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जब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे?
2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी – अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है।
उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है।
जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली – यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी – और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी।
मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया।
मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप
मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है।
एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी।
इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं।
* संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
'मैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया…
विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है।
ईश्वर से नाराज़!
मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था।
किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था।
भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे ‘आँकड़ों’ वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ।
मेरी यात्रा में एक मोड़
एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग’ सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी ‘हाँ’ कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया।
इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी।
जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा।
मुझे पता है कि तू यह कर सकता है
जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं…हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी।
क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: “तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।”
इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी।
एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे
वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: “आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।” मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: “मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।”
जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में ‘धन्यवाद’ कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी।
जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं ‘चल’ नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: “तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।” मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: “तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।”
मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: “तुम ही मेरी ज़रूरत हो।” मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया।
ऊंची आवाज़ में गवाही
इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है।
ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
'हम हमेशा अपने कैलेंडर को जितना संभव हो उतना भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई अप्रत्याशित अवसर आ जाए?
नया साल आने पर हमें ऐसा लगता है कि हमारे सामने एक खाली स्लेट है। आने वाला साल संभावनाओं से भरा है, और हमारे नए–नए छपे कैलेंडर को भरने के लिए हम ढेर सारे संकल्प लेते हैं। हालाँकि, ऐसा होता है कि बेहतरीन साल के लिए कई रोमांचक अवसर और विस्तृत लक्ष्य विफल हो जाते हैं। जनवरी के अंत तक, हमारी मुस्कान फीकी पड़ जाती है, और पिछले सालों की पुरानी आदतें हमारे जीवन में वापस आ जाती हैं।
अगर हम इस साल, इस पल को थोड़ा अलग तरीके से लें तो कैसा होगा? अपने कैलेंडर पर खाली जगह को जल्दी जल्दी भरने के बजाय, उन खाली जगहों में जहां हमारे पास पहले से कुछ भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं है, वहां थोड़ा और स्थान और समय क्यों न दें? इन्हीं खाली जगहों में हम पवित्र आत्मा को अपने जीवन में काम करने के लिए सबसे अधिक जगह दे सकते हैं।
जो कोई भी एक घर से दूसरे घर में स्थानांतरित हुए है, वह जानता है कि एक खाली कमरा कितनी आश्चर्यजनक जगह बना सकता है। जैसे-जैसे फर्नीचर बाहर जाता है, कमरा बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। जब पूरा कमरा खाली हो जाता है, तब यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पर्याप्त जगह की कमी पहले बड़ी समस्या थी, अब देखो वही कमरा कितना बड़ा हो गया है! कमरा जितना अधिक कालीनों, फर्नीचर, दीवार पर लटकने वाली वस्तुओं और अन्य चीजों से भरा होता है, उतना ही जगह की कमी महसूस होती है। तभी, कोई आपके घर एक उपहार लेकर आता है, और आप सोचने लगते हैं – अब, हम इसे कहां रखेंगे?
हमारा कैलेंडर भी लगभग इसी तरह काम कर सकता है। हम अपने कैलेंडर को हर दिन काम, अभ्यास, खेल, प्रतिबद्धता, प्रार्थना, सेवा आदि से भर देते हैं – वे सभी अच्छी और अक्सर ज़रूरी लगने वाले बहुत सारे काम हैं। लेकिन जब पवित्र आत्मा एक ऐसे अवसर के साथ दस्तक देता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, तब क्या होता है? क्या हमारे कैलेंडर में उसके लिए जगह है? पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करने के लिए हम मरियम को एक आदर्श नमूने के रूप में देख सकते हैं।
मरियम स्वर्गदूत के शब्दों को सुनती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करती है। अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित करके, वह ईश्वर के उपहारों को प्राप्त करने के लिए सही स्वभाव का प्रदर्शन करती है। इसके बारे में सोचने का एक और तरीका है जिसे बिशप बैरन ने ‘अनुग्रह की कुंडली’ कहा है।
ईश्वर हमें भरपूर कृपा और अनुग्रह देना चाहता है। जब हम ईश्वर की प्रेमपूर्ण उदारता के प्रति स्वीकृति देते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब ईश्वर का ही उपहार है। खुशी के साथ, हम आभार और धन्यवाद के द्वारा ये उपहार ईश्वर को वापस देते हैं, और इस तरह कुंडली को फिर से चालू करते हैं।
ईश्वर मरियम तक पहुँचता है, और मरियम स्वतंत्र रूप से खुद को उसकी इच्छा और उद्देश्य के लिए समर्पित करती है। फिर वह येशु को स्वीकार करती है। हम इसे येशु के जीवन के अंत में फिर से देखते हैं। बहुत दुःख और भयानक दर्द में, मरियम अपने प्यारे बेटे को कलवारी की ओर जाने देती है। जब येशु क्रूस पर लटका हुआ था, तब भी मरियम उससे चिपकी नहीं रहती। उस दर्दनाक क्षण में, सब कुछ खो गया लगता है, और उसका मातृत्व खाली हो जाता है। वह भागती नहीं है, वह अपने बेटे के साथ रहती है, और लगता है कि उसके बेटे येशु ने ही उसे त्याग दिया है। फिर, येशु ने उसे योहन के रूप में न केवल एक बेटा दिया, बल्कि कलीसिया के मातृत्व में अनगिनत बेटे और बेटियाँ दीं। क्योंकि मरियम ईश्वर की योजना के प्रति उदार और ग्रहणशील रही, उन सबसे दर्दनाक क्षणों में भी, इसलिए अब हम उसे हमारी माँ कहकर पुकार सकते हैं।
जैसे-जैसे साल आगे बढेगा, शायद अपने सम्पूर्ण कार्य योजना के बारे में प्रार्थना करने के लिए कुछ समय निकालें। क्या आपने अपनी तिथियों को पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ज़्यादा कामों से भर लिए हैं? पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह आपको यह सोचने के लिए प्रेरित करे कि उसके उद्देश्यों के लिए कौन सी गतिविधियाँ ज़रूरी हैं और कौन सी आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं और लक्ष्यों के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं। अपनी कार्य योजनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए साहस माँगें, ज़रूरत पड़ने पर “नहीं” कहने की बुद्धि माँगें, ताकि जब वह आपके दरवाज़े पर दस्तक दे तो आप खुशी-खुशी और आज़ादी से “हाँ!” कह सकें।
'क्या आपने कभी गौर किया है कि आराधना में भाग लेने का अनुभव कैसा होता है? कोलेट का सुंदर वर्णन आपके लिए जीवन बदलने वाला हो सकता है।
मुझे याद है कि एक बच्चे के रूप में, मैं सोचती थी कि पवित्र संस्कार में येशु से बात करना या तो सबसे अविश्वसनीय या पागलपन भरा विचार था। लेकिन यह येशु से मेरी मुलाकत से बहुत पहले की बात है। उस शुरुआती परिचय के बहुत वर्षों बाद, अब मेरे पास छोटे और बड़े अनुभवों का खजाना है जो मुझे येशु के यूखरिस्तीय ह्रदय के करीब रखता है, मुझे एक-एक कदम आगे बढ़ाता है….. और वह यात्रा अभी भी जारी है।
जिस पल्ली में मैं जाती थी, वहाँ महीने में एक बार, पूरी रात जागरण होता था, जिसकी शुरुआत पवित्र मिस्सा बलिदान से होती थी, उसके बाद रात भर आराधना होती थी, जिसे विभिन्न घंटों में विभाजित किया जाता था। हर घंटे की शुरुआत कुछ प्रार्थना, पवित्र बाइबिल का पाठ और स्तुति से होती थी; मुझे याद है, शुरुआती महीने में, येशु के इतने करीब होने की भावना की पहली हलचल के अलग अलग अनुभव थे। वे रातें येशु के व्यक्तित्व पर केंद्रित थीं और वहाँ, मैंने धन्य पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु से बात करना सीखा, मानो कि येशु स्वयं वहाँ खड़े हों।
बाद में, युवाओं के लिए एक साधना के दौरान, मुझे मौन यूखरिस्तीय आराधना का अनोखा अनुभव मिला, जो मुझे पहले अजीब लगा। आराधना का नेतृत्व कोई नहीं कर रहा था, और कोई गाना नहीं गा रहा था। मुझे आराधना में गाना अच्छा लगता है और मज़ा आता है जब लोग प्रार्थना में हमारा नेतृत्व करते हैं। लेकिन यह विचार कि मैं बस वहां बैठ सकती हूँ और बस ऐसे ही रह सकती हूँ, यह नया अनुभव था…। एक बहुत ही आध्यात्मिक येशुसंघी पुरोहित साधना का नेतृत्व कर रहे थे, वे आराधना की शुरुआत इस तरह बोलकर करते थे: “शांत रहो और जान लो कि मैं ईश्वर हूँ।” और यही निमंत्रण था।
मैं और तू येशु
मुझे एक विशेष घटना याद है जिसने मुझे इस शांति का गहरा अहसास कराया। मैं उस दिन आराधना में थी, मेरा निर्धारित समय समाप्त हो गया था और वह व्यक्ति जो मुझसे कार्यभार संभालने वाला था, अभी तक नहीं आया था। जब मैं प्रतीक्षा कर रही थी, मुझे प्रभु से एक अलग आभास हुआ: “वह व्यक्ति यहाँ नहीं है, लेकिन तुम हो,” इसलिए मैंने बस साँस लेने और छोड़ने का फैसला किया।
मुझे लगा कि वह व्यक्ति किसी भी क्षण यहाँ आ सकता है, इसलिए मैंने येशु की उपस्थिति पर ध्यान केंद्रित किया और बस साँस ले रही थी। हालाँकि, मुझे एहसास हुआ कि मेरा मन उस इमारत से बाहर निकल रहा था, अन्य चिंताओं में व्यस्त हो रहा था, जबकि मेरा शरीर अभी भी येशु के साथ था। मेरे दिमाग में चल रही हर बात अचानक रुक गई। यह बस एक अचानक पल था, लगभग खत्म होने से पहले मुझे एहसास हुआ कि क्या हो रहा था। मौन और शांति का एक अचानक पल। उस आराधनालय के बाहर की सारी आवाज़ें संगीत की तरह लग रही थीं, और मैंने सोचा: “हे ईश्वर, तेरा धन्यवाद…क्या आराधना का यही उद्देश्य है? मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ सिर्फ़ मैं और तू है”।
इससे मुझ पर एक गहरी और स्थायी छाप पड़ी, कि पवित्र यूखरिस्त कोई चीज़ नहीं है, यह कोई व्यक्ति है। वास्तव में, यह कोई व्यक्ति नहीं है, यह स्वयं येशु है।
अनमोल उपहार
मुझे लगता है कि प्रभु की उपस्थिति और दृष्टिकोण के बारे में हमारी धारणा एक बड़ी भूमिका निभाती है। ईश्वर की नज़र हम पर टिकी होने का विचार बहुत डरावना लग सकता है। लेकिन वास्तव में, यह करुणा की नज़र है। मैं आराधना में इसका पूरा अनुभव करती हूँ। कोई पूर्वाग्रह नहीं, कोई दोष नहीं लग रहा, केवल करुणा है। मैं ऐसी व्यक्ति हूँ जो खुद को बहुत जल्दी दोषी ठहराती है, लेकिन पवित्र यूखरिस्त से बहती करुणा की उस नज़र में, मुझे खुद को कम दोषी ठहराने के लिए आमंत्रित किया जाता है क्योंकि ईश्वर दोष नहीं लगाता है। मुझे लगता है कि पवित्र यूखरिस्त के संपर्क में लगातार जीवन भर रहने से इस सोच में मैं विकसित हो रही हूँ।
इस प्रकार यूखरिस्तीय आराधना मेरे लिए ईश्वरीय उपस्थिति का एक विद्यालय बन गई है। हम जहाँ भी जाते हैं, येशु 100% मौजूद होते हैं, लेकिन जब मैं उनकी यूखरिस्तीय उपस्थिति में बैठती हूँ, तो मैं अपनी और उनकी उपस्थिति के प्रति सतर्क हो जाती हूँ। वहाँ, उनकी उपस्थिति की मुलाक़ात मेरी उपस्थिति से जानबूझकर होती है। दूसरों से कैसे संपर्क करें, इस संदर्भ में भी उपस्थिति का यह एक प्रकार का प्रशिक्षण रहा है।
जब मैं अस्पताल या धर्मशाला में ड्यूटी पर होती हूँ और किसी बहुत बीमार व्यक्ति से मिलती हूँ, तो उस व्यक्ति के लिए बिना किसी उत्कंठा या चिंता की उपस्थिति बनना ही एकमात्र उपहार है जो मैं उसे दे सकती हूँ। मैं आराधना में येशु की उपस्थिति से यह तरीका सीखती हूँ। मेरे अंदर के येशु मुझे बिना किसी एजेंडे के उनके लिए उपस्थित होने में मदद करते हैं – बस उस व्यक्ति के साथ, उसके स्थान पर ‘होना’ या उपस्थित रहना। यह मेरे लिए एक महान उपहार रहा है क्योंकि यह मुझे दूसरों के साथ प्रभु की उपस्थिति लगभग बनने और प्रभु को मेरे माध्यम से उनकी सेवा करने की अनुमति देता है।
जो शांति का उपहार वह मुझे देते हैं, उसकी कोई सीमा नहीं है। जब मैं रुक जाती हूँ और उसकी शांति को अपने ऊपर बहने देती हूँ, तभी उसकी कृपा होती है। जब मैं बहुत अधिक व्यस्त रहना छोड़ देती हूँ, तब मैं यूखरिस्तीय आराधना में ऐसा महसूस करती हूँ। मुझे लगता है कि मेरे अब तक के जीवन में, यही निमंत्रण है: ‘इतना व्यस्त रहना छोड़ दो और बस मेरे साथ उपस्थित रहो, और बाकी सब मुझे करने दो।’
'पृथ्वी पर हमारे जीवन में विपत्तियाँ आती रहती हैं, लेकिन ईश्वर ऐसा क्यों होने देता है?
लगभग दो साल पहले, मैं अपने खून की वार्षिक जांच के लिए गयी थी और जब जांच का परिणाम आया, तो मुझे बताया गया कि मुझे ‘मायस्थेनिया ग्रेविस’ बीमारी है। बढ़िया नाम! लेकिन न तो मैंने और न ही मेरे किसी मित्र या परिवार ने इसके बारे में कभी सुना था।
मैंने उन सभी संभावित भयावहताओं की कल्पना की जो आगे के समय में मेरे लिए हो सकती हैं। निदान के समय, मैं 86 की थी। इतने वर्षों तक जीवन के अंतर्गत, मेरे जीवन में मुझे कई झटके लगे थे। छह लड़कों का पालन-पोषण चुनौतियों से भरा था, और ये चुनौतियां तब भी जारी रहीं जब मैंने उन्हें अपने अपने परिवार को बनाते और बढाते देखा। मैं कभी निराश नहीं हुई; पवित्र आत्मा की कृपा और शक्ति ने मुझे हमेशा वह शक्ति और विश्वास दिया जिसकी मुझे आवश्यकता थी।
आखिरकार मैं ‘मायस्थेनिया ग्रेविस’ के बारे में अधिक जानने के लिए श्रीमान गूगल महोदय पर निर्भर हो गयी और क्या हो सकता है, इसके बारे में कुछ पन्नों को पढ़ने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मुझे बस अपने डॉक्टर पर भरोसा करना होगा। बदले में, मेरे डॉक्टर ने मुझे एक विशेषज्ञ के हाथों में सौंप दिया। मैं नए नए विशेषज्ञों के साथ एक कठिन रास्ते से गुजरी, गोलियाँ बदली, अस्पताल के अधिक चक्कर काटे, और अंततः मुझे अपना ड्राइविंग लाइसेंस छोड़ना पड़ा। द्रविंग लाइसेंस के बिना मैं आगे का जीवन कैसे जी पाऊंगी? मैं ही वह व्यक्ति थी जो दोस्तों को विभिन्न कार्यक्रमों में ले जाती थी।
अपने डॉक्टर और परिवार के साथ बहुत चर्चा करने के बाद, मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि नर्सिंग होम में दाखिला लेने के लिए अपना नाम दर्ज कराने का समय आ गया है। मैंने टाउन्सविले में लोरेटो नर्सिंग होम को चुना क्योंकि वहां मुझे अपने विश्वास को पोषित करने के अवसर मिलेंगे। मुझे कई राय और सलाह का सामना करना पड़ा – सभी वैध, लेकिन मैंने पवित्र आत्मा से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। मुझे लोरेटो होम में स्वीकार कर लिया गया और मुझे जो भी प्रस्ताव दिये गये थे, उन्हें स्वीकार करने का मैंने मन बना लिया। यहीं पर मेरी मुलाकात फेलिसिटी से हुई।
मौत के करीब का अनुभव
कुछ साल पहले, टाउन्सविले में बाढ़ आई थी। 100 साल में एक बार हुई इस बाढ़ में टाउन्सविले का एक नया उपनगर पानी में डूब गया था, जिसमें ज़्यादातर घर जलमग्न हो गए थे। फेलिसिटी का घर, उपनगर के बाकी घरों की तरह, बहुत नीचे था, इसलिए उसके पूरे घर में लगभग 4 फ़ीट पानी भर गया था। जब टाउन्सविले में फ़ौज की छावनी के सैनिकों ने बड़े पैमाने पर सफाई का काम संभाला, तो सभी निवासियों को किराए पर वैकल्पिक आवास ढूँढ़ना पड़ा। फ़ेलिसिटी अगले छह महीनों के दौरान तीन अलग-अलग किराये के मकानों में रही, साथ ही सैनिकों की मदद करने और अपने घर को फिर से रहने लायक बनाने की दिशा में काम करती रही।
एक दिन, उसे अस्वस्थ महसूस होने लगा और उसके बेटे, ब्रैड ने डॉक्टर को फ़ोन किया। डॉक्टर ने सलाह दी कि अगर हालात ठीक न हों तो उसे अस्पताल ले जाना चाहिए। अगली सुबह, ब्रैड ने उसे फर्श पर लेटी हुई पाया। फ़ेलिसिटी का चेहरा सूजा हुआ था। ब्रैड ने तुरंत एम्बुलेंस बुलाया। कई परीक्षणों के बाद, उसे ‘एन्सेफेलाइटिस’, ‘मेलियोइडोसिस’ और ‘इस्केमिक अटैक’ का पता चला और वह हफ़्तों तक बेहोश रही।
छह महीने पहले वह जिस दूषित बाढ़ के पानी में से होकर चलती थी, पता चला कि उसी की वजह से उसकी रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में संक्रमण हो गया था। जैसे-जैसे वह होश में आती-जाती रही, फेलिसिटी को एक तरह से मौत का अनुभव हुआ:
“जब मैं बेहोश पड़ी थी, मैंने महसूस किया कि मेरी आत्मा मेरे शरीर को छोड़ रही है। यह पानी में तैर कर बाहर आई और एक खूबसूरत आध्यात्मिक स्थान पर बहुत ऊपर उड़ गई। मैंने देखा कि दो लोग मेरी ओर देख रहे हैं। मैं उनकी ओर गई। वे मेरे माता-पिता थे – वे बहुत युवा लग रहे थे और मुझे देखकर बहुत खुश थे। जब वे एक तरफ खड़े हुए, तो मैंने कुछ अद्भुत देखा, प्रकाश का एक आश्चर्यजनक चेहरा। यह परमेश्वर पिता था। मैंने हर जाति, हर नस्ल, हर देश के लोगों को जोड़े में चलते देखा, कुछ ने एक दुसरे के हाथ थामे हुए थे।
जब मैं उठी, तो यह सोचते हुए कि मैंने शांति और प्रेम की उस खूबसूरत जगह को छोड़ दिया, मैं निराश थी। मैं उस जगह को स्वर्ग मान रही थी। अस्पताल में बिताई गई पूरे समय के दौरान मेरी आत्मिक देखभाल करने वाले पुरोहित ने कहा कि जागने पर जिस प्रकार की प्रतिक्रया मैं ने की थी उस प्रकार की प्रतिक्रया उन्होंने कभी किसी को करते नहीं देखा।”
विपत्ति अच्छाई में बदल जाती है
फेलिसिटी कहती है कि उसे हमेशा से ही विश्वास था, लेकिन असंतुलन और अनिश्चितता का यह अनुभव ईश्वर से यह पूछने के लिए पर्याप्त था: “प्रभु, तू कहाँ है?” 100 साल में एक बार आनेवाली बाढ़ का आघात, उसके बाद की व्यापक सफाई, किराए के मकान में रहती हुई अपने घर के पुनर्निर्माण में बिताए गए महीने, यहाँ तक कि अस्पताल में बिताए गए नौ महीने – जिसके बारे में उसे बहुत कम याद है – इन सबके कारण उसके विश्वास की मृत्यु हो सकती थी। लेकिन वह मुझे दृढ़ विश्वास के साथ बताती है: “मेरा विश्वास पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गया है।” वह याद करती है कि यह उसका विश्वास ही था जिसने उसे जिस दौर से वह गुज़री उससे निपटने में मदद की: “मुझे लगता है कि मैं बच गई और वापस आ गई, ताकि अपनी खूबसूरत पोती को कैथलिक हाई स्कूल में जाते और बारहवीं कक्षा पूरी करते देख सकूँ। अब वह विश्वविद्यालय जा रही है!”
विश्वास सभी चीज़ों पर भरोसा करता है, सभी चीज़ों को ठीक करता है, और विश्वास कभी खत्म नहीं होता।
फेलिसिटी के कारण ही मुझे एक ऐसे सामान्य प्रश्न का उत्तर मिला जिसका सामना हम सभी को जीवन में कभी न कभी करना पड़ सकता है: “ईश्वर क्यों बुरी घटनाओं को होने देते हैं?” मैं कहूंगी कि ईश्वर हमें स्वतंत्र इच्छाशक्ति देता है। मनुष्य बुरी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं, बुरे काम कर सकते हैं, लेकिन हम परिस्थिति को बदलने, मनुष्यों के दिलों को बदलने के लिए ईश्वर को पुकार भी सकते हैं।
सच तो यह है कि अनुग्रह की पूर्णता में, वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अच्छाई ला सकता है। जिस तरह से वह मुझे फेलिसिटी से मिलने और उसकी खूबसूरत कहानी सुनने के लिए नर्सिंग होम में ले गया, और जिस तरह से फेलिसिटी ने अस्पताल में अंतहीन महीनों बिताने के दौरान विश्वास में ताकत पाई, ईश्वर आपकी प्रतिकूलताओं को भी अच्छाई में बदल सकता है।
'जब मैं तीन साल की थी तब मेरी ज़िंदगी उलट-पुलट हो गई थी। एक दिन मैं उससे मिली, और उसके बाद सब कुछ बदल गया!
तीन साल की उम्र में, मुझे तेज़ बुखार हुआ और उसके बाद अचानक दौरा पड़ा, जिसके बाद मेरे चेहरे पर पक्षाघात के लक्षण दिखने लगे। जब मैं पाँच साल की हुई, तब मेरा चेहरा दिखने में बिगड़ा हुआ लगा। ज़िंदगी सहज नहीं रही।
जैसे-जैसे मेरे माता-पिता नए-नए अस्पतालों में जाते रहे, मुझे जो दर्द और मानसिक क्षति हुई, उसे सहना बहुत मुश्किल हो गया—बार-बार पूछे जाने वाले सवाल, अजीबोगरीब नज़रें, हर बार नई दवाओं के प्रभाव और दवा खाने के बाद के बुरे असर…
तन्हाई में
मुझे अकेले रहना सहज था, क्योंकि विडंबना यह है कि, समूहों में मुझे अकेलापन महसूस होता था। मुझे इतना डर लगता था कि अगर मैं उन्हें देखकर मुस्कुराऊँ तो पड़ोस के बच्चे ज़ोर से रो पड़ेंगे। मुझे याद है कि मेरे पिताजी हर रात घर पर मिठाई लाते थे ताकि मुझे कड़वाहट से भरी अप्रिय दवा पीने में मदद मिल सके। फिजियोथेरेपी सत्रों के लिए अस्पताल के गलियारों में मेरी माँ के साथ साप्ताहिक सैर कभी भी सप्ताहांत की यात्रा नहीं थी – हर बार जब उत्तेजक पदार्थ से कंपन मेरे चेहरे पर पड़ती, तो आँसू बहने लगते।
कुछ खूबसूरत व्यक्तित्व थे जिन्होंने मेरे डर और दर्द को शांत किया, जैसे मेरे माता-पिता, जिन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। वे मुझे हर संभव अस्पताल ले गए, और हमने कई तरह के उपचार आजमाए। बाद में, जब न्यूरोसर्जरी का सुझाव दिया गया मैंने उन्हें तब भी आशंका से टूटते हुए देखा ।
जीवन में पहली बार मुझे लगा कि मैं कहीं और जी रही हूँ। मुझे कुछ करना था। इसलिए, कॉलेज के पहले सेमेस्टर में, इसे और सहन न कर पाने के कारण, मैंने दवाएँ बंद करने का फ़ैसला किया।
सुंदरता की खोज
जब मैंने दवाएँ लेना बंद कर दिया, तो मुझे अपने दम पर मेरे जीवन का निर्माण करने की तीव्र इच्छा हुई। मैंने एक नए जीवन का स्वागत किया, लेकिन इसे कैसे जीना चाहिए, इस बारे में मुझे बिलकुल भी जानकारी नहीं थी। मैंने ज़्यादा लिखना, ज़्यादा सपने देखना, ज़्यादा पेंटिंग करना और जीवन के सभी कमज़ोर क्षेत्रों में रंगों की खोज करना शुरू कर दिया। वे दिन थे जब मैंने जीसस यूथ मूवमेंट (वैटिकन द्वारा स्वीकृत एक अंतर्राष्ट्रीय कैथलिक युवा आंदोलन) में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया; मैंने धीरे-धीरे सीखना शुरू किया कि कैसे खुद को ईश्वर के प्यार के लिए खोलना है और फिर से प्यार महसूस करना है…
कैथलिक जीवनशैली के महत्व के एहसास ने मुझे अपना उद्देश्य समझने में मदद की। मैंने फिर से यह मानना शुरू कर दिया कि मैं अपने साथ हुई हर चीज़ से कहीं बढ़कर हूँ। इन दिनों, जब मैं बंद दरवाज़ों से चिह्नित उन पलों को देखती हूँ, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ कि प्रत्येक अस्वीकृति के भीतर, येशु की दयालु उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, वे मुझे अपने असीम प्रेम और समझ से ढँक रहे थे। मैं कौन या क्या बन गयी हूँ और किन घावों से मेरी चंगाई हुई है, इसे मैं पहचानती हूँ।
टिके रहने का कारण
हमारा प्रभु कहता है: “तुम मेरी दृष्टि में मूल्यवान हो और महत्त्व रखते हो। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। इसलिए मैं तुम्हारे बदले मनुष्यों को देता हूँ, और तुम्हारे प्राणों के लिए राष्ट्रों को देता हूँ। नहीं डरो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” (इसायाह 43:4-5)
अपनी असुरक्षाओं में उसे ढूँढ़ना कभी भी आसान काम नहीं था। आगे बढ़ने के लिए बहुत से कारण होने के बावजूद, टिके रहने का कोई कारण खोजने में मैं व्यस्त रही। और इस कारण मुझे अपनी कमज़ोरियों के बीच जीने की शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। मसीह में अपना मूल्य, सम्मान और आनंद पाने की यात्रा बस अद्भुत थी। हम अक्सर संघर्षों से गुजरने के बाद भी अनुग्रह न मिलने की शिकायत करते हैं। मुझे लगता है कि यह सब संघर्षों को समझने के बारे में है। बिना किसी प्रकार के क्रोध के जीवन में थोड़े से भी समायोजन में ईमानदारी व्यक्त करना आपके जीवन में प्रकाश लाता है।
यह एक लंबी यात्रा थी। जबकि प्रभु अभी भी मेरी कहानी लिख रहा है, मैं हर दिन और अधिक को अपनाना, बिना किसी बाधा के आगे बढ़ना और जीवन में छोटी-छोटी खुशियों के लिए जगह बनाना सीख रही हूँ। मैं जिन ज़रूरतों की चाह रखती हूँ, अब मेरी प्रार्थनाओं में उन ज़रूरतों की निरंतर मांग नहीं करती हूँ। इसके बजाय, मैं उनसे कहती हूँ कि हे प्रभु मुझे इस तरह से होने वाले बदलावों के लिए ‘आमेन’ कहने के लिए मज़बूत करें।
मैं प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे मेरे भीतर और आस-पास के सभी नकारात्मक प्रभावों से ठीक करे और मुझे बदल दे।
मैं प्रभु से अपने उन खो गए हिस्सों को पुनर्जीवित करने के लिए कहती हूँ।
जिन मुसीबतों से मैं गुज़री हूँ, उन सभी बातों के लिए , दिन के हर मिनट में मुझे मिलने वाले सभी आशीर्वादों के लिए, और मैं जो व्यक्ति बन गयी हूँ उसके लिए भी प्रभु का शुक्रिया अदा करती हूँ।
और मैं अपने पूरे दिल और आत्मा से उससे प्यार करने की पूरी कोशिश कर रही हूँ।
'‘पाँच मिनट के लिए टाइमर सेट करें और इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें।’ आप सोच रहे होंगे कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ।
कभी–कभी, हम ईश्वर से उन लोगों के बारे में बात करना भूल जाते हैं जिन्हें ईश्वर हमारे जीवन में ले आते हैं। कई बार, मैं यह भूल जाती हूँ। ईश्वर की कृपा से, एक दिन मेरे दिल में शांति की कमी के बारे में कुछ करने का मैंने फैसला किया ।
कई साल पहले, अपने जीवन में एक व्यक्ति के कारण, मैं मुश्किल समय से गुज़र रही थी। इसके बारे में मैं अधिक वर्णन नहीं करूंगी । मेरी समस्या यह थी कि यह मुद्दा वास्तव में मुझे परेशान करता था। क्या आप कभी ऐसी स्थिति में रहे हैं? मैंने इसके बारे में एक पुरोहित से बात करने का फैसला किया और मैं पाप स्वीकार के लिए गई। मेरे पाप स्वीकार को सुनने के बाद, पुरोहित ने मुझे क्षमा दी और प्रायश्चित केलिए कुछ सुझाव दिए ।
अनुमान लगाइए कि मेरा प्रायश्चित क्या था? उनका सुझाव था: ‘टाइमर सेट करो’! “मैं चाहता हूँ कि आप इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करने में पाँच मिनट बिताएँ।”
पाँच मिनट
पाँच मिनट? वाह! दृढ़ निश्चय के साथ मैंने खुद से कहा, मैं यह आसानी से कर सकती हूँ। मैं गिरजाघर से बाहर निकली और अपनी कार में चली गयी। मैंने अपनी घड़ी पाँच मिनट के लिए सेट की, और तुरंत, मैं फंस गयी । वाह, यह वास्तव में कठिन है! लेकिन, धीरे–धीरे, मुझे इस व्यक्ति के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के छोटे–छोटे तरीके मिल गए। मैंने अपनी घड़ी देखी… उफ़, केवल एक मिनट बीता था। मैंने पूरे दिल से प्रार्थना करना जारी रखा। मैं यह करना चाहती हूँ! फिर से, मैंने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू कर दिया। जैसे–जैसे मिनट धीरे–धीरे बीतते गए, यह सरल और आसान होता गया। मेरे पाँच मिनट अभी भी पूरे नहीं हुए थे। दृढ़ निश्चय की नई भावना के साथ आगे बढ़ते हुए, मैंने पाया कि मैं छोटी–छोटी कठिनाइयों के लिए भी ईश्वर को धन्यवाद दे पा रही थी। अंदर, मेरा दिल उछल रहा था! इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते समय, वास्तव में मेरे दिल को बदलने का काम हो रहा था। मैं इन कठिनाइयों से इतना क्यों घिरी हुई थी? मैं ने अनुभव किया कि वह वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति है।
स्मृतियाँ
मुझे अक्सर वह दिन याद आता है। जब मैं किसी के साथ कठिनाइयों का सामना करती हूँ, तो मैं ने उस विशेष तपस्या से जो सीखा था उसे लागू करने का प्रयास करती हूँ। क्या आपको वह वादा याद है जब हम पश्चाताप के कार्य का पाठ करते हैं? हमारे पापों से मुक्त होने से पहले वे अंतिम शब्द? “… मैं आपकी कृपा की सहायता से अपने पापों को स्वीकार करने, प्रायश्चित करने और अपने जीवन को सुधारने का दृढ़ संकल्प करता हूँ। आमेन।”
कोई किसी कठिनाई से गुज़र रहा है, उसके उस अनुभव के बारे में मैं जब सोचती हूँ, तो मैं रुक जाती हूँ, टाइमर सेट करती हूँ, और पाँच मिनट बिताकर उनके लिए ईश्वर का धन्यवाद करती हूँ। यह हमेशा मुझे आश्चर्यचकित करता है कि ईश्वर इतने कम समय में मेरे दिल को कैसे बदल सकता है। येशु ने उन्हें देखा और कहा: “मनुष्यों के लिए यह असंभव है, लेकिन परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है।” (मत्ती 19:26)
धन्यवाद येशु, उस पुरोहित के लिए जो कभी–कभी हमें एक कठिन लेकिन बहुत जरूरी प्रायश्चित देता है।
धन्यवाद येशु, तेरे स्वास्थ्य दायक स्पर्श के लिए।
धन्यवाद, येशु, हर उस व्यक्ति के लिए जिसे तू ने हमारे मार्ग पर रखा।
धन्यवाद, येशु, हमें इतना प्यार करने के लिए!
पाँच मिनट इतने कम समय थे और दिल की शांति का इतने बड़े इनाम को पाने के लिए वह बहुत कम समय था।
“येशु ने उनसे फिर कहा, ‘तुम्हें शांति मिले!'” (योहन 20:21)
'उसे क्रोनिक सनकी बाध्यता विकृति (ओ.सी.डी.) का पता चला और उसे जीवन भर दवाएँ देनी पड़ीं। फिर, कुछ अप्रत्याशित घटित हुआ
1990 के दशक में, मुझे ऑब्सेसीव कम्पल्सीव डिसऑर्डर (ओ.सी.डी.) अर्थात सनकी बाध्यता विकृति का पता चला। डॉक्टर ने मुझे दवाएँ दीं और मुझसे कहा कि मुझे जीवन भर उन दवाओं को लेना होगा। कुछ लोग सोचते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इसलिए होती हैं क्योंकि आप में विश्वास की कमी है, लेकिन मेरे विश्वास में कुछ भी गलत नहीं था। मैं हमेशा ईश्वर से बहुत प्यार करती थी और सभी बातों में उस पर भरोसा करती थी, लेकिन मुझे एक स्थायी अक्षम्य अपराधबोध भी महसूस होता था। दुनिया में जो कुछ भी गलत था वह मेरी गलती थी, ऐसी धारणा से मैं छुटकारा नहीं पा रही थी।
मेरे पास कानून की डिग्री थी, लेकिन मेरा दिल कभी वहां नहीं था। मैंने अपनी मां को खुश करने के लिए कानून की पढ़ाई शुरू की थी। माँ ने सोचा था कि अध्यापन का पेशा मेरे लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए मैं ने क़ानून की पढ़ाई की। लेकिन इस बीच मैंने शादी कर ली थी और पढ़ाई पूरी होने से ठीक पहले मैंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था, फिर एक के बाद एक, सात खूबसूरत बच्चों को जन्म दिया, इसलिए मुझे कानून के पेशे में काम करने की शिक्षा कम मिली, उसकी तुलना में मां बनने की प्रशिक्षण पाने में अधिक समय मैं ने बिताया। जब हमने ऑस्ट्रेलिया में घर बसाया, तो वहां का कानून अलग था, इसलिए, मैं अंततः अपना पहला प्यार, यानी अध्यापन की पढ़ाई करने के लिए विश्वविद्यालय वापस चली गयी। जब मुझे मेरी पसंदीदा नौकरी मिली, तब भी मुझे लगा कि मैं अपने अस्तित्व को सही ठहराने केलिए पैसा कमाने की कोशिश कर रही हूं। किसी तरह, मुझे नहीं लगा कि अपने परिवार की देखभाल करना और मेरे जिम्मे में सौंपे गए लोगों का पालन-पोषण करना ही काफी था। वास्तव में, मेरे भयावह अपराधबोध और अपर्याप्तता की भावना के साथ, कभी भी मुझे कुछ भी सही और खुशनुमा महसूस नहीं हुआ।
बिल्कुल अप्रत्याशित
हमारे परिवार के आकार के कारण, छुट्टी पर जाना हमेशा आसान नहीं होता था, इसलिए जब हमने पेम्बर्टन में कैरी होम के बारे में सुना तो हम उत्साहित हो गए, वहां का नियम यह है कि आपकी जितनी क्षमता है उतने ही दान का आप भुगतान करें। यह जंगलों के करीब बसा हुआ एक खूबसूरत इलाका था। हमने सप्ताहांत पारिवारिक साधना पर जाने की योजना बनाई। पर्थ में भी उनका एक प्रार्थना और आराधना समूह था। जब मैं शामिल हुई तब उन्होंने मेरा बहुत अच्छा स्वागत किया।
वहाँ, साधना के दौरान, कुछ बिल्कुल अप्रत्याशित और जबरदस्त घटित हुआ। थोड़ी देर पहले ही मुझ पर प्रार्थना की गयी थी और मैं अचानक ज़मीन पर गिर पड़ी। कोख में पल रहे भ्रूण की तरह फर्श पर लुढ़की हुई, मैं लगातार चिल्लाती रही। वे मुझे बाहर लकड़ी के बने पुराने जर्जर बरामदे में ले गए और तब तक प्रार्थना करते रहे जब तक कि मैंने चिल्लाना बंद नहीं कर दिया।
यह पूरी तरह से अनचाहा और अप्रत्याशित था। लेकिन मैं जानती थी कि उस बंधन से मेरी मुक्ति हो चुकी थी।
मैं बस सुकून देनेवाला खालीपन महसूस कर रही थी, मानो मुझसे कोई बड़ा बोझ उतर कर निकल गया हो। उस साधना के बाद, मेरे दोस्त लोग मेरा हालचाल लेते रहे और मेरे लिए प्रार्थना करने आए और माँ मरियम से मध्यस्थता की प्रार्थना की, ताकि पवित्र आत्मा के वरदान मुझमें प्रकट हो जाएं। मुझे इतना बेहतर महसूस हुआ कि एक या दो सप्ताह के बाद, मैंने दवा की खुराक कम करने का फैसला लिया। तीन महीने के भीतर, मैंने दवा लेना बंद कर दिया और मुझे पहले से बेहतर महसूस हुआ।
मैं बर्फ की तरह पिघल गयी
मुझे अब खुद को साबित करने या यह दिखावा करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई कि मैं पहले से बेहतर हूँ। मुझे नहीं लगा कि मुझे सभी बातों में उत्कृष्टता हासिल करनी है। मैं जीवन के उपहार, अपने परिवार, अपने प्रार्थनाशील समुदाय और ईश्वर के साथ इस जबरदस्त संबंध के लिए आभारी हूं। अपने अस्तित्व को उचित ठहराने की आवश्यकता से मुक्त होकर, मुझे एहसास हुआ कि इसकी बिलकुल ज़रुरत नहीं है। यह जिन्दगी एक बड़ा उपहार है – जीवन, परिवार, प्रार्थना, ईश्वर के साथ संबंध – ये सभी उपहार हैं, कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे आप कभी अर्जित करने जा रहे हैं। आप इसे स्वीकार करते हैं और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।
मैं एक बेहतर इंसान बन गयी। मुझे दिखावा करने, प्रतिस्पर्धा करने या अहंकारपूर्वक इस बात पर ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं थी कि मेरा तरीका सबसे अच्छा था। मुझे एहसास हुआ कि मुझे दूसरे व्यक्ति से बेहतर नहीं बनना है क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ईश्वर मुझसे प्यार करता है, ईश्वर मेरी परवाह करता है। अपने अक्षम करने वाले अपराधबोध की पकड़ से बाहर आकर, मुझे तब से एहसास हुआ है कि “अगर ईश्वर मुझे नहीं चाहता, तो उसने किसी और को बना दिया होता।”
मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता हमेशा ही दुविधापूर्ण रहा। मैं स्वयं एक माँ बनने के बाद भी, अभी भी दुविधा की इन भावनाओं से जूझ रही थी। लेकिन इस अनुभव ने मेरे लिए सब कुछ बदल दिया। जैसे ईश्वर ने येशु को दुनिया में लाने के लिए मरियम को चुना, उसने मेरे रास्ते में मेरी मदद करने के लिए माँ मरियम को चुना। मेरी माँ और बाद में पवित्र माँ मरियम के साथ संबंधों से मेरी समस्याएँ धीरे-धीरे दूर हो गईं।
मैं ने महसूस किया कि मैं सलीब के नीचे खड़े योहन की तरह हूँ; जब येशु ने उससे कहा: “देख यह तुम्हारी माता है।” मैंने माँ मरियम को एक आदर्श माँ के रूप में जाना है। अब, जब कभी मेरा दिमाग विफल हो जाता है, तो रोज़री माला मुझे बचाने के लिए आगे आती है! जब मैंने उसे अपने जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बना लिया, तभी मुझे एहसास हुआ कि मुझे उसकी कितनी ज़रूरत है। अब, मैं मां से अलग रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
'उन दिनों जब मैं छोटी लड़की थी, मैं एक सुपरहीरो बनना चाहती थी। लेकिन उम्र में आगे बढ़ती हुई, अंततः मैंने स्वीकार कर लिया कि वह एक बच्ची का मूर्खतापूर्ण सपना था, जब तक…
जब मैं बच्ची थी, मैं शनिवार की सुबह जल्दी उठकर कार्टून सीरियल ‘सुपर-फ्रेंड्स’ देखती थी, जो दुनिया को बचाने वाले सूपर हीरो लोगों के एक समूह के बारे में कार्टून था। मैं बड़ी होकर सूपर हीरो बनना चाहती थी। मैं कल्पना करती थी कि मुझे एक संकेत मिलता है कि किसी को मदद की ज़रूरत है और मैं तुरंत उनकी सहायता के लिए उड़ान भरती हूं। मैंने टीवी पर जितने भी सूपर हीरो देखे, वे गुप्त या छिपे छिपे रहते थे। दुनिया को वे उबाऊ जीवन जीने वाले सामान्य लोगों की तरह लग रहे थे। हालाँकि, मुसीबत के समय में, वे तुरंत जुट जाते थे और बुरे लोगों के हाथों से मानवता को बचाने के लिए एकजुट होकर कर काम करते थे।
एक बार जब मैं बड़ी हुई, तो मुझे पता चला कि कार्टूनों के सूपर हीरो काल्पनिक पात्र थे। मैंने अपनी मूर्खतापूर्ण धारणाओं को त्याग दिया… और, एक दिन, मेरी मुलाकात एक सच्चे सूपर हीरो से हुई, जिसने मेरी आँखें खोल दीं। मैं कभी-कभी स्थानीय गिरजाघर में सतत आराधना के प्रार्थनालय में प्रार्थना करने के लिए जाती थी। चूँकि परम प्रसाद की आराधना के दौरान किसी को हर समय उपस्थित रहना होता है, स्वयंसेवक थोड़े-थोड़े अंतराल के लिए साइन-अप करते हैं। अपनी कई यात्राओं के दौरान, मैंने व्हीलचेयर पर एक वृद्ध व्यक्ति को देखा जो प्रार्थनालय में बैठकर घंटों प्रार्थना करते थे। वे लगभग 90 वर्ष के लग रहे थे। समय-समय पर, वे एक बैग से अलग-अलग चीजें निकालते थे – कभी बाइबिल, कभी रोज़री माला, और कभी कागज का एक टुकड़ा जो मुझे लगता है कि एक प्रार्थना सूची थी। मैं सोचने लगी कि जब वे युवावस्था में थे, और शारीरिक रूप से स्वस्थ थे, तो उन्होंने किस तरह का काम किया होगा। उन्होंने पहले जो कुछ भी किया होगा, वह संभवतः उतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना वे अब कर रहे थे। मुझे एहसास हुआ कि हममें से अधिकांश लोग इधर-उधर भागने में व्यस्त थे, और हमारी तुलना में व्हीलचेयर पर बैठा यह सज्जन कहीं अधिक महत्वपूर्ण काम कर रहा था।
गुप्त सूपर हीरो सादे वेश में छिपे हुए थे! इसका मतलब यह है कि मैं भी सुपरहीरो बन सकती हूं, हाँ प्रार्थना की सूपर हीरो।
त्वरित निवेदन का जवाब
मैंने गिरजा घर की प्रार्थना श्रृंखला में शामिल होने का फैसला किया। यह उन लोगों का एक समूह है जो निजी तौर पर दूसरों के लिए मध्यस्थ प्रार्थना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इनमें से कई प्रार्थना योद्धा बुजुर्ग हैं। कुछ विकलांग लोग हैं. कुछ लोग जीवन के ऐसे दौर में होते हैं जहां वे विभिन्न कारणों से घर में ही रहते हैं। हमें प्रार्थना का अनुरोध करनेवाले लोगों के नामों की ईमेल सूचनाएं मिलती हैं। जब किसी को मदद की ज़रूरत होती है, तो हमें एक संकेत मिलता है, ठीक उन कार्टूनों के सूपर हीरो की तरह, जिन्हें मैंने बहुत पहले देखा था।
प्रार्थना अनुरोध दिन के हर समय आते हैं: श्रीमान फलाना एक सीढ़ी से गिर गए और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है; अमुक श्रीमती को कैंसर हो गया है; किसी का पोता किसी कार दुर्घटना में चोटिल हो गया है; नाइजीरिया में किसी व्यक्ति के भाई का अपहरण कर लिया गया है; तूफानी बवंडर में किसी परिवार ने अपना घर खो दिया है आदि इत्यादि। ज़रूरतों की बहुत लम्बी फेहरिश्त।
हम मध्यस्थ के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं। जैसे ही हमें प्रार्थना का निवेदन मिलता है, तुरंत हम जो कुछ भी कर रहे हैं उसे रोक देते हैं और प्रार्थना करते हैं। हम प्रार्थना योद्धाओं की एक सेना हैं। हम अंधकार की अदृश्य शक्तियों से लड़ रहे हैं। इस प्रकार, हम परमेश्वर के पूर्ण कवच धारण करते हैं और आध्यात्मिक हथियारों से लड़ते हैं। हम उन लोगों की ओर से प्रार्थना करते हैं जिन्हें ज़रूरत है। दृढ़ता और समर्पण के साथ, हम लगातार अपनी याचिकाएँ ईश्वर को सौंपते हैं।
हीरो प्रभाव
क्या प्रार्थना से कोई फर्क पड़ता है? समय-समय पर, हमें उन लोगों से प्रतिक्रिया मिलती है जिन्होंने प्रार्थना का अनुरोध किया है। नाइजीरिया में अपहृत व्यक्ति को एक सप्ताह के भीतर रिहा कर दिया गया। कई लोग चमत्कारी चंगाई का अनुभव करते हैं। सबसे बढ़कर, दुख के समय में लोगों को मजबूती मिलती है और उन्हें सांत्वना मिलती है। येशु ने प्रार्थना की, और दुनिया में क्रांति ला दी! प्रार्थना उनकी चंगाई, मुक्ति और जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करने की सेवा का हिस्सा थी। येशु पिता के साथ निरंतर संचार-संपर्क में थे। उन्होंने अपने शिष्यों को भी प्रार्थना करना सिखायी।
प्रार्थना हमें ईश्वर के दृष्टिकोण को समझने और अपनी इच्छा को उसके दिव्य स्वभाव के साथ समन्वय स्थापित करने की अनुमति देती है। और जब हम दूसरों के लिए मध्यस्थता करते हैं, तो हम मसीह के प्रेम की सेवा में उसके भागीदार बन जाते हैं। जब हम अपनी चिंताओं को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ईश्वर के साथ साझा करते हैं, तो वातावरण में बदलाव होता है। ईश्वर की इच्छा के साथ एकजुट होकर हमारी वफादार प्रार्थना, पहाड़ों को हिला सकती है।
“हे प्रभु, हम तुझसे प्रार्थना करते हैं कि तू हमारी सहायता कर और हमारी रक्षा कर! दीन दुखियों का उद्धार कर! तुच्छ समझे जाने वाले लोगों पर दया कर! गिरे हुए को उठा ले प्रभु! तू अपने आप को जरूरतमंदों के सम्मुख दर्शन दे! बीमारों को ठीक कर! तेरे लोगों में से जो भटक गए हैं, उन्हें वापस ला! भूखे को खाना खिला दे! कमज़ोरों को ऊपर उठा ले! बंदियों की जंजीरें उतार दे! सभी राष्ट्र जान लें कि केवल तू ही ईश्वर हैं, कि येशु तेरा पुत्र है, कि हम तेरे लोग हैं, हम भेड़ें हैं जिन्हें तू चराता है। आमेन।” (संत क्लेमेंट)
'मुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI”
तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI”
ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI
महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI
मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। “हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।”
अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। “अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।” मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: “येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।”
मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: “मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है – लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।”
सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
'दूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं।
मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था।
हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है।
उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : “ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।”
इसे कभी न छोड़ें
ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है।
मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: “आपका स्वागत है।” मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ।
उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए “भुगतान आगे बढ़ाने” का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है।
हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
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