना करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि प्रभु मुझसे कह रहे हैं कि अगर मैं उन्हें सुनने के लिए तैयार हूँ तो उनके पास इस मुश्किल रिश्ते से मुझे सिखाने के लिए कुछ सबक हैं। जब मैंने अगले हफ़्तों में परमेश्वर की बात सुनने की कोशिश की, तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि प्रभु मुझ पर काम करने के लिए इस व्यक्ति का इस्तेमाल कर रहे थे! मैंने हमेशा सोचा था कि यह व्यक्ति समस्या है और परमेश्वर द्वारा इस पर गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है। लेकिन प्रभु मेरी प्रार्थना में मुझसे कह रहां था: “उसकी गलतियों पर ध्यान देना बंद करो। मैं उससे निपट लूँगा। चलो, तुम और मैं, अपनी कुछ कमियों पर काम करते हैं।” बस यह कह सकती हूँ कि यह बहुत विनम्र करने वाली बात थी।
“जैसे लोहा लोहे को तेज़ करता है, वैसे ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को तेज़ करता है।” जैसे-जैसे मैंने और स्पष्ट रूप से देखा कि प्रभु इस व्यक्ति का उपयोग मेरे कुछ पापों को उजागर करने के लिए कर रहां था ताकि मैं इसे स्वीकार कर सकूँ और खुद पर काम कर सकूँ, इसने उस व्यक्ति के साथ मेरे व्यवहार के तरीके को बदल दिया। मैंने धीरे-धीरे अपने व्यवहार और सोचने के तरीके को बदलना शुरू कर दिया, और अब पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो मैं देख सकती हूँ कि मैं उस रिश्ते की वजह से एक बेहतर और दयालु व्यक्ति बन गयी हूँ।
किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचें जिसके साथ अब आपका तालमेल बिठाना मुश्किल हो रहा है। इसे प्रार्थना में ले जाएँ और प्रभु से इस पर उसका दृष्टिकोण पूछें। प्रभु पूरी स्थिति को देखता है और सबसे अच्छी तरह जानता है कि क्या करने की ज़रूरत है। वह आपको बुद्धि देगा और आपको आगे का रास्ता दिखाएगा। लेकिन आप प्रभु के उत्तरों से आश्चर्यचकित हो जायेंगे।
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एलेन होगार्टी लॉर्ड्स रेंच कम्युनिटी के साथ आध्यात्मिक निर्देशिका, लेखिका और पूर्णकालिक मिशनरी के कार्य करती हैं। गरीबों के साथ उनके द्वारा किए जाने वाले काम के बारे में अधिक जानकारी के लिए: thelordsranchcommunity.com पर जाएँ

प्रश्न: इस साल के अंत में, मेरे भाई का दूसरे पुरुष से विवाह होने जा रहा है। मैं अपने भाई के बहुत करीब हूं, लेकिन मुझे पता है कि विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है। क्या मुझे उसकी शादी में शामिल होना चाहिए?
उत्तर: यह सवाल अब तेजी से महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, क्योंकि हमारे परिवार और दोस्तों में से कई लोग ऐसे जीवनशैली जी रहे हैं जो ईश्वर की प्रकट की हुई योजना से मेल नहीं खाती।
ऐसी उलझन गहरी चिंता का कारण बन सकती है क्योंकि हम अपने परिवार से प्यार करना और परिवार के उन सभी सदस्यों का समर्थन करना चाहते हैं, भले ही हम उनके निर्णयों से असहमत हों। इसी समय, हम जिस सत्य को जानते हैं उस सत्य को धोखा नहीं दे सकते, क्योंकि हमें विश्वास है कि ईश्वर की योजना वास्तविक खुशी की ओर ले जाती है।
कैथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा (अनुच्छेद 1868) इस पर चर्चा करती है, जब यह उन तरीकों के बारे में बात करती है जिनसे हम किसी और के पापपूर्ण निर्णय में सहयोग कर सकते हैं। हम तभी किसी और के पाप में भाग लेते हैं जब हम उस पापपूर्ण क्रिया की ‘सराहना या अनुमोदन’ करते हैं। जब कोई व्यक्ति हमारे कैथलिक विश्वास के खिलाफ की कोई जीवनशैली का चुनाव करता है, तो किसी भी तरह से उस निर्णय को बधाई देना या जश्न मनाना हमारे लिए नैतिक रूप से गलत होगा, क्योंकि यह ईश्वर के साथ उनके संबंध को नुकसान पहुँचाता है और उनके उद्धार को खतरे में डालता है।
तो, सबसे अच्छा कदम क्या होगा? मैं सिफारिश करूंगा कि आप अपने भाई के साथ ईमानदार बातचीत करें। उसके प्रति अपने गहरे प्रेम की भावना को आप व्यक्त करें और यह बताएं कि आप चाहते हैं कि उसके साथ आपका नजदीकी का रिश्ता बना रहे। साथ ही, उसे यह भी बताएं कि आपका विश्वास और आपकी अंतरात्मा आपको यह सिखाती है कि आप उन चीजों को अनुमोदित नहीं कर सकते जो आप जानते हैं कि गलत हैं। शादी में शामिल न होने, उपहार न भेजने, या उसे बधाई न देने का निर्णय लें, लेकिन उसे यह बताना सुनिश्चित करें कि आप फिर भी उसके लिए, उसकी सेवा में तैयार खड़े हैं। यह स्पष्ट करें कि यह ‘घृणा’ या ‘दुश्मनी’ से नहीं, बल्कि ईश्वर ने जिस विवाह को एक पवित्र संबंध के रूप में रचा है, जो एक पुरुष और एक महिला के बीच ही होना है, उस दृढ़ और अपरिवर्तनीय विश्वास के कारण आप उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते हैं।
यह आपके परिवार में संघर्ष और विवाद उत्पन्न कर सकता है, या नहीं भी कर सकता। लेकिन हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि येशु ने वादा किया था: “मैं शांति नहीं, बल्कि तलवार लेकर आया हूं”। येशु ने कहा कि किसी भी अन्य रिश्ते से ऊपर, चाहे वह परिवार और दोस्तों का ही क्यों न हो, हमें येशु का ही अनुगमन करना चाहिए। यह निश्चित रूप से उनकी कठिन शिक्षाओं में से एक है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि सत्य और प्रेम कभी एक-दूसरे के विरोधी नहीं होते, और अपने भाई से सच्चे प्रेम के लिए, आपको उसे उस सत्य के अनुसार प्रेम करना चाहिए जो मसीह प्रकट करते हैं।
यह भी कभी न भूलें कि प्रार्थना और उपवास की शक्ति बहुत बड़ी होती है। अपने भाई के साथ बातचीत से पहले प्रार्थना और उपवास करें ताकि उसका दिल आपकी सद्भावना के प्रति खुल सके, और बातचीत के बाद प्रार्थना और उपवास करें ताकि वह मसीह में गहरे रूपांतरण का अनुभव कर सके, क्योंकि येशु मसीह ही अकेले मानव हृदय की इच्छाओं को पूरा करते हैं।
अपने परिवार से ऊपर मसीह को चुनने से न डरें, और अपने परिवार से मसीह में और मसीह के माध्यम से प्रेम करना जारी रखें — भले ही आपके भाई की प्रतिक्रिया कैसी भी हो। डरिए मत, लेकिन सत्य में प्रेम करना जारी रखें।
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त्यागना आसान नहीं है…लेकिन अगर आप ऐसा करते हैं तो क्या होता है?
जब से मैं एक साल का हुआ था, तब से मैं एक शिशु पालक भवन में रह रहा था। जॉर्ज और हेज़ल, हमारे पालक माता-पिता, हममें से लगभग दस लोगों की देखभाल करते थे। हमारे पालक पिता एक आक्रामक व्यक्ति थे, और हम सभी उनसे डरते थे। हर समस्या का समाधान हिंसा के कृत्यों के माध्यम से किया जाता था; इससे भी अधिक भयानक बात यह थी कि अक्सर उसके निशाने पर मैं ही रहता था।
मैं गंभीर अस्थमा से पीड़ित हूँ। एक रात, जब मैं बिस्तर पर था, खाँस रहा था और साँस लेने में कठिनाई हो रही थी, वह मेरे कमरे में आया और मेरे ऊपर बैठ गया! उसने मुझे इतनी बुरी तरह पीटा कि मैं अपनी पीठ सहारे न झुक सकता था न हिल पाता था। बाद में उस रात को, जब सभी सो गए, मेरे पालक माता-पिता ने चुपके से मेरी पीठ का निरीक्षण किया; शीशे में मैंने न केवल अपनी पीठ का प्रतिबिंब देखा, बल्कि उनके चेहरों पर भी सदमा देखा। अगले दिन, दूसरे लड़कों ने देखा और कहा कि मेरा पीठ ऊपर से नीचे तक नीला-काला था। हालाँकि कुछ अधिकारी लोग कभी-कभी आकर हमारी जाँच करते थे, लेकिन हम उसके बारे में रिपोर्ट करने से बहुत डरते थे।
सबसे कठिन निर्णय
जब उसकी पत्नी गुजर गई, तो उसका आक्रामक व्यवहार और भी बढ़ गया। मारपीट और भी बदतर हो गई। एक दिन, उसने कोने में ले जाकर मुझसे कहा कि तुम अपनी बाँहें ऊपर उठाओ ताकि नीचे मुक्का मार सकूं ताकि कोई चोट के निशान न दिखें। मुझे याद भी नहीं कि यह किस बारे में था। मैं पंद्रह साल का लड़का था और इस बड़े, मजबूत काठ के आदमी के सामने खुद को शक्तिहीन महसूस कर रहा था। उसने मुझे बार-बार मुक्का मारा। फिर, उसने सीधे मेरी आँखों में देखा और मुझसे कुछ ऐसा कहा जिसने मेरी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी। मैं इसे कभी नहीं भूल पाऊँगा क्योंकि यह उन सभी मार-पीटों के दर्द से कहीं ज़्यादा था जो उसने मुझे दी थीं। उसने कहा कि जिस आदमी ने मुझे जन्म दिया था, उसे नपुंसक बना देना चाहिए था। अचानक, मेरे अंदर कुछ मीठी ताकत आ गयी। मुझे साफ याद है कि उसने अंदर जाने से पहले मुझसे वहीं रहने के लिए कहा था। उस पल, मैंने भागने और कभी वापस न आने का फैसला किया। उस रात बर्फबारी हो रही थी और मेरे पास सिर्फ़ एक जैकेट और एक जोड़ी जूते थे। मैं बस भाग गया।
जब मैं अपनी जैविक माँ से मिलने लंदन गया तो हालात और भी भयानक हो गए। हम वास्तव में एक दूसरे को नहीं जानते थे; हम इस कदर झगड़ते रहे कि मुझे घर से निकाल दिया गया। उस रात, मैं इधर-उधर भटकता रहा, क्योंकि मेरे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं थी। एक पल के लिए, मुझे लगा कि मेरे सामने दो विकल्प हैं – जीना या फिर इसे खत्म करना। इसे खत्म करना आसान था; मुझे मौत की चिंता नहीं थी। एक पल में मैं ने निर्णय लिया, मैंने खुद से कहा: “हाँ, मैं जीना चाहता हूँ।”
कुछ रातों के लिए, मैं अपने दोस्तों के घर पर रुका। एक जगह से दूसरी जगह जाते-जाते, मैं मैनचेस्टर में अपने पालक भाई निगेल से मिला। साथ बिताए महीनों में, वह मेरे लिए पिता जैसा बन गया था। मैंने उसके गैरेज में कारों की सफाई का काम शुरू कर दिया; सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। वह मेरी देखभाल करता था और मेरी निगरानी करता था, लेकिन एक दिन, जब हम जिम में थे, तो वह अचानक गिर पड़ा और मर गया। मैं तबाह हो गया और मैं अपने जीवन के सबसे गहरे अंधेरे में गिर गया।
सुधार की कोशिश
मेरी कोई आस्था नहीं थी। मैं ईश्वर के बारे में नहीं सोचता था। लेकिन एक दिन, मुझे अपने लेटरबॉक्स में एक वीडियो कैसेट मिला; यह येशु की जीवन कहानी के बारे में था। मैंने इसे कई बार देखा, और मुझे एहसास होने लगा कि मेरे आस-पास कोई मौजूद है। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मुझे एहसास हुआ कि ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता गहरा होता जा रहा है। ख्रीस्तीय बनने की इच्छा मुझमें और मजबूत होती गई और आखिरकार, मैंने बपतिस्मा ले लिया। मुझे याद है कि बपतिस्मा लेने के बाद मैं बहुत बड़ी मुस्कान के साथ लौटा था, मैं उस मुस्कान को छिपा नहीं सका।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं मध्यस्थ प्रार्थना करनेवाला बन गया, मैं ऐसे लोगों के लिए प्रार्थना करने लगा जो ऐसी ही परिस्थितियों में पले-बढ़े थे। और अद्भुत चीजें हुईं।
एक दिन, सुबह 5 बजे, मैं अपने कमरे में प्रार्थना कर रहा था। मेरे पालक पिता की छवि मेरे सामने आई। मेरा उनसे कोई संपर्क नहीं था, और मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि उनके साथ क्या हो रहा है। लेकिन मेरे अंदर एक ऐसी तीव्र इच्छा आ गयी जो मुझे उनसे मिलने के लिए प्रेरित कर रही थी। मैं उनसे मुलाक़ात को लेकर बहुत घबराया हुआ था; पिछली बार जब मैंने उन्हें देखा था, तब मैं सिर्फ़ एक बालक था, और वे मुझे पीट रहे थे।
मैं आखिरकार अस्पताल पहुँच गया। मैंने एक बड़े मज़बूत आदमी की कल्पना की थी, लेकिन वहाँ अस्पताल के बिस्तर पर एक कमज़ोर बूढ़ा आदमी था। एक पल के लिए, मुझे दुःख हुआ। मैंने अपनी पालक बहन से पूछा कि क्या मैं उनके लिए प्रार्थना कर सकता हूँ। तो, उसने उन्हें जगाया और बताया कि मैं उनके लिए प्रार्थना करने आया हूँ। उन्होंने हाँ कहा और वापस नींद में चले गए।
मैंने एक माफ़ी का कार्ड निकाला और उसे बिस्तर के किनारे में रख दिया। मेरे पास कुछ पवित्र जल था और मैंने अंतिम संस्कार की प्रार्थना पढ़ना शुरू कर दिया। कुछ अजीब हुआ। मैंने गीतों के माध्यम से प्रार्थना की और उनके सिर पर पानी छिड़का। मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया था। मैं अपने मन में यह कह रहा था: “येशु, क्या मुझे कुछ और करने की ज़रूरत है?” मैंने एक आवाज़ सुनी जो कह रही थी: “जिसने दुर्व्यवहार को झेला, वह व्यक्ति दुर्व्यवहार करने वाले के लिए प्रार्थना करता है और उसे मुक्त करता है।” फिर मुझे लगा, यह आवाज़ ईश्वर की ओर से आ रही होगी… और कौन ऐसा बोल सकता है?
जब आप कहते हैं: “तुमने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, लेकिन मैं तुम्हें माफ़ करना चाहता हूँ,” तो वह अदृश्य तार जो आपको दुर्व्यवहार करने वाले से जोड़ता है, उसी क्षण टूट जाता है। इसने मुझे उन सभी घावों से ठीक कर दिया जो मैंने अपनी किशोरावस्था के दौरान ढोए थे। जब मैंने उसे माफ़ कर दिया, तब उनघावों में से बहुत कुछ अस्तित्वहीन हो गया और उस क्षण से पिघल गया। ईश्वर ने उसे बचाने के लिए मेरा इस्तेमाल किया। यह अपने आप में एक चमत्कार है। यह मेरे लिए अभूतपूर्व था।
इसके कुछ समय बाद, मुझे एहसास हुआ कि मुझे किसी और को माफ़ करना चाहिए – मेरी जैविक माँ – मुझे त्याग देने, मेरे साथ दुर्व्यवहार करने और बाद में मुझे घर से निकाल देने के लिए मुझे उसे माफ़ करना चाहिए। जब मैं ने उसे माफ़ कर दिया, तब ऐसा लगा जैसे मैंने अपना सारा बोझ उतार दिया हो।
उसके बाद, मैंने एक ईश्वरीय जीवन जीना शुरू कर दिया।
क्षमा करें और आगे बढ़ें
ईश्वर कहता है: “यदि तुम मेरे नाम पर किसी को क्षमा करते हो, तो मैं भी उन्हें क्षमा करता हूँ।” ईश्वर न केवल हमें ऐसा करने की अनुमति देता है, बल्कि वह ऐसा करने में हमारी मदद भी करता है।
सच्चा मसीही होना बहुत कठिन है। मसीह का अनुसरण करना और मसीह जैसा बनना बहुत कठिन काम है। यह बहुत मुश्किलों से भरपूर यात्रा है, लेकिन यह सार्थक यात्रा है क्योंकि जब कोई आपके साथ कुछ करता है, तो आपके पास क्षमा के माध्यम से खुद को मुक्त करने की शक्ति होती है। जिस क्षण आपको चोट पहुँचाने वाले व्यक्ति को आप क्षमा करते हैं, उसी क्षण से आपका नया जीवन शुरू होता है। आप आने वाले आनंद और सुंदरता की प्रतीक्षा कर सकते हैं। इसलिए, मैं उन सभी से आग्रह करता हूँ जिस किसी ने आपके साथ गलत किया है यदि आप उस व्यक्ति के खिलाफ अपने मन में कुछ रखते हैं, तो उसे आप क्षमा करें।
माफ़ करना एक फैसला है। माफ़ करें। बाकी काम ईश्वर पर छोड़ दें।
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हानि अपने साथ अनिवार्य दुःख और पीड़ा लेकर आती है …….. लेकिन क्या यह टाली नहीं जा सकती है ?
छुट्टियों के बाद उदासीनता का मनोभाव आना असामान्य नहीं है और यह व्यक्तिगत हानि के समय में और भी अधिक पीड़ादायक हो सकता है। चाहे वह किसी प्रियजन या वफादार पालतू जानवर का अपेक्षित या अप्रत्याशित निधन हो, अलगाव, तलाक, पुरानी बीमारी, आघात, घर या नौकरी की हानि यह प्रत्येक स्थिति अपनी अपनी अलग अलग तरह की पीड़ा ला सकती है| हमें अपने शरीर, मन और आत्मा के बीच के संबंध को समझने का प्रयास करना चाहिए, चाहे हमारी उम्र जो भी हो। इन तीनों क्षेत्रों का सम्मानपूर्वक पोषण करना आवश्यक है, क्योंकि किसी एक पर हमारा ध्यान कितना जाता है, यह शेष दो पर भी प्रभाव डालता है। पर्याप्त आराम, संतुलित आहार, और आध्यात्मिक पोषण एक मज़बूत आधार हो सकता है, जो हमें कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद कर सकता है।
मृत्युशील प्राणी के रूप में, हम दुःख को संभालने की पूरी कोशिश करते हैं। दुःख से छिप जाने से काम नहीं चलता। इसे स्वीकार करना हानि के साथ जीने और रचनात्मक रूप से आगे बढ़ने का पहला कदम है। हालांकि, इसका साया लंबा और व्यापक होता है। दुःख को नियंत्रित करने की क्षमता समय और स्वीकार्यता के साथ आती है, लेकिन सबसे अधिक क्षमता विश्वास से आती है। आत्महत्या जैसी अचानक और बिना कारण की हानि और अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि परिस्थितियाँ स्थायी अपराधबोध को उकसा सकती हैं। सही दृष्टिकोण पाने में दृढ़ संकल्प, समय (शायद परामर्श भी), और सर्वज्ञ, सर्वदयालु ईश्वर में अटूट विश्वास की आवश्यकता होती है।
शोक करना स्वाभाविक है और यह हमें नई वास्तविकताओं के साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। हालांकि, भारी दुःख के समय में ‘वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना’ महत्वपूर्ण है। हम में से कई लोग अतीत में जीते हैं या भविष्य में क्या होगा, इसकी चिंता में डूबे रहते हैं। लेकिन जो लोग वास्तव में ईश्वर की समझ और दया में विश्वास करते हैं, वे किसी भी परिस्थिति में अपने जीवन में उद्देश्य खोज सकते हैं। आस्था हमें दिव्य विधान पर भरोसा करने और अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण तरीके से फिर से संवारने के रास्ते खोजने के लिए तैयार करती है।
कुछ भी स्थायी नहीं रहता
बादल हमेशा के लिए नहीं रहते, न ही धूप। कुछ समय के लिए बैठकर और वक्त निकालकर दो सूचियाँ बनाना मददगार हो सकता है। पहली सूची में, उन सभी चीजों को पहचानें जिनके लिए आप आभारी हैं। दूसरी सूची में, उन व्यक्तिगत रूप से फायदेमंद कार्यों को लिखें जिन्हें आप अगले छह महीनों में पूरा करने की उम्मीद करते हैं। सूची को फिर से देखें, सबसे महत्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता दें, और हर कार्य को पूरा करने की एक तारीख तय करें। ये कार्य कुछ भी हो सकते हैं, जैसे मनोरंजन के किसी कार्यक्रम में जाना या देशभर में किसी दोस्त या रिश्तेदार से मिलना। योजनाएँ बनाएं और बस उन्हें लागू करें। जो भी आप चुनें, वह आपको एक अधिक खुशी देने वाले स्थान पर ले जाएगा। आप धीरे धीरे अपने जीवन पर सक्रिय नियंत्रण लेना शुरू कर देंगे|
अपराधबोध मानव व्यवहार का एक सामान्य चालक है; जबकि यह स्वाभाविक है, यह आपके लिए कुछ अच्छा करने के रास्ते में नहीं आना चाहिए। आपकी खुशी उन लोगों में संक्रामक हो सकती है जो आपकी परवाह करते हैं, और यह भी आपके लिए एक इनाम है। यदि आपको प्रभु पर अपने चरवाहे के रूप में वास्तविक विश्वास है, तो आप अंत तक डटे रहेंगे।
क्या हानि के दर्द को संभालने की उम्मीद है? हां, है। किसी चीज़ का अंत कुछ और की शुरुआत हो सकता है। यदि हमारे पास विशवास है, तो हम कभी अकेले नहीं होते। हम कभी त्यागे नहीं जाते। हम सभी परमेश्वर के बच्चे हैं। हमारे पास परमेश्वर में विश्वास स्वीकार करने और उनकी चंगाई प्राप्त करने की उम्मीद रखने का विकल्प है। यह एक रात में नहीं होता, लेकिन यह हो सकता है और होता है। जब त्रासदी या हानि व्यक्तिगत बन जाती है, तो आस्था हमें उस कठिनता को स्वीकार करने में मदद कर सकती है। परमेश्वर का हाथ वहाँ है; अपने आप से बाहर निकलकर परमेश्वर से जुड़ने और उसकी दिव्य दया में विश्वास करने के लिए हमें केवल एक क्षण चाहिए।
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जॉन एफ. पी. कोल समर्पित अगुआ, शिक्षक और उद्यमी हैं। जो लोग अपने जीवन में हानि और शरीर की विकलांगता का सामना कर रहे हैं, जॉन उन व्यक्तियों के सहायक और सहानुभूतिपूर्ण समर्थक हैं। सेमी-रिटायरमेंट के बाद, जॉन और उनकी पत्नी शार्लेट अपने दो बच्चों और दो पोते-पोती के साथ न्यू जर्सी के ग्रामीण इलाके में रहते हैं।
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प्रश्न: मैं कुछ वर्षों से अवसाद से पीड़ित हूँ; दूसरे लोग कभी-कभी मुझसे कहते हैं कि यह विश्वास की कमी के कारण है। मुझे अक्सर ऐसा भी लगता है कि वे सही कह रहे हैं, क्योंकि मुझे प्रार्थना करना या यहाँ तक कि विश्वास पर टिके रहना भी मुश्किल लगता है। एक धार्मिक ईसाई के रूप में, मुझे इससे कैसे निपटना चाहिए?
उत्तर: मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक के बीच बहुत अधिक अंतरसम्बन्ध है। हम जो सोचते हैं वह हमारी आत्मा और हमारी आध्यात्मिक स्थिति को प्रभावित करता है, हमारी सोच अक्सर हमारी आंतरिक शांति और कल्याण को प्रभावित करती है।
ऐसा कहने के साथ, मुझे यह भी कहना पडेगा कि दोनों एक समान नहीं हैं। ईश्वर के बेहद करीब होना, यहां तक कि पवित्रता में बढ़ना, और फिर भी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होना पूरी तरह से संभव है। तो हम इन दोनों का अंतर कैसे जान सकते हैं?
ऐसी परिस्थिति में एक ईसाई परामर्शदाता या चिकित्सक, और एक आध्यात्मिक निर्देशक, दोनों बहुत मददगार हो सकते हैं। मानसिक बीमारी का खुद से निदान करना कठिन है – अधिकांश लोगों को मानसिक बीमारी के जड़ों को समझने के लिए, अपने जीवन के इन संघर्षों का मूल्यांकन या आंकलन करने के लिए एक ख्रीस्त-केंद्रित पेशेवर मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता होती है। अक्सर, अंतर्निहित मुद्दों से निपटने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक उपचार दोनों के संयोजन के माध्यम से संबोधित करने की आवश्यकता होती है।
मनोविज्ञानिक की मदद माँगने का मतलब यह नहीं कि उस बीमार व्यक्ति के विश्वास में कमी है! क्या हम लोग शारीरिक बीमारी को पेशेवर डॉक्टर से इलाज नहीं कराते हैं? क्या कैंसर से पीड़ित किसी व्यक्ति से कहा जाएगा कि उसने ‘पर्याप्त विश्वास के साथ चंगाई के लिए प्रार्थना नहीं की है?’ या जिसे बड़ी सर्जरी की आवश्यकता है, क्या हम उससे कहेंगे कि डॉक्टर के पास जाना विश्वास की कमी होगी? इसके विपरीत ही हमारा कार्य होता है। ईश्वर अक्सर डॉक्टरों और नर्सों के माध्यम से अपना उपचार करते हैं; यह मानसिक बीमारी के लिए उतना ही सच है जितना कि शारीरिक बीमारी के लिए।
मानसिक बीमारी असंख्य कारणों से हो सकती है- जैव रासायनिक असंतुलन, तनाव या आघात, अस्वस्थ विचार या सोच की शैली… । हमारा विश्वास यह मानता है कि ईश्वर अक्सर मनोवैज्ञानिक विज्ञान के माध्यम से हमें ठीक करने के लिए काम करता है! हालाँकि, मदद माँगने के अलावा, मैं तीन चीजों की सलाह देता हूँ जो उपचार लाने में मदद कर सकती हैं।
1. संस्कार और प्रार्थना जीवन
मानसिक बीमारी के कारण प्रार्थना करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन हमें लगातार प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना का अधिकांश हिस्सा बस ईश्वर के सम्मुख उपस्थित या प्रकट होना है! क्रूस के संत योहन अपनी आध्यात्मिक डायरी में दर्ज करते थे कि प्रार्थना के दौरान उनके साथ क्या हुआ, और कई सालों तक उन्होंने हर दिन केवल एक शब्द लिखा: “नादा” यानी “कुछ नहीं”। इस “कुछ नहीं” के बावजूद वे पवित्रता की ऊंचाइयों तक पहुँचने में सक्षम थे, जबकि उनकी प्रार्थना में कुछ भी नही हुआ! अगर हम आध्यात्मिक सूखेपन और खालीपन के बावजूद प्रार्थना के प्रति वफादार हैं, तो यह वास्तव में गहरी आस्था को दर्शाता है – क्योंकि इसका मतलब है कि हम वास्तव में विश्वास करते हैं क्योंकि हम जो जानते हैं उसके अनुसार कार्य कर रहे हैं (ईश्वर वास्तविक हैं और वे यहाँ हैं, इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ… भले ही मुझे कुछ भी महसूस न हो)।
बेशक, पाप स्वीकार और परम प्रसाद हमारे मानसिक जीवन के लिए भी बहुत मददगार हैं। पाप स्वीकार हमें अपराधबोध और शर्म से मुक्त करने में मदद करता है और परम प्रसाद ईश्वर के प्रेम के साथ एक शक्तिशाली मुलाक़ात या साक्षात्कार है। जैसा कि मदर तेरेसा ने एक बार कहा था: “क्रूस मुझे याद दिलाता है कि ईश्वर ने मुझे तब कितना प्यार किया था; परम प्रसाद या यूखरिस्त मुझे याद दिलाता है कि ईश्वर अब मुझसे कितना प्यार करता है।”
2. ईश्वर की प्रतिज्ञाओं की शक्ति
ईश्वर के सकारात्मक प्रतिज्ञाओं से हम अपनी ‘बदबूदार सोच’ को बदल सकते हैं। जब भी हम खुद को बेकार महसूस करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि “उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हमको चुना” (एफेसी 1:4)। अगर हमें लगता है कि जीवन हमें निराश कर रहा है, तो याद रखें कि “जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं, ईश्वर उनके कल्याण लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है” (रोमी 8:28)। अगर हम खुद को अकेला महसूस करते हैं, तो याद रखें कि प्रभु कहता है कि “मैं तुमको नहीं छोडूंगा। मैं तुमको कभी नहीं त्यागूंगा” (इब्रानी १३:5)। अगर हमें लगता है कि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, तो याद रखें कि हमारी सृष्टि ईश्वर की महिमा के लिए की गयी है (यशायाह 43:6-7) ताकि हम हमेशा उससे प्यार कर उसका आनंद ले सकें (मत्ती 22:37-38)। अपने जीवन को अपने विश्वास की सच्चाइयों पर आधारित करने से उन झूठों का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है जो अक्सर हमारे दिमाग को मानसिक बीमारी में फंसा देते हैं।
3. दया के कार्य
दया और परोपकार के कार्य करना हमारे मानसिक स्वास्थ्य को शक्तिशाली बढ़ावा देता है। कई बार, हम अवसाद, चिंता या दर्दनाक अनुभवों के माध्यम से ‘खुद में फंस’ सकते हैं; स्वयंसेवा हमें उस आत्मकेंद्रितता और स्वार्थता से बाहर निकलने में मदद करती है। विज्ञान ने साबित कर दिया है कि दूसरों के लिए अच्छा करने से डोपामाइन और एंडोर्फिन निकलते हैं, ऐसे रसायन जो कल्याण की भावना पैदा करते हैं। यह हमें अर्थ और उद्देश्य देता है और हमें दूसरों से जोड़ता है, जिससे तनाव कम होता है और हमें खुशी मिलती है। यह हमें ज़रूरतमंदों के साथ काम करने के लिए कृतज्ञता से भी भर देता है, क्योंकि यह हमें ईश्वर के आशीर्वाद का एहसास कराता है।
संक्षेप में, यह जरूरी नहीं कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आपके संघर्ष इस बात का संकेत हों कि आपमें विश्वास की कमी है। अपने आध्यात्मिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बेहतर बनाने के तरीके जानने के लिए आप निश्चित रूप से किसी ख्रीस्तीय चिकित्सक से मिलें तो बेहतर होगा। लेकिन यह भी याद रखें कि आपका विश्वास आपको मानसिक स्वास्थ्य से निपटने के लिए उपकरण दे सकता है। और भले ही आपके संघर्ष या समस्या जारी रहे, जान लें कि आपके दुखों को ईश्वर को एक बलिदान के रूप में अर्पित किया जा सकता है, और इस प्रक्रिया में आप ईश्वर को प्यार का उपहार देकर और अपने आपको पवित्र और स्वस्थ कर सकते हैं
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फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।

क्रिसमस के अवसर पर सभी के दिमाग में उपहार पाने की स्मृतियाँ ताजा हो जाती है, लेकिन क्या वास्तव में उपहार ही मायने रखता है?
कई साल पहले अपने बॉयफ्रेंड के साथ एक स्थानीय मसीही पुस्तक भण्डार में एक किताब के पन्ने पलटते समय, हम दोनों की नज़र एक विशेष तस्वीर पर पड़ी। यह येशु का एक बड़ा, रंगीन चित्र था, जिसका शीर्षक था हंसता मसीह (द लाफिंग क्राइस्ट); येशु का सिर थोड़ा पीछे झुका हुआ था, गहरे भूरे अस्त-व्यस्त बालों के बीच झुर्रीदार आँखें खुशी से चमक रही थीं! यह पूरी तरह से मंत्रमुग्ध करने वाला था! चित्र की उन आकर्षक आँखों के नीचे थोड़ी टेढ़ी मुस्कान को हमने ध्यान से देखा। ओह, ऐसा लगा कि यह चित्र हमें आमंत्रित कर रहा है, हमें स्वीकार कर रहा है, यह कितना आकर्षक है !
इस चित्र के प्रति हम दोनों की समानता से पसंद को समझते हुए, हमने उस उत्साह को साझा किया जो हम दोनों येशु नामक उस अनोखे व्यक्ति को पिछले कुछ वर्षों से जानते और भरोसा करते आए थे। हम दोनों को अपने-अपने घरों में येशु की मूर्तियों और तस्वीरों के साथ पाला गया था, लेकिन उन मूर्तियों में येशु को हमेशा गंभीर रूप में चित्रित किया गया था, किसी तरह जिस जीवन को हम जानते थे, उससे बिलकुल अलग। जबकि हम मानते थे कि इन छवियों में दर्शाया गया व्यक्ति वास्तव में इस धरती पर रहता था और जब हमें किसी चीज़ की ज़रूरत होती थी, तो हम उससे प्रार्थना भी करते थे, हमारा व्यक्तिगत विश्वास हाल ही में बहुत वास्तविक हो गया था… यहाँ तक कि जीवित भी।
इस कलाकार की छाप ने दर्शाया कि हम दोनों ने अपने जीवन में प्रभु को किस रूप में पाया – कोई ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसके साथ हम जीवन साझा कर सकते हैं, कोई ऐसा व्यक्ति जो हमें उन तरीकों से प्यार करते हैं, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं जाना था, कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारे प्रार्थना करने पर खुद को हमारे सामने प्रकट करते हैं। परिणामस्वरूप, ईश्वर के बारे में हमारी समझ उसके अस्तित्व की मात्र एक बौद्धिक स्वीकृति से बदलकर एक जीवित, संवादात्मक और अद्भुत मित्र के नए अनुभव में बदल गई; और येशु हमारे सबसे अच्छे दोस्त बन गए।
कुछ देर बाद जब हम दुकान से बाहर निकले, तब भी इस चित्र के बारे में हमारी बातचीत जारी रही। इस तदवीर ने हम दोनों के दिलों पर कब्ज़ा जमा लिया, फिर भी हम में से किसी ने भी इसे खरीदने की कोशिश नहीं की। जैसे ही मैं घर पहुंची, मुझे लगा कि मुझे वापस जाकर यह चित्र खरीदना ही होगा। कुछ दिनों बाद, मैंने वही किया, फिर इसे सावधानी से लपेटा, और क्रिसमस के आने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी।
सम्मान पूर्ण उपहार
दिन बीतते गए और आखिरकार क्रिसमस की पूर्व संध्या आ गई। पृष्ठभूमि में कैरोल बज रहा था, मेरी माँ द्वारा मुझे दिए गए छोटे से कृत्रिम क्रिसमस पेड़ के पास फर्श पर हम बैठे थे। अपने प्रिय बॉयफ्रेंड को अपना उपहार देते हुए, मैंने उसकी प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा की क्योंकि उसने नई कलाई घड़ी देखी थी, जिसे मैंने छोटे भरवां कुत्ते के पंजे पर रखा था जो चतुराई से घड़ी को पहुंचाएगा। मुझे केवल एक बड़बड़ाया हुआ “धन्यवाद” ही मिला। कोई चिंता नहीं, यह वह उपहार नहीं था जिसके बारे में मुझे पता था कि यह सही होगा। लेकिन सबसे पहले, ऊसके द्वारा मेरे लिए दिए गए उपहार को खोलना था।
इसे स्वीकार करने के लिए हाथ बढ़ाते हुए, मुझे थोड़ी हैरानी हुई। यह उपहार का पैकेट बड़ा, आयताकार और सपाट था। जैसे ही मैंने इसे खोलना शुरू किया, उपहार से रैपिंग पेपर को हटा दिया, मैंने अचानक देखा… वही तस्वीर?! वही तस्वीर जो मैंने उसके लिए चुपके से खरीदी थी? हाँ, वही थी! हँसता हुआ मसीह। वह तस्वीर जो मुझे बहुत पसंद थी लेकिन रोमांचित होने के बजाय, मैं निराश महसूस कर रही थी। यह उपहार उस केलिए होना चाहिए था। मुझे पता था कि वह बिल्कुल यही चाहता था। मैंने अपनी निराशा को छिपाने की कोशिश की, अपनी प्रशंसा व्यक्त करते हुए उसे चुम्बन देने के लिए झुकी। फिर मैंने उस उपहार को निकाला जिसे मैंने सावधानी से लपेटा था और पेड़ के पीछे छिपा दिया था, मैंने अपने प्यार के पात्र को वह उपहार दे दिया। उसने इसे खोला, कागज को जल्दी से फाड़ दिया, जिससे पैकेज की सामग्री सामने आ गई। उसका चेहरा खुश लग रहा था… है कि नहीं? या क्या वह थोड़ा निराश था जैसा मैंने महसूस किया था? अगर मैं उपहार खोलने की बारी आने पर उससे अपनी निराशा छिपाने के लिए इतनी मेहनत नहीं करती तो मेरा चेहरा भी निराश दीखता|
ओह, हम दोनों ने बिल्कुल सही सही शब्द कहे, फिर भी किसी तरह हमने महसूस किया कि एक-दूसरे से हमें जो उपहार मिला, वह हमारे लिए उतना सार्थक नहीं था जितना हमने उम्मीद की थी। यह वह उपहार था जिसका हम दोनों को इतनी उत्सुकता से इंतजार था। यह उस मसीह को दर्शाता था जिसे हम दोनों ने अनुभव किया था और हमारी इच्छा थी कि हम दोनों ने जिस प्रभु को जाना है उसे हम साझा करें। यहीं पर खुशी मिलती थी, अपनी इच्छाओं को पूरा करने में नहीं, बल्कि दूसरे की इच्छाओं को पूरा करने में।
समय के बीतने पर, उस युवक के साथ मेरा रिश्ता टूट गया। हालाँकि यह दर्दनाक था, लेकिन उसके द्ववारा दिया हुआ उपहार यानी येशु की खुशनुमा छवि मेरी दीवार पर सम्मान का स्थान रखती रही। अब, यह सिर्फ़ एक चित्रण से कहीं बढ़कर है, और सिर्फ़ एक इंसान से कहीं बढ़कर है। यह उस व्यक्ति की याद दिलाता है जो मुझे कभी नहीं छोड़ेगा, जिसके साथ मैं हमेशा रिश्ते में रहूँगी, जो सालों तक कई बार मेरे आँसू पोंछेगा। लेकिन उससे भी बढ़कर, यह उस व्यक्ति की तस्वीर है जो हमेशा मेरे जीवन में खुशी का स्रोत है।
आखिरकार, वह मेरा जीवन था। उन सिकुड़ी हुई झुर्रीदार आँखों ने मेरी आँखों को देखा। फिर उस आकर्षक मुस्कान ने मेरे होठों के कोनों को ऊपर खींचने के लिए मुझे आमंत्रित किया। और बस ऐसे ही, मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ हँस रही थी।
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करेन एबर्ट्स एक सेवानिवृत्त फिजियो थेरेपिस्ट हैं। वह दो युवाओं की माँ हैं और अपने पति डैन के साथ फ्लोरिडा के लार्गो में रहती हैं।

वयस्क लोगों को भी मौन रहने में कठिनाई का अनुभव होता हैं, इसलिए कल्पना कीजिए कि मुझे कितनी हैरानी हुई होगी जब मुझे बच्चों को मौन की भाषा में प्रशिक्षित करने का निर्देश दिया गया था!
कैटेकेसिस ऑफ द गुड शेफर्ड (CGS/सी.जी.एस.) सोफिया कैवेल्टी द्वारा 1950 के दशक में विकसित किया गया कैथलिक धर्मशिक्षा का एक अच्छा नमूना है, जिसमें मोंटेसरी शिक्षा सिद्धांतों को शामिल किया गया है। डॉ. मारिया मोंटेसरी के काम के अग्रणी पहलुओं में से एक काम उनके बच्चों को मौन का पालन करने के लिए प्रशिक्षित करना था। डॉ. मोंटेसरी की अपनी पुस्तिका में, वे बताती हैं: “जब बच्चे मौन से परिचित हो जाते हैं … (वे) खुद को परिपूर्ण करने लगते हैं; वे पूरी सावधानी से चलते हैं, फ़र्नीचर से नहीं टकराने का ध्यान रखते हैं, बिना आवाज़ किए अपनी कुर्सियाँ हटाते हैं, और बहुत सावधानी से मेज़ पर चीज़ें रखते हैं … ये बच्चे अपनी आत्माओं की सेवा कर रहे हैं।”
प्रत्येक रविवार की सुबह, तीन से छह वर्ष की आयु के दस से बीस बच्चे धर्मशिक्षा के लिए हमारे प्रांगण में इकट्ठा होते हैं। सी.जी.एस. में, हम कक्षा के बजाय ‘प्रांगण’ कहते हैं क्योंकि प्रांगण सामुदायिक जीवन, प्रार्थनापूर्ण कार्य और ईश्वर से बातचीत करने का स्थान है। प्रांगण में एक साथ समय बिताने पर, हम मौन के लिए भी वक्त निकालते हैं। मौन अचानक नहीं मिलता बल्कि उद्देश्यपूर्ण तरीके से बनाया जाता है। यह शोरगुल होने पर नियंत्रण करने का साधन भी नहीं है; इसे नियमित रूप से तैयार किया जाता है। यही बात मैंने इन बच्चों से खास तौर पर सीखी है।
सच्चा मौन एक फैसला है।
अभ्यास से सिद्धि मिलती है
सी.जी.एस. प्रांगण में, हम ‘मौन बनाने’ के बारे में बात करते हैं। हम इसे नहीं पाते, हम इससे आश्चर्यचकित नहीं होते। एक नियमित दिनचर्या के साथ, इरादे और चौकसी के साथ, हम मौन बनाते हैं।
मुझे हर हफ्ते उद्देश्यपूर्ण ढंग से मौन बनाने के लिए जब कहा गया तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरे जीवन में मौन की कितनी कमी है। यह मौन लंबे समय के लिए नहीं है, केवल पंद्रह सेकंड से एक मिनट, अधिकतम दो मिनट तक। लेकिन उस संक्षिप्त अवधि में, मेरा पूरा ध्यान और लक्ष्य अपने पूरे व्यक्तित्व को स्थिर और चुप कराना था।
मेरी रोज़मर्रा की दिनचर्या में ऐसे क्षण आते हैं जब मैं चुप हो जाती हूँ, लेकिन उस पल का लक्ष्य मौन रहना नहीं होता। हो सकता है कि मैं अकेले कार चला रही हूँ, तभी शायद कुछ मिनट मौन रहूँ। जब मेरे बच्चे पढ़ रहे हों या वे घर के किसी दूसरे हिस्से में व्यस्त हों तब मैं कुछ मिनट मौन रह जाती हूँ। मौन रहने के अभ्यास पर विचार करने के बाद, मैंने ‘मौन पाना’ और ‘मौन बनाना’ के बीच फर्क करना शुरू कर दिया है।
मौन एक अभ्यास है। इसमें न केवल बोलने को रोकना होता है, बल्कि शरीर को भी रोकना होता है। मैं ये शब्द टाइप करते समय मौन बैठी हूँ, लेकिन मेरा मन और शरीर स्थिर नहीं है। शायद आप इस लेख को पढ़ते समय मौन बैठे हों। लेकिन पढ़ने का कार्य भी मौन बनाने को नकार देता है।
हम बहुत व्यस्त दुनिया में रहते हैं। घर पर रहते हुए भी पृष्ठभूमि में शोर बहुत होता है। हमारे पास टाइमर, टीवी, रिमाइंडर, संगीत, वाहन का शोर, एयर कंडीशनिंग यूनिट और दरवाज़े के खुलने और बंद होने की आवाज़ आती हैं। हालाँकि, खुद को साउंड प्रूफ कमरे में बंद करके अत्यंत शांत वातावरण में मौन रहने का अभ्यास करना बहुत अच्छा होगा, लेकिन हममें से अधिकांश के पास ऐसी जगह उपलब्ध नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम वास्तविक मौन नहीं बना सकते। मौन बनाना हमारे वातावरण में मौन बनाए रखने पर जोर देने से कहीं ज़्यादा खुद को शांत करके मौन बनाने के बारे में है।
सुनने की कला
मौन बनाने से आपको अपने आस-पास की दुनिया को ध्यान से सुनने का अवसर मिलता है। अपने शरीर को शांत करके, अपने शब्दों को शांत करके, और जितना हो सके अपने दिमाग को शांत करके, हम अपने आस-पास की दुनिया को अधिक ध्यान से सुनने में सक्षम होते हैं। घर पर, हम एयर कंडीशनिंग यूनिट को काम करते हुए अधिक आसानी से सुनते हैं, जो हमें इसकी ठंडी हवा के लिए आभारी होने का अवसर देता है। जब हम बाहर होते हैं, तो हम हवा को पेड़ों की पत्तियों को सरसराते हुए सुनते हैं या अपने आस-पास के पक्षियों के गीत को पूरी तरह से सुन सकते हैं। मौन बनाने का मतलब अन्य ध्वनियों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि अपने भीतर मौन और स्थिरता की खोज करना है।
ख्रीस्तीय विश्वासियों के रूप में, मौन बनाने का मतलब पवित्र आत्मा की फुसफुसाहट के लिए अपने दिल के कानों से सुनना भी है। धर्मशिक्षा के प्रांगण में, समय-समय पर, मुख्य धर्मशिक्षक बच्चों से पूछते हैं कि उन्होंने मौन में क्या सुना। कुछ लोग ऐसी बातें बताते हैं जिनकी उम्मीद की जा सकती है। “मैंने दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी।” “मैंने एक ट्रक को गुजरते हुए सुना।” हालाँकि, कभी-कभी वे मुझे आश्चर्यचकित कर देते हैं। “मैंने येशु को यह कहते हुए सुना कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” “मैंने भले गड़ेरिये को सुना।”
हम मौन बनाने से बहुत कुछ सीख सकते हैं। व्यावहारिक रूप से कहें तो हम आत्म-नियंत्रण और धैर्य सीखते हैं। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम स्तोत्र 46:1१ की खूबसूरती सच्चाई में विश्राम करना सीखते हैं, “शांत हो और जान लो कि मैं ही ईश्वर हूँ।”
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केट टैलियाफेरो वायु सेना के सैनिक की पत्नी और छह खूबसूरत बच्चों की माँ हैं। वे ब्लॉगर, यूं ट्यूबर और धागे से सम्बंधित सभी प्रकार के शिल्प की निर्मात्री हैं। वे अलाबामा में रहती हैं, अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाती हैं और नियमित रूप से कैथलिक ब्लॉग के लिए साहित्यिक सामग्री का योगदान करती हैं।

जीवन अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव से भरा हो सकता है, लेकिन यदि आप निम्न प्रकार कार्य करना शुरू करते हैं, तो आप अभी भी सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर सकते हैं, ।
करीब पचपन साल से पहले, हमारे घर के सामने के दरवाज़े पर एक दस्तक सुनाई दी। हम किसी मेहमान की प्रतीक्षा नहीं कर रहे थे। मेरी माँ ने दरवाज़ा खोला और पाया कि कुछ अजनबी लोग अपने सहकर्मियों के साथ क्रिसमस के लिए खाने-पीने के डिब्बों और खिलौनों से लदे हुए झोलों और पेटियों के साथ खड़े थे। वह दौर हमारे परिवार के लिए बड़ी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण दौर था। महीनों पहले वसंत ऋतु में मेरे पिता लकवाग्रस्त हो गए थे, मेरी माँ को परिवार का भरण-पोषण अकेले करना था, और पैसे की बड़ी कमी थी। ये अनजान और अजनबी लोग हमारे क्रिसमस को थोड़ा और खुशनुमा बनाने और मेरे माता-पिता का बोझ हल्का करने की संभावना पर खुशी और प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। यह स्मृति मेरे दिमाग में गहराई से अंकित है। अप्रत्याशित ज़रूरतें, हैरान करने वाला दुख, विनाशकारी नुकसान और चमत्कारी समर्थन के उस अनुभव ने मुझे वह व्यक्ति बनाने में मदद की जो मैं आज बन गयी हूँ।
हमारे जीवन में कुछ बातें क्यों हो रही हैं, इसका उद्देश्य समझना कठिन है। ईसाइयों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे विश्वास करें और स्वीकार करें कि जीवन में सुख और दुख के माध्यम से, परमेश्वर वास्तव में हमसे प्यार करता है और हमारी परवाह करता है। पुरानी कहावत, ‘इसे प्रभु को अर्पित करें’, आजकल शायद ही कभी बोली जाती है, लेकिन मेरे बचपन में यह जोर से और स्पष्ट रूप से बोली जाती थी। मेरा परिवार हर दिन इस वास्तविकता को जीता था।
कुछ खास नहीं
“तो भी प्रभु, तू हमारा पिता है; हम मिट्टी हैं, और तू कुम्हार है: तू ने हम सबों को बनाया है।” (यशायाह 64:७)
एक पल के लिए मिट्टी के उस ढेर की कल्पना करें जो मैं हूँ। उस्ताद कुम्हार मिट्टी के इस ढेर में अपार क्षमता देख पाता है। वह अपने अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस मिटटी के ढेर में एक पुत्री को देख पाता है, एक साधन को देख पाता है। अप्रशिक्षित आँखें, उस मिट्टी के ढेर में शायद कोई केवल एक कॉफी पीने या टूथब्रश रखने के कप की कल्पना कर सकती हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान के लिए, इस मिट्टी के ढेर में इतिहास और अनंत काल दोनों केलिए, उसकी योजना में एक अवर्णनीय लक्ष्य है। दुविधा यह है कि, यह मिट्टी का ढेर कुछ खास नहीं है, इसे उस काम के लिए विशिष्ट रूप से तैयार करने की आवश्यकता है जिस के लिए उसे बुलाया जाएगा।
कुम्हार किसी बोझ से दबा नहीं है बल्कि उसका इरादा उसके लिए स्पष्ट है। वह स्पष्ट लक्ष्य देखता है, बारीकी से सोचता है और वह चतुर है। वह कथानक को, उस कथानक के पात्रों को और उन स्थितियों को जानता है जिसमें वह अपनी इच्छा को पूरा करने केलिए उत्कृष्ट कृति की रचना करेगा। वह उन परिस्थितियों को जानता है जो इस कार्य के लिए एक नारी को उचित रूप से तैयार करेगा। उस नारी के निर्माण में कुछ भी छोटा या महत्वहीन नहीं है।
वह नारी सोच सकती है कि उसके पिता को इतना कष्ट क्यों सहना पड़ा, उसे जल्दी से बड़ी क्यों होनी पडी, और उसका भविष्य उसे उत्कृष्ट और कष्टदायक दोनों तरह की चुनौतियाँ क्यों देगा। वह उन बच्चों की प्रतीक्षा करते हुए आँसू बहाती है जो आने में देरी कर रहे थे, इस प्रकार उसने परमेश्वर पर अधिक भरोसा करना सीखा और अपनी अपेक्षाओं को उसके सर्वशक्ति संपन्न लालन पोषण में उस के हवाले कर दिया।
जीवन की कठिनाइयों और परीक्षणों ने उसके खुरदुरे हिस्सों को चमकाने में मदद की और उसे उस उस्ताद कलाकार के स्पर्श के आगे झुकना सिखाया। हर बारीकी ज़रूरी है, हर भेंट या मुलाक़ात कला के उस उस्ताद के उद्देश्यों और इच्छा की पूर्ती के लिए ज़रूरी है। कुम्हार के चाक का हर चक्कर और उस्ताद के हाथों का कोमल मार्गदर्शन उस नारी के अंगों को परिपूर्ण करने के लिए ज़रूरी था। उन अंगों को विकसित होने के अवसर तैयार किए गए, साथ ही साथ उस नारी के विकास के रास्ते में सहायता करने वाले लोग भी। जब कला के उस उस्ताद ने सब कुछ गति में ला दिया तो कृपा बह रही थी।
परखा और आजमाया हुआ
मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ और अपने जीवन में इस सत्य की वास्तविकता को देखती हूँ। ईश्वर ने हर परिस्थिति और हालात में मुझे विकसित किया, सुसज्जित किया और मेरा साथ दिया। यह महसूस करना आश्चर्यजनक है कि वह हर समय मेरे प्रति कितना चौकस रहा है। मेरे जीवन के कुछ सबसे दर्दनाक अनुभव सबसे अधिक लाभकारी साबित हुए। भट्टी की आग धातु को कठोर बनाती है और परिष्कृत भी करती है, जिससे उस धातु को अपने उद्देश्य के पूर्ती के लिए मजबूत बनने में मदद मिलती है।
मिट्टी का बर्तन नीचे गिरने पर आसानी से टूट भी सकता है। यह अंत नहीं है, बल्कि ईश्वर की योजनापूर्ण व्यवस्था में एक नई शुरुआत और उद्देश्य है। जापानी कला ‘किंत्सुगी’ की तरह, लाख में मिश्रित बढ़िया धातुओं का उपयोग करके टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों की मरम्मत करने की उस अद्भुत कला की तरह, ईश्वर हमें जीवन की टूटन के माध्यम से फिर से बना सकता है। मैं लगातार बढ़ रही हूँ और बार-बार बनायी गयी हूँ। कोई भी कठिन सबक महत्वहीन या दुर्भाग्यपूर्ण नहीं था। बल्कि, उन सीखों से मैंने एक ऐसी बेटी के रूप में विकसित होने में मदद प्राप्त की जो ईश्वर पर भरोसा करती है – बिना किसी संकोच के भरोसा करती है और समर्पण करती है। हाँ प्रभु, तू मुझे आकार देना और बनाना जारी रखता है, मेरे दिल को परिष्कृत करता है और मेरी आत्मा को तरोताजा करता है।
हे पिता, जब जब मैं चिल्लाती थी: “रुको, मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकती” तब भी इस मिट्टी के ढेले को नहीं त्यागने, हर बार हार न मानने के लिए, तुझे धन्यवाद। मैं धन्यवाद देती हूँ कि तूने मुझे बनाया और जाना, मुझे परखा, मुझे आजमाया, और मुझे योग्य पाया,।
आज समय निकालकर इस बात पर विचार करें कि उस कुम्हार ने आपको कैसे बनाया है, आपके माध्यम से, उसकी महिमा के लिए, उसका भला काम करने के लिए कैसे आपको तैयार और सुसज्जित किया है। इस अति सुन्दर सृष्टि को निहारना वाकई एक अद्भुत अनुभूति है।
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बारबरा लिश्को ने बीस से अधिक वर्षों तक कैथलिक कलीसिया की सेवा की है। बयालीस वर्षों से वे उपयाजक मार्क से विवाहित हैं और वे पाँच संतानों की माँ और नौ बच्चों की दादी हैं। वे उत्तरी अमेरिका के एरिज़ोना में रहती हैं, और वह अक्सर pourmyselfoutingift.com पर ब्लॉग लिखती हैं|

वयस्कता की उम्र डरावनी हो सकती है, लेकिन इसी वयस्क उम्र में आप सही संगति पाएंगे तो अनुग्रह और शक्ति के साथ खिलना सीख सकते हैं!
येशु ने मित्रता को संजोया और 12 व्यक्तियों को चुना, ताकि वे 12 लोग उनके साथ निकट रहकर चल सकें और उनसे सीख सकें। न केवल पुरुष, बल्कि महिला मित्र भी उनके जीवन की हिस्सा थीं। मरियम और मार्था बहनों को याद करते हैं न? और मरियम मगदलीनी को? सुसमाचारों में इन मित्रताओं का उल्लेख यह दर्शाता है कि हमारे जीवन में मित्र लोग कितने महत्वपूर्ण हैं।
येशु ने अपने शिष्यों को मित्र कहा! “अब मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा, सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है। मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना, वह सब तुम्हें बता दिया है।” (योहन 15:15) येशु के द्वारा मित्र कहलाना सम्मान और उत्थान का अवसर है! इसी प्रकार, यह हमारे लिए भी महत्वपूर्ण है कि हम एक-दूसरे के मित्र होने के सम्मान को समझें। यह एक किरदार है जिसे गंभीरता से निभाना चाहिए। जैसा कि येशु हमें याद दिलाते हैं: “तुमने मेरे छोटे भाइयों और बहनों में से किसी एक के लिए जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया” (मत्ती 25:40)। आपकी उपस्थिति, या इसकी कमी, किसी अन्य व्यक्ति पर प्रभाव डाल सकती है। आपके कार्य, समर्थन, और प्रार्थनाएं किसी के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। जैसे हमें सौंपी गई किसी भी जिम्मेदारी को हम गंभीरता से निभाते हैं उसी तरह मित्रता भी एक ज़िम्मेदारी है जिसे गंभीरता से निभानी चाहिए।
श्रेष्ठ उपहार
वयस्क बन जाने पर, कई लोग मित्रता की कमी या मित्र बनाने में कठिनाई पर खेद व्यक्त करते हैं। सच्चे मित्रों के लिए तरसता दिल की पीड़ा वास्तविक है। मित्रता वास्तव में एक उपहार है, ऐसा उपहार जिसे निश्चित रूप से प्रार्थना द्वारा मांगा जाना चाहिए।
सच्ची ख्रीस्तीय मित्रता किसी के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप सोच-समझकर उन लोगों को चुनें, जिन्हें आप इस पद के योग्य समझते हैं। एक मित्र जो समान मूल्यों को साझा नहीं करता, वह शत्रु के सामान हो सकता है। सूक्तिग्रंथ 27:17 हमें याद दिलाता है: “जैसे लोहा लोहे को तेज करता है, वैसे ही मनुष्य का मनुष्य से सुधार होता है।” संतों का जीवन इस बात का निरंतर प्रोत्साहन है, क्योंकि हम अक्सर एक संत के दूसरे संत के साथ मित्र होने के बारे में सुनते हैं! संत फ्रांसिस और संत क्लारा को मित्रों के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने उद्देश्य और आध्यात्मिकता में साझेदारी की और एक-दूसरे के जीवन को समृद्ध किया। इसी तरह अविला की संत तेरेसा और क्रूस के संत योहन भी मित्र थे। संत जॉन पॉल द्वितीय और मदर तेरेसा 20वीं सदी के दोस्ती के आदर्श हैं। सच्चे दोस्त हमें खुद का सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनने के लिए प्रेरित करेंगे।
विश्वास द्वारा अगुवाई
मैं अपने जीवन में हुई वृद्धि और सफलताओं का श्रेय मेरी चारों तरफ के सही मित्रों को देती हूं। मेरे निकटतम लोग स्पष्ट आध्यात्मिक दृष्टि रखते हैं। वे सही समय पर प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, और मुझे पता है कि वे मुझे प्रार्थना का समर्थन देने के लिए हमेशा उपलब्ध हैं। इसकेलिए वे अपने उपलब्ध समय पर मेरे लिए मध्यस्थ प्रार्थना केलिए या मेरे साथ बैठकर प्रार्थना करने केलिए सब कुछ त्याग देने केलिए भी तैयार रहते हैं ।
येशु मसीह पर केंद्रित कोई भी मित्र अक्सर जानता है कि आपको कब प्रार्थना की आवश्यकता है। मेरी एक मित्र है जो मेरे जीवन के उस क्षेत्र को समझ सकती है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की आवश्यकता है। वह अक्सर साझा करती है कि पवित्र आत्मा ने उसे प्रार्थना में क्या बताया है। उसके साथ बातचीत हमेशा उत्साहजनक होती हैं और वे बातचीत मुझे शक्ति और पुष्टि प्रदान करती हैं। मुझे याद है कई बार जब किसी मित्र ने कोई पवित्र ग्रन्थ के वचन या पवित्र आत्मा से कोई वचन बिलकुल सही समय पर मुझे भेजा जो मेरे लिए उस समय केलिए पूरी तरह उपयोगी रहा। अनगिनत अवसरों पर, मुझे अपने एक मित्र से संदेश मिले जिनमें उसने मुझे बताया कि मेरे लिए प्रार्थना करने के लिए उसे प्रेरणा मिली है। ये सन्देश ज्यादातर तब आते हैं जब मैं जीवन के बहुत बड़े निर्णय लेने या किसी बड़े आंतरिक संघर्ष का सामना करने के दौर में होती हूँ।
एक समय था जब मैं ज़िन्दगी के सफ़र में बहुत अटकी हुई महसूस करती थी; ऐसा लगता था कि मैं कोई प्रगति नहीं कर पा रही हूँ। एक प्रिय मित्र ने मुझे एक वचन भेजा कि उसे विश्वास है कि परमेश्वर मेरे जीवन में पर्दे के पीछे कुछ बहुत खास कर रहा है। मुझे आगे बढ़ने की शक्ति महसूस हुई और मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर कुछ करने वाला था, भले ही मैं निराश महसूस कर रही थी। उसके कुछ दिनों बाद, चीजें सही जगह पर आने लगीं – जिन बातों या अरमानों के लिए मैंने कई सालों से प्रार्थना की थी, वे मेरे जीवन में प्रकट होने लगीं!
सच्चे दोस्त आपके संघर्षों में आपकी मदद करने के लिए तैयार रहेंगे। वे आपके जीवन में ईश्वर की जीत का जश्न मनाएंगे और आपके जीवन के किसी भी अन्य पहलू से ज़्यादा आपके आध्यात्मिक कल्याण के बारे में चिंतित होंगे। लेकिन याद रखें, ऐसे समय भी आते हैं जब आपको अपने दोस्त को यह बताना होगा कि आपको प्रार्थनाओं की ज़रूरत है।
मुझे पता है कि अगर मेरे दोस्त पवित्र आत्मा के साथ तालमेल नहीं रखते तो मेरा जीवन बहुत अलग होता। मसीह के सामने समर्पण की उसी यात्रा पर दूसरों के साथ चलने से स्पष्ट लाभ हुए हैं। इस जीवन में अनंत जीवन और पवित्रता के लक्ष्य का साझा दृष्टिकोण दोस्ती में मूल्यवान है। मुझे मदद पाने और दोस्तों के जीवन में उनके अपने क्रूस को उठाने में उनकी मदद करने, खुशियाँ साझा करने और साथ मिलकर ईश्वर की स्तुति करने का सम्मान और सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
अपने जीवन को समृद्ध बनाएँ
क्या आप जीवन के ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ आप और अधिक मित्रों की चाहत रखते हैं? उनसे मिलने के अवसर के लिए प्रार्थना करें! आपके जीवन में अप्रत्याशित तरीके से उनके आने के लिए अपनी आँखें खुली रखें। अगर आप जीवन के ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ आपके पास मित्र तो हैं, लेकिन आप उनसे दूर हो जाने की बात महसूस करते हैं, तो किसी ऐसे मित्र जो हाल ही में आपके ख्याल में रहा हो, उन्हें संदेश भेजकर या फ़ोन करके शुरुआत करें ।
दोस्ती के लिए अपना दिल खोल दें। एक या दोनों पक्षों की व्यस्तता के कारण बहुत सी मित्रताएँ मुरझा गई हैं और उन्हें कभी पूरी तरह से पनपने का मौका नहीं मिला है। किसी भी अन्य रिश्ते की तरह दोस्ती के लिए भी त्याग की आवश्यकता होती है। यह अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रकार के त्याग के रूप में दिखाई देंगे। फिर भी, यह ईश्वर की ओर से एक जबरदस्त आशीर्वाद और उपहार है। दोस्ती बनाना और उसे बनाए रखना एक निवेश है। स्थायी दोस्ती आपके जीवन में बहुत समृद्धि और मूल्य ला सकती है। एक अच्छे दोस्त के उपहार को संजोएँ और जब आपको एक मित्र का खिताब दिया जाए तो उसे बहुत अच्छी तरह संजोएँ।
हे येशु, कृपया हमें दूसरों के लिए सच्चे और वफादार दोस्त बनने में मदद कर। हमें ऐसे दोस्त भेज दे जिनके साथ कदम मिलाकर हम तेरी ओर लगातार चल सकें। आमेन!
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लियाना म्यूएलर संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास में एक काउंसलर के रूप में सेवा देती हैं। उन्हें अपने खाली समय में कथाएं और लेख लिखना पसंद है, और वे sunflowersojourn.wordpress.com पर ब्लॉग लिखती हैं

महान ईश्वर गोबर की बदबू के बीच रोता हुआ बच्चा क्यों बनेगा?
येशु के जन्म से पहले स्वर्गदूत की घोषणा के अजीब पहलुओं में से एक यह है कि महादूत गाब्रिएल मरियम को किस तरह संबोधित करता है, “प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री! प्रभु आपके साथ है।” (लूकस 1:28) यह बात पक्की है कि मरियम एक किशोरी माँ होगी, जो यूसुफ से उसकी वास्तविक शादी से पहले ही गर्भवती होगी, और उसे गोशाले के मवेशियों के बीच एक गुफा या अस्तबल में जन्म देना होगा। अगर उसे संदेह है कि गाब्रिएल कुछ स्वर्गिक व्यंग्य में लिप्त है, तो उसे माफ़ किया जा सकता है। फिर तैंतीस साल आगे बढ़ें जब मरियम क्रूस के पावदान पर होगी और अपने पुत्र को चोरों के बीच, मज़ाक उड़ाती भीड़ के सामने, एक दर्दनाक मौत मरते हुए देखेगी। यह सब ‘कृपापात्री’ कैसे हो सकती है?
एक क्रांतिकारी कथन
क्रिसमस की पूरी कहानी रहस्य से भरी है और उम्मीदों का उल्लंघन करती है। सबसे पहले, अरबों आकाश गंगाओं से भरपूर पूरे ब्रह्मांड का निर्माता, जो पूरी तरह से आत्मनिर्भर है और उसे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए, एक प्राणी, एक इंसान बनना चुनता है। प्रसव की सारी उथल पुथल अव्यवस्थाओं के साथ, किसी डॉक्टर या नर्स के सहयोग बिना, गोबर की बदबू से भरपूर जगह पर, अल्फा और ओमेगा को हमारे सामने एक शिशु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जैसा कि बिशप बैरन ने एक बार अवतार का वर्णन किया था: “यह एक कैथलिक मज़ाक जैसा है: या तो आप इसे समझते हैं या नहीं समझते।” जैसा कि हम इस दृश्य के सामने खड़े हैं, अगर ईश्वर यहाँ घोर अभाव में, पुवाल और भूसे के बीच चरनी में आ सकता है, तो वह कहीं भी आ सकता है। वह मेरे जीवन की गड़बड़ियों में आ सकता है। अगर ईश्वर बेथलेहम के उस अस्तबल में आया, तो वह हर जगह आ चुका है; ऐसा कोई स्थान या समय नहीं है जिसे ईश्वर ने खारिज किया हो।
अगर हम उस दृश्य से पीछे हटें, तो एक अजीब परिप्रेक्ष्य सामने आता है। उस समय के सबसे बड़े व्यक्तित्व – कैसर अगस्तस, राज्यपाल क्विरिनियुस, राजा हेरोद – ये सब छोटे और नगण्य हो गए हैं; वास्तव में, वे गायब हो गए हैं। छोटे व्यक्तित्व – मरियम, यूसुफ़, अनजान चरवाहे – ये बड़े हो गए हैं: मरियम स्वर्ग की रानी हैं और यूसुफ़ कलीसिया के संरक्षक हैं, उनके दत्तक पुत्र येशु का रहस्यमय शरीर हैं। शिशु येशु, सबसे छोटा और सबसे असहाय व्यक्ति, सुरक्षात्मक कपड़ों में लिपटा हुआ, इतना बड़ा हो जाएगा कि वह सूर्य और चंद्रमा को मिटा देगा और आकाश को इस गीत से भर देगा: “सर्वोच्च स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो, और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शान्ति मिले!” (लूकस 2:14)
येशु के जन्म की कहानी ईश शास्त्रीय मायनों से भरपूर है, लेकिन इसमें और भी बहुत कुछ है। एक क्रांतिकारी बयान दिया जा रहा है। येशु को इम्मानुएल नाम दिया गया है, जिसका अर्थ है ‘ईश्वर हमारे साथ है।’ और इसका मतलब है कि येशु देहधारी ईश्वर हैं: वे नबी, गुरु या चंगाई दाता से कहीं बढ़कर हैं; वे ईश्वर का मानवीय चेहरा हैं। पवित्र त्रीत्व के दूसरे व्यक्ति ने मानव अस्तित्व में प्रवेश किया है, इसलिए नहीं कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत है, बल्कि हमारे लिए – हमारे उद्धार के लिए। निहितार्थ उल्लेखनीय है। जैसा कि संत अगस्तीन हमें याद दिलाते हैं: “यदि आप इस धरती पर एकमात्र व्यक्ति होते, तो ईश्वर का पुत्र आपके लिए मरने केलिए, और सब कुछ केलिए तैयार रहता।” इसका मतलब है कि कोई भी जीवन महत्वहीन या व्यर्थ नहीं है। इसका मतलब है कि इम्मानुएल हमारे अस्तित्व के हर पल हमारे साथ है, जिसका अर्थ है कि एक औसत दिन में मेरे द्वारा की जाने वाले सामान्य कार्य और निर्णय शाश्वत महत्व रख सकते हैं। क्यों? संत पौलुस हमें याद दिलाते हैं: “मसीह येशु में हमार्रा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है” (प्रेरित-चरित 17:28)। इसका अर्थ है कि हमारी पवित्र कहानी का अर्थ और उद्देश्य है – एक ऐसा जीवन जो साहस और आत्म-त्याग की उदारता को प्रोत्साहित करता है, ठीक उसी तरह जैसे कि हम जिस भी उजाड़ स्थान पर हों, उसी प्रभु की आराधना करते हैं।
जीवन या मृत्यु में…
मसीह का जन्म हमारे लिए आशा का स्रोत होना चाहिए, और यह कोई आशावाद के समान नहीं है, जो जीवन की नींव के बजाय एक आनुवंशिक स्वभाव है। इसके विपरीत, हममें से कुछ लोगों को अवसाद की आनुवंशिक बीमारी से जूझना पड़ता है, जो किसी के जीवन को अंधकार में डुबो सकती है। लेकिन, इस काले बादल के बीच भी, हम उद्देश्य, सुंदरता और महिमा की झलक पा सकते हैं और यह भी काम आ सकता है।
कभी-कभी, हम पुरानी दर्द और अपक्षयी बीमारी जैसी दुर्बल करने वाली बीमारियों के कारण अकेलेपन और एकाकीपन का अनुभव करते हैं। ईश्वर हमारे साथ है। टूटे हुए रिश्ते, विश्वासघात या कैंसर के निदान में, ईश्वर हमारे साथ है। वह हमें अस्पताल या मानसिक वार्ड में नहीं छोड़ता। जीवन या मृत्यु में, येशु हमें कभी नहीं छोड़ेगा या हमें कभी नहीं त्यागेगा क्योंकि वह इम्मानुएल है।
येशु में विश्वास हमें दुख से मुक्त नहीं करता, लेकिन यह भय से मुक्ति दिला सकता है क्योंकि हमारे पास एक पात्र है, एक व्यक्ति है, जो हमारे जीवन में सब कुछ एकीकृत कर सकता है। येशु के जन्म का अर्थ है कि हर पल जिसे हम जीने के लिए धन्य हैं, वह पल किसी कठिन और छोटे जीवन में भी हमें ईश्वर की उपस्थिति से भर सकते हैं और उनके आह्वान से समृद्ध कर सकते हैं। हमारी आशा क्रिसमस के दिन पूरी होती है, जो उस तारे की तरह चमकती है जिसने ज्योतिषियों का मार्गदर्शन किया और सदियों से मठवासी सन्यासियों और सुसमाचार गायकों द्वारा गाए गए गीत की तरह बढ़ती है, जो गिरजाघरों, महागिर्जाघरों, बेसिलिकाओं और धर्मजागरण के प्रार्थना तम्बुओं को भर देती है, लेकिन वह गीत हमारे जीते हुए दिलों में सबसे स्पष्ट है: “ईश्वर हमारे साथ है!”
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डीकन जिम मैकफैडेन कैलिफोर्निया के फॉल्सम में सेंट जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वे प्रौढ़ विश्वास निर्माण, बपतिस्मा की तैयारी और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्यरत हैं।