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ड्राइविंग सीखना मेरे जीवन में बार-बार आने वाली एक बड़ी बाधा थी। इस घटना ने मेरे लिए इसे बदल दिया!
दस साल पहले, ईश्वर ने मुझे पहली बार मेरे होने वाले पति से मुलाक़ात कराई। मैं उस समय श्रीलंका में रह रही थी जबकि वह ऑस्ट्रेलिया में रहता था। प्यार में पड़ने से मिलने वाली नई ऊर्जा से भरकर, श्रीलंका में रहते हुए, ड्राइविंग की तैयारी के लिए एक ड्राइविंग स्कूल में मैंने दाखिला लिया। पहले कभी गाड़ी न चलाने के कारण, मैं चिंतित थी, फिर भी दृढ़ थी, और ईश्वर की कृपा से, मैंने पहले प्रयास में ही अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लिया।
छोटी शुरुआत
ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के तुरंत बाद, मैंने एक स्थानीय ड्राइविंग स्कूल में दाखिला लिया और अभ्यास जारी रखने के लिए एक सेकंड-हैंड कार खरीदी। मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने अपने पति को मुझे सिखाने का मौक़ा दिया। आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि इसका क्या परिणाम हुआ होगा!
चाहे मैं जितनी भी सीखती रही, मेरे अन्दर का डर मुझे पीछे खींचता रहा। मैं तब तक ठीक-ठाक गाडी चलाती थी, जब तक कि कोई कार मेरे पीछे नहीं आ जाती और यह मुझे परेशान कर देता, मानो मैं जांच के दायरे में हूं। मेरी उम्र पच्चीस के आसपास थी| ऐसी उम्र में इस तरह का डर बहुत ही अतार्किक था। पेशेवर ड्राइविंग प्रशिक्षक से सबक लेने से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं अभ्यास करने में हिचकिचाने लगी और मेरी कार धीरे-धीरे धूल जमा करने लगी, जबकि मैं खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि ड्राइविंग मेरे लिए नहीं है। काम पर जाने और वापस आने के लिए, मैंने दो बसें और एक ट्रेन ली, लेकिन खुद को ड्राइव करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। मैंने अपनी कार बेच दी।
हार मानने को तैयार नहीं
यह जीवन शैली स्पष्ट रूप से हमारे लिए काम नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। अब 2017 था और मैंने एक नए प्रशिक्षक के साथ साइन अप किया। लग रहा था कि कुछ सुधार हो रहा है।
हालांकि, मेरा पहला ड्राइविंग टेस्ट फिर से बहुत ही बेचैनी भरा था। मेरा प्रशिक्षक काफी क्रोधित था, और जब परीक्षक मेरे स्कोर का मूल्यांकन करने के लिए चला गया, तो उसने कहा “तुम निश्चित रूप से असफल हो जाओगी”। निराश और भारी मन से, मैं फैसला सुनने के लिए ड्राइविंग सेंटर में चली गयी। परीक्षक ने कहा “आप पास हो गयी हैं”! हैरान और अविश्वास में, मैंने पूरे दिल से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।
मेरे पति भी बहुत खुश थे और मेरे नए आत्मविश्वास के आधार पर हमने फिर से एक सेकंड-हैंड कार खरीदी, बहुत उम्मीद थी कि इस बार यह काम करेगी। इसकी शुरुआत अच्छी रही और फिर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, यह सब वापस आने लगा – घबराहट, डर, झिझक। छह महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बीतने के बाद, मैंने फिर से अपना सारा आत्मविश्वास खो दिया। मैंने अपनी कार बेच दी।
मेरे धैर्यवान पति का मानना था कि मैं अपनी क्षमताओं के साथ न्याय नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल मेरे लिए प्रार्थना की बल्कि जब मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, तब भी उन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा।
उस समस्या के जड़ का पर्दाफाश
साल बीतते गए…2020 में, हम एक ऑनलाइन आतंरिक चंगाई सेवा में भाग ले रहे थे। वह असरदार और प्रभावशाली सेवा अपने अंत के करीब थी, और तब तक मुझे कुछ खास महसूस नहीं हुआ था। यह मेरे पति की प्रार्थना ही रही होगी जिसने स्वर्ग को हिला दिया, क्योंकि जब पुरोहित आंतरिक घावों की चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो मुझे थीम पार्क में बम्पर कार खेलने की एक ज्वलंत घटना की स्पष्ट याद आई। मैं लगभग छह साल की रही होगी और इस खेल को आज़माने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैंने एक छोटी गुलाबी कार को चुना, मैं उसमें कूद गई और खुशी से उसे चला रही थी, जब अचानक मुझे लगा कि पीछे वाली कार बार-बार मेरी कार से टकरा रही है। हालाँकि यह खेल का हिस्सा था, मुझे लगा कि मुझ पर हमला हुआ है, और अब उस वर्तमान क्षण में, मैं उस डरावनी और भयंकर भय और बेचैनी को फिर से महसूस कर रही हूँ जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा मुझे गाड़ी चलाते समय महसूस होता था! मुझे याद है कि मैं अपने पिता को जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए बेचैनी से उकसा रही थी।
यह एक ऐसी याद थी जो उस घटना के बाद से इतने सालों में एक बार भी मेरे मन में नहीं आई थी। मेरी समस्या के मूल कारण से हमारे प्रभु येशु मसीह मुझे ठीक कर रहे थे। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा बयान था कि हमारे पिता परमेश्वर ने गाड़ी चलाने की क्षमता के साथ मेरी सृष्टि की है, जिस पर मैं लगातार सवाल उठाती रही थी। सड़क पर वापस आने के लिए उत्सुक, मैंने अपने पति के साथ लंबी दूरी तक गाड़ी चलाई और इस डर से मेरी मुक्ति स्पष्ट थी। ड्राइविंग में मैं ने अच्छी प्रगति कर ली थी और अब मुझे मेरे पीछे वाली कार से कोई परेशानी नहीं थी।
कोई सोच सकता है कि यही आखिरी झटका था जिसकी अपनी ज़िंदगी को बदलने के लिए मुझे ज़रूरत थी। मैं जितना भी सुधार करने वाली थी, और चूँकि मेरी ड्राइविंग का अभ्यास लगातार नहीं चल रहा था, मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं थी। हमारे नवजात शिशु ने मेरे जीवन का अधिक समय ले लिया था, इसलिए मेरी प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। हम जिस छोटे से शहर के अपार्टमेंट में रहते थे, वह हमारे छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए उपयुक्त नहीं था। हम जो परवरिश उसे देना चाहते थे उस केलिए उपनगरीय जीवन ज़्यादा अनुकूल होगा, और जब तक मैं आसानी से गाड़ी नहीं चला पाती हूँ, तब तक हम यह कदम नहीं उठा सकते हैं।
सैंतो निनोटो द्वारा मेरा बचाव
उस समय मेरी सास हमसे मिलने आई थीं। वे प्राग के शिशु येशु की उत्साही भक्त थी, उन्होंने मुझे शिशु येशु के प्रति नव रोज़ी प्रार्थना (नोवेना) दी, और मैंने चमत्कार के लिए मन्नत रखती हुई प्रतिदिन प्रार्थना की।
नोवेना पूरा करने के तुरंत बाद एक प्रथम शुक्रवार को, हम येशु के पवित्र हृदय के सम्मान में पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए किसी गिरजाघर की तलाश कर रहे थे। हमने जितने भी गिरजाघर देखे वे सभी बंद थे, आखिरकार हम एक ऐसे गिरजाघर में पहुँचे जो न केवल खुला था बल्कि जहां सैंतो निनो* (पवित्र शिशु) का पर्व मनाया जा रहा था।
समारोही पवित्र मिस्सा और गिरजाघर की सारी गतिविधियाँ शिशु येशु के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरी हुई थी। समारोह के अंत में गायक मंडली ने एक शक्तिशाली, गूंजती हुई ढोल की थाप बजाई, जिसने पूरे वातावरण को भर दिया। उस ढोल की हर थाप मेरी आत्मा को छेदती थी और मुझे लगता था कि मेरे सारे डर उड़ गए हैं। एक नया साहस और आशा ने डर की जगह ले ली। मेरा आत्मविश्वास अब मेरी अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं था, बल्कि येशु मेरे भीतर क्या कर सकते हैं, इस पर निर्भर था। मेरी कमियों के बावजूद ईश्वर का अटल प्रेम मेरे पीछे दौड़ रहा था और अब समय आ गया था कि मैं सब कुछ उनके हवाले कर दूँ।
ड्राइविंग प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण के नए सत्रों को पूरा करने के बाद, हमने घर के सारे सामान समेट लिए और उपनगर में चले गए। मेरे पिता और ससुर ने मेरी ड्राइविंग में बाकी बची कुछ कमियों को दूर करने में मेरी मदद की और मेरी माँ ने मेरे लिए प्रार्थना की। लाइसेंस प्राप्त करने के सात साल बाद, मैं अब रोज़ाना आसानी से गाड़ी चला रही हूँ। हाईवे के पाँच लेन वाले हिस्से पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुझे हमारे ईश्वर की अथाह शक्ति और दया की निरंतर याद दिलाता है। सारी महिमा, सम्मान और प्रशंसा येशु को मिले, जिसने स्टीयरिंग व्हील संभाला और मेरे परिवार के जीवन को बदल दिया।
“जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।” – फिलिप्पी 4:13
* सैंतो नीनो डे सेबू शिशु येशु की एक चमत्कारी छवि है, जिसका आदर फिलिपिनो कैथलिक समुदाय द्वारा किया जाता है|
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एक के बाद एक मुसीबत आयी, लेकिन ईश्वर की दया ने इस परिवार को कभी निराश नहीं किया!
दस साल पहले मैंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था, और हम बहुत खुश थे! मुझे आज भी वह दिन याद है; हमें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि यह एक बच्ची है। मेरे परिवार पर ईश्वर के आशीर्वाद के लिए उसका पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे पाती। हर माँ की तरह, मैंने भी अपनी छोटी गुड़िया के लिए प्यारे फ्रॉक, क्लिप और बूटियाँ खरीदने का सपना देखा। हमने उसका नाम ‘एथली’ रखा, जिसका अर्थ है ‘ईश्वर की महिमा हो।’ हम ईश्वर के खूबसूरत उपहार के लिए उनकी स्तुति कर रहे थे।
हमें नहीं पता था कि हमारी खुशी जल्द ही दिल के गहरे दर्द में बदल जाएगी या कि हमारी कृतज्ञता की प्रार्थना जल्द ही हमारे प्यारे बच्चे के लिए उसकी दया की याचिकाओं में बदल जाएगी।
चार महीने की उम्र में, मेरी बेटी गंभीर रूप से बीमार हो गई। कई बार दौरे पड़ने के कारण, वह घंटों रोती रहती थी और ठीक से सो नहीं पाती थी या ठीक से खाना नहीं खा पाती थी। कई जांचों के बाद, यह पाया गया कि उसका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त है; वह ‘वेस्ट सिंड्रोम’ नामक दुर्लभ प्रकार की गंभीर बचपन की मिर्गी से भी पीड़ित थी, जो 4,000 बच्चों में से एक को प्रभावित करती है।
बार-बार के आघात
हमारे लिए वह निदान बहुत चौंकाने वाला और दिल तोड़ने वाला था। मुझे नहीं पता था कि मैं इस तूफान का सामना कैसे कर पाऊँगी। मैं चाहती थी कि मेरा दिल उस भावनात्मक दर्द से सुन्न हो जाए जिससे मैं गुज़र रही थी। मेरे दिमाग में कई सवाल उठे। यह एक लंबी और दर्दनाक यात्रा की शुरुआत थी, जिसके लिए मैं कभी तैयार नहीं थी। मेरी बच्ची लगभग ढाई साल तक दौरे से पीड़ित रही। डॉक्टरों ने कई दवाइयाँ, प्रतिदिन के दर्दनाक इंजेक्शन और खून के कई जांच किए। वह घंटों रोती रहती थी और मैं बस ईश्वर से मेरी बच्ची पर अपनी दया बरसाने के लिए प्रार्थना कर सकती थी। मैं किसी भी तरह से उसे सांत्वना न दे पाने के कारण असहाय महसूस करती थी। ज़िन्दगी ऐसी मालूम हो रही थी मानो कि वह पीड़ा और निराशा का गहरा और अंधा गड्ढा जैसी हो।
आखिरकार उसके दौरे कम हो गए, लेकिन उसे वैश्विक विकास संबंधी विलम्ब का सामना करना पड़ा। जैसे-जैसे उसका इलाज आगे बढ़ रहा था, एक और चौंकाने वाली खबर ने हमारे परिवार को झकझोर कर रख दिया। हमारे बेटे अशर को पहले से ही बोलने में देरी और व्यवहार संबंधी समस्याएँ थीं। अब वह तीन साल का हो गया है और हमें पता चल कि उसे उच्च कार्यशील ऑटिज़्म (हाई-फंक्शनिंग ऑटिज़्म) की बीमारी है ।
हम उम्मीद खोने के कगार पर थे; नए माता-पिता के रूप में हमारे लिए जीवन बहुत भारी लग रहा था। जिस दर्द से हम गुज़र रहे थे, उसे कोई भी नहीं समझ या महसूस नहीं कर सकता था। हम अकेलापन और हताशा महसूस करते थे। हालाँकि, अकेलेपन की यह अवधि और मातृत्व के वे दर्द भरे दिन मुझे ईश्वर के करीब ले आए; ईश्वर के वचन ने मेरी थकी हुई आत्मा को सांत्वना प्रदान की। जिन वादों को मैं अब गहरे अर्थ और पूरी समझ के साथ पढ़ रही थी, उन वादों ने मुझे प्रोत्साहित किया।
आत्मा द्वारा निर्देशित लेखन
मेरे जीवन के इस कठिन समय के दौरान ही ईश्वर ने मेरे जैसी विभिन्न चुनौतियों और पीड़ा से गुज़र रहे लोगों के लिए आस्था से भरे और उत्साहवर्धक ब्लॉग लिखने में मुझे सक्षम बनाया। मेरी दैनिक भक्ति से जन्मे मेरे लेखों में माता पिता की विशेष चुनौतियों को साझा किया गया और मेरे जीवन के अनुभव और अंतर्दृष्टि को शामिल किया गया। ईश्वर ने मेरे शब्दों का उपयोग कई पीड़ाग्रस्त आत्माओं को उपचार दिलाने के लिए किया। मैं ईश्वर के प्रति वास्तव में आभारी हूँ कि उसने मेरे जीवन को उसके प्रेम के लिए एक उपयोगी पात्र में परिवर्त्तित कर दिया।
मैं कहूँगी कि हमारी बेटी की बीमारी की निराशा ने ईश्वर पर हमारे परिवार के विश्वास को मजबूत किया। जब मैं और मेरे पति माता पिता की इस अनोखी यात्रा के अज्ञात मार्ग पर आगे बढ़े, तो हमें केवल ईश्वर के वादों से तथा हमारे दिलों में इस विश्वास से चिपके रहना था कि ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ेगा और न ही हमारा तिरस्कार करेगा। जो कभी राख के ढेर की तरह दिखाई देता था, वह शक्ति की सुंदरता में बदलने लगा, क्योंकि ईश्वर ने हमारे जीवन के सबसे हृदय विदारक और अंधेरे समय के दौरान हमें अपनी कृपा, शांति और खुशी प्रदान की। अकेलेपन के सबसे दर्दभरे क्षणों में, उनके चरणों में समय बिताने से हमें नई आशा और आगे बढ़ने का साहस मिला।
प्रार्थनाओं के उत्तर
वर्षों के उपचार और निरंतर प्रार्थनाओं के बाद, एथली के दौरे अब नियंत्रित हो गए हैं, लेकिन उसे मस्तिष्क पक्षाघात का गंभीर रूप अभी भी है। वह न तो बोल सकती है, न चल सकती है, न देख सकती है और न ही खुद बैठ सकती है और पूरी तरह से वह मुझ पर निर्भर है। हाल ही में भारत से कनाडा आने के बाद, वर्तमान में हमारा परिवार सबसे अच्छा उपचार प्राप्त कर रहा है। उसके स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार हमारे जीवन को और अधिक रंगीन बना रहा है।
आशेर स्पेक्ट्रम से बाहर है, और उसने अपनी बोली पर पूरी तरह से पकड़ बना ली है। पढ़ाई में ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता उसके पास नहीं थी| इसलिए कई स्कूलों ने शुरू में उसे अस्वीकार कर दिया था, इसलिए मैंने उसे पाँचवीं कक्षा तक घर पर ही पढ़ाया। हालाँकि वह ADHD के कुछ लक्षण दिखाता है, लेकिन ईश्वर की कृपा से, अब उसका नाम एक निजी मसीही विद्यालय में छठी कक्षा में लिखा गया है। वह एक पुस्तक प्रेमी है जो सौर मंडल में अनूठी रुचि दिखाता है। उसे विभिन्न देशों, उनके झंडों और मानचित्रों के बारे में सीखना पसंद है। हालाँकि जीवन अभी भी चुनौतियों से भरा है, लेकिन ईश्वर का प्यार ही है जो हमें अपने बच्चों को प्रेम, धैर्य और दयालुता से पालने के लिए प्रेरित करता है।
जैसे-जैसे हम येशु में अपनी आशा को मज़बूत बनाते हैं और विशेष-आवश्यकताओं वाले माता-पिता के इस अनूठे मार्ग से यात्रा करते हैं, मेरा मानना है कि ऐसे समय होते हैं जब हमें अपनी प्रार्थनाओं का तुरंत उत्तर मिलता है, और हमारा विश्वास काम करता है और परिणाम देता है। उन समयों में, परमेश्वर की शक्ति और सामर्थ्य के कारण हमारी प्रार्थनाओं का निश्चित उत्तर प्रकट होता है।
अन्य अवसरों पर, उसकी शक्ति हमारे माध्यम से चमकती रहती है, हमें साहस के साथ अपने दर्द को सहने में सक्षम बनाती है, हमें अपनी कठिनाइयों में उसकी प्रेमपूर्ण दया का अनुभव करने देती है, हमें अपनी कमज़ोरियों में उसकी शक्ति दिखाती है, हमें सही कदम उठाने की क्षमता और बुद्धि विकसित करना सिखाती है, हमें उसकी शक्ति की कहानियाँ बताने के लिए सशक्त बनाती है, और हमें अपनी चुनौतियों के बीच उसकी रोशनी और आशा को देखने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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एलिज़ाबेथ लिविंगस्टन लेखिका, वक्ता और ब्लॉगर हैं। उनके प्रेरक लेखों के माध्यम से, कई लोग परमेश्वर के उपचारात्मक प्रेम से प्रभावित हुए हैं। वह कनाडा में अपने पति और दो खूबसूरत बच्चों के साथ रहती हैं।

मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त से कहा: “इस टूटी और बिखरी हुई दुनिया में वास्तव में कलीसिया को तुम्हारे जैसे व्यक्ति की ज़रूरत है …” कहीं न कहीं, यह बात उसके दिल को छू गई।
मेरे सबसे अच्छे दोस्त से मेरी पहली मुलाक़ात तीन साल पहले हुई थी। तुरंत हम बहुत करीब नहीं आए, क्योंकि सबसे पहले, डेव को लोगों से घुलने-मिलने में काफ़ी समय लगता है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ जेल में लोग बाहर के लोगों की तुलना में बहुत ज़्यादा सतर्क रहते हैं। हालाँकि, समय के साथ, यह सब बदल गया, और डेव तब से मेरा सबसे करीबी सहयोगी बन गया है।
डेव से मिलने के कुछ समय बाद ही, उसे यह स्पष्ट हो गया कि मैं अपने कैथलिक धर्म को लेकर बहुत गंभीर था। कारागार में मेरी कोठरी की दीवार पर क्रूसित येशु की मूर्ती और संतों की तस्वीरें टंगी हुई थीं। मैंने टेलीविज़न पर मिस्सा देखा और उसमें भाग लिया, और ईमानदारी से कहूँ तो, मैंने इस विषय पर कई बार चर्चा की। पहले तो, डेव ने कोई टिप्पणी नहीं की या मेरे धर्म में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई; वह बस विनम्रता से अपना सिर हिलाकर आगे बढ़ जाता था, लेकिन मेरे अन्दर से मुझे कुछ प्रेरणा मिल रही थी कि मुझे अपनी आस्था को साझा करने और चमत्कारों के बारे में तथा कैथलिक होने के कारण जो शांति मैंने प्राप्त की थी उस के बारे में बताने से नहीं हिचकना चाहिए।
जड़ों की ओर लौटना
जैसे-जैसे समय बीतता गया और मैं डेव के करीब होता गया, वह अपने विश्वास के बारे में थोड़ा और खुलने लगा। उसने मुझे बताया कि वह एक ईसाई है, लेकिन वह वास्तव में वर्षों से किसी प्रार्थना सभा या पूजा में नहीं गया था, आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि वह इतने लंबे समय से कारागार की एक कालकोठरी में बंद था, जेल परिसर में घूमने में असमर्थ था। लेकिन जैसे-जैसे मैंने गहराई से खोजबीन की, मुझे आश्चर्य हुआ कि डेव वास्तव में एक कैथलिक के रूप में बड़ा हुआ था। इतना ही नहीं, बल्कि उसने दीक्षा के सभी तीन संस्कार प्राप्त किए थे! मैंने तुरंत उससे सवाल पूछना शुरू कर दिया और उसके और उसकी आस्था यात्रा के बारे में मैं ने बहुत कुछ सीखा।
मैंने जो कई चीजें खोजीं, उनमें से एक वास्तव में सबसे अलग थी। आज भी डेव को पुराने कैथलिक शूरवीरों से लगाव है। इस वजह से, वह जिस सबसे पसंदीदा गिरजाघर में गया था, वह कैथलिक गिरजाघर था जो आकार में गोल था, शूरवीरों के टेम्पलर गिरजाघरों की याद दिलाता था। ऐसे गिरजाघरों के प्रति डेव के आकर्षण के माध्यम से मैं महसूस कर सकता था कि कलीसिया के प्रति उसमें अभी भी कुछ रुचि थी, भले ही वह बहुत ही छोटी रूचि थी।
हालाँकि, डेव से उसके जड़ों की ओर संभावित वापसी के बारे में बात करना उतना आशाजनक नहीं था। मैं स्पष्ट कर दूँ – वह कभी असभ्य या आक्रामक नहीं था, लेकिन ऐसा लगता था कि उसे संस्कारों की कोई इच्छा नहीं थी। वह अपनी दिनचर्या से संतुष्ट था, और उस में कैथलिक धर्म शामिल नहीं था, और दुर्भाग्य से, स्वयं कलीसिया ने उसे लगभग भुला दिया था।
आशा की एक किरण
जैसे-जैसे महीने बीतते गए, डेव कलीसिया के बारे में छोटे-छोटे सवाल पूछता रहा। कोई बड़ी बात नहीं, बस समय बीतने के साथ-साथ वह थोड़ी और दिलचस्पी दिखाता रहा। बेशक, मैं उसे दबाव महसूस नहीं कराना चाहता था, इसलिए मैंने धैर्यपूर्वक और प्रार्थनापूर्वक उसे कलीसिया में वापस लाने के अपने मिशन को जारी रखा। मैं महसूस कर सकता था कि पहले की तुलना में आशा की एक किरण ज़्यादा थी और मैं कभी-कभी उससे कहता: “तुम जानते हो डेव, इस टूटी हुई दुनिया में कलीसिया को वास्तव में तुम्हारे जैसे किसी व्यक्ति की ज़रूरत है।” वह कभी भी मुझे जवाब नहीं देता था, बस चुपचाप मेरे शब्दों पर विचार करता रहता था, लेकिन डेव अपनी चुप्पी के माध्यम से बहुत कुछ कह रहा था।
कुछ हफ़्ते पहले, कैथलिक उपयाजकों का एक दल हमारी कोठरी में हमसे मिलने आया। वे कैथलिकों के लिए परम प्रसाद और सभी बंदियों के लिए मसीही साहित्य लेकर आए और कोठरी से कोठरी जाकर पूछते रहे कि क्या लोग उनके साथ प्रार्थना करना चाहेंगे। उनके जाने के कुछ समय बाद, डेव मेरी कोठरी में आया और मुझे बताया कि कैसे एक आदमी ने उसे आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि वे एक विशेष गोल आकार के गिरजाघर के बारे में बात कर रहे थे जिस गिरजाघर का वह आदमी सदस्य था। यह वही जगह थी जहाँ डेव बचपन में गया था। उसने बताया कि उस आदमी ने उससे कहा था कि उसे एक दिन वहाँ उससे मिलने की उम्मीद है। डेव ने जो अगली बात बताई वह बहुत ही आश्चर्यजनक थी:
“आप जानते हैं, मैं इसके बारे में सोच रहा था, और मुझे कैथलिक कलिसिया में वापस जाने की बड़ी इच्छा है।” मैं अवाक रह गया। मैं सचमुच तीन साल से इस तरह की रूचि का इंतज़ार कर रहा था, और मुझे पता था कि यह दिन कभी आएगा। मैंने इसके लिए बार-बार प्रार्थना की थी। मुझे नहीं पता था कि डेव से क्या कहना है। एक लंबी चुप्पी के बाद, मैंने उससे पूछा: “क्या आप फिर से परम प्रसाद ग्रहण करने में रुचि रखते हैं?” उसने कहा कि उसे इसमें रूचि है।
खुला दरवाज़ा
15 साल की उम्र में डेव पर एक वयस्क के तौर पर आरोप लगाया गया और उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। अब वह 48 साल का है। जब वह एक किशोर के तौर पर जेल गया, तो उसने वयस्क अपराधियों की दुनिया में फिट होने की कोशिश की। उसकी कहानी में बहुत हिंसा और खून-खराबा है। उसके रास्ते पर चलने वाले ज़्यादातर लोग अंत में इतने थक जाते हैं कि ऐसा लगता है कि कुछ भी उन्हें वापस नहीं ला सकता, लेकिन अब डेव की दिलचस्पी थी। ईश्वर की स्तुति हो!
पिछले हफ़्ते डेव ने 33 साल में पहली बार परम प्रसाद ग्रहण किया। उसने जेल में कभी भी परम प्रसाद में येशु को प्राप्त नहीं किया था, हालाँकि यह हर समय उपलब्ध था। उसे जेल की व्यवस्था में भुला दिया गया था।
मेलमिलाप के संस्कार को प्राप्त करना असंभव था; इस कारण, वह पहले पाप स्वीकार के लिए नहीं गया, लेकिन परिस्थितिवश उसे संस्कार प्राप्त करने की अनुमति दी गई। वह अधिकतम सुरक्षा वाले कोठरियों के ब्लॉक में है और उसकी सुरक्षा व्यवस्था सबसे मज़बूत है, इसलिए जेल के अधिकारी बंदियों को पुरोहित से आमने-सामने मुलाक़ात करने की अनुमति देने में परेशानी महसूस करते हैं। इसलिए, उसने अपनी अंतरात्मा की पूरी तरह से जांच की और पश्चाताप की प्रार्थना की और पहले अवसर पर पाप स्वीकार करने का मन बनाया।
कभी न भूले जाने वाले
पूरी दुनिया में अनगिनत लोग हैं जिन्हें भुला दिया गया है। आपके अपने समुदाय में ऐसे पुरुष, महिलाएँ और यहाँ तक कि बच्चे भी हैं जिन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो सिर्फ़ दोस्त हो और जो उनके प्यार और उस विश्वास को साझा कर सके जो मसीह ने हमें अपनी कलिस्या में दिया है। आइए हम सुसमाचार फैलाना जारी रखें।
अगर आप कलीसिया और उसके जीवन देने वाले संस्कारों से दूर रहे हैं, तो मेलमिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार से शुरू होने वाले उपचार के लिए एक खुला निमंत्रण है। ईश्वर और उनकी कलीसिया के साथ संगति में वापस आने का पहला कदम अपने पापों को स्वीकार करना है, लेकिन याद रखें, जबकि हम निश्चित रूप से ईश्वर के सामने अपने पापों को स्वीकार कर रहे हैं, उससे भी ज़्यादा, ईश्वर इस समय का उपयोग एक बहुत ही खास तरीके से, अपनी क्षमा और प्रेम को हमारे सामने स्वीकार करने के लिए कर रहे हैं। कोई भी चीज़ इतनी बड़ी नहीं है कि उसे माफ़ न किया जा सके, और कोई भी चीज़ इतनी बड़ी नहीं है कि ईश्वर की चंगाई के रास्ते में खड़ी हो; क्षमा और दया के लिए दरवाज़ा हमेशा खुला है।
किसी स्थानीय गिरजाघर से या पल्ली पुरोहित से संपर्क करें और मेलमिलाप के अगले निर्धारित संस्कार में भाग लेने की योजना बनाएं। यदि अन्य लोग भी प्रतीक्षा कर रहे हों तो थोड़ा पहले आना सुनिश्चित करें। आपको खुशी होगी कि आपने यह कदम उठाया है, और स्वर्ग में देवदूत और संत आपकी घर वापसी पर प्रसन्न होंगे।
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जॉन ब्लैंको लुइसियाना सुधार विभाग में एक कैदी है। चौदह साल तक नाई के रूप में काम करने के बाद, वे अब सलाखों के पीछे से एक पेशेवर कलाकार और लेखक के रूप में काम करते हैं। उनका पहला उपन्यास, फ्लीस एज़ व्हाइट एज़ स्नो, 2024 के अंत में प्रकाशित होने की उम्मीद है।

जब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी…
“हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा।
मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था।
मेरा गुलाब कहाँ है?
तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: “मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।” मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। “शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी,” मैंने सोचा।
यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था।
नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था?
मेरी अदृश्य मित्र
कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी।
मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी।
एक शुरुआत
आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी।
एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी।
अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने “छोटे मार्ग” का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला!
क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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रोम…, संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना … क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है।
रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई।
खोज के क्षण
मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ।
जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली।
समर्पण
जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है।
अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी।
असहज मार्ग पर यात्रा
मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं।
अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं।
मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
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हम प्रशंसा… को कई जगहों से खोजते हैं, लेकिन डीकन स्टीव इसे एक अनोखी जगह पर खोज रहे हैं।
उस दिन मेरी बहन की शादी का दिन था। मैं तीन हफ़्ते तक कारागार की काल कोठरी में बंद रहने के बाद बाहर आया तो मैं एक कंकाल की तरह दिख रहा था, लगभग आधा मरा हुआ। मैं लगभग छह महीने से घर से दूर था, बार-बार नशीली दवाओं के सेवन और आत्म-विनाश के जाल में फँसा हुआ था। अपने परिवार से लम्बे अर्से तक अलग रहने के बाद, उस शाम, मैंने अपने पिता और अपने कुछ भाइयों के साथ समय बिताया।
मुझे उस प्यार की कमी खल रही थी जो हमारे परिवार के पास था। मुझे एहसास नहीं था कि मुझे इसकी कितनी ज़रूरत है, इसलिए मैंने परिवार के साथ कुछ दिन बिताए, उन्हें फिर से जानने और उनके प्यार को अनुभव करने की कोशिश की। मेरा दिल और भी ज़्यादा प्यार पाने के लिए तरसने लगा। मुझे याद है कि मैंने ईश्वर से कई बार विनती की थी कि जिस अंधकारमय जीवन को मैंने चुना था, उस जीवन से और उसके जंजाल से वह मुझे बचाए। लेकिन जब आप मादक द्रव्यों की बुरी अप-संस्कृति में फंस जाते हैं, तो उस अंधेरे से बाहर निकलना वाकई मुश्किल हो सकता है।
कोशिश करने के बावजूद, मैं उस दलदल में नीचे की ओर धंसता रहा। मैं कभी-कभी लड़ाई-झगड़े में खून से लथपथ होकर घर लौटता; मुझे कई बार लड़ाई-झगड़े या बहुत ज़्यादा शराब पीने के लिए सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा। एक दिन मैंने किसी को बहुत बुरी तरह चोट पहुँचाई और हिंसात्मक और जानलेवा हमले के लिए मैं जेल में बंद हो गया। जब मैं एक साल बाद जेल से बाहर आया तो मैं वास्तव में हिंसा के इस चक्र को तोड़ना चाहता था।
एक के बाद एक कदम
मैंने ईमानदारी से बदलाव की कोशिश शुरू की। डालस शहर से निकलकर पूर्वी टेक्सास जाना पहला कदम था। वहाँ नौकरी पाना मुश्किल था, इसलिए मैं लास वेगास चला गया। एक हफ़्ते की तलाश के बाद, मैंने बढ़ई के तौर पर उप-ठेकेदार का काम शुरू कर दिया। एक क्रिसमस के दिन, मैं रेगिस्तान के बीच से गुज़र रहा था। हमारे पास सेमी-ट्रेलर के आकार का एक बहुत बड़ा जनरेटर था। मैंने उसे चालू किया, और वहाँ काम करना शुरू कर दिया… मैं रेगिस्तान में अकेला व्यक्ति था। एक एक कील को ठोकते हुए, मैं उस आवाज़ को मीलों तक गूँजता हुआ सुन पा रहा था। जब बाकी दुनिया क्रिसमस मना रही थी, तब रेगिस्तान में अकेले रहना, यह बहुत ही भयानक अनुभव था। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं कैसे भूल गया कि यह दिन मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण था। मैंने शाम का बाकी समय सिर्फ़ इस बात पर चिंतन करते हुए बिताया कि ईश्वर का हमारी दुनिया में मानवता को बचाने के लिए आना क्या मायने रखता है।
जब ईस्टर आया, तो मैं बहुत लंबे समय के बाद पहली बार गिरजाघर गया। चूँकि मैं देर से पहुँचा था, इसलिए मुझे गिरजाघर के बाहर खड़ा होना पड़ा, लेकिन मुझे ईश्वर द्वारा दिए जाने वाले उपहार के लिए गहरी भूख महसूस हुई। गिरजाघर में पूजा के बाद, मैं टेक्सास वापस आया, एक मधुशाला में गया, और एक युवा महिला के साथ नृत्य किया। जब उसने मुझे उसके साथ रात बिताने के लिए अपने घर ले जाने की पेशकश की, तो मैंने मना कर दिया। जब मैं वापस जा रहा था, तो मेरा दिमाग घूम रहा था। मेरे साथ वास्तव में क्या हुआ? मैंने कभी भी अपने सामने आने वाले किसी भी अवसर को ठुकराया नहीं। उस शाम ज़रूर कुछ बदल गया। मुझमें प्रभु ईश्वर के लिए यह बढ़ती हुई भूख लगने लगी, और ईश्वर ने मेरे जीवन में कुछ बहुत ही आश्चर्यजनक चीजें करना शुरू कर दिया। उसने मेरा ध्यान आकर्षित किया, और मैंने निर्णय लिया कि मैं कलीसिया में वापस जाना चाहता हूँ।
मैं स्थानीय कैथलिक गिरजाघर में गया, कम से कम 15 वर्षों में पहली बार पाप स्वीकार के लिए घुटने टेका। मैं उन दिनों एक विवाहित महिला के साथ रह रहा था, अभी भी ड्रग्स का उपयोग कर रहा था, सप्ताहांत पर नशे में धुत हो जाता था, और इसी तरह की अन्य सभी बातें मेरे जीवन में थीं। मेरे आश्चर्य की बात यह थी कि पुरोहित ने मेरा पाप-स्वीकार सुना और कहा कि मुझे पश्चाताप करने की आवश्यकता है। इससे मुझे ठेस पहुंची क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था कि वे मुझे बताएँगे कि मैं जैसा भी हूँ, येशु वैसे भी मुझसे प्यार करता है।
इसके तुरंत बाद, इस महिला ने मुझे छोड़ दिया। उसने अपने पति के पास वापस जाने और उसके साथ रहने का निर्णय लिया। और इससे मैं टूटकर बिखर गया। मुझे पुरोहित के शब्द याद आए और मुझे एहसास हुआ कि मेरी यौन अशुद्धता कुछ ऐसी बात थी जो मुझे ईश्वर के साथ अंतरंग संबंध से दूर रख रही थी। इसलिए एक रविवार की सुबह, मैं टायलर के गिरजाघर में गया। गिरजाघर के सामने के बरामदे में वहां के फादर खड़े थे। मैंने उनसे कहा कि मैं 20 वर्षों से कलीसिया से दूर हूं, और मैं पाप स्वीकार संस्कार में जाना चाहता हूं और मिस्सा में वापस आना चाहता हूं। मैंने पाप स्वीकार संस्कार के लिए उन से समय माँगा। पाप स्वीकार लगभग दो घंटे तक चला, और मैंने अपने दिल की बात कह दी।
आग जो फैलती है
कलीसिया में वापस आने के अपने पहले साल में, मैंने बाइबल को दो बार शुरू से अंत तक पढ़ा। मेरा दिल जल रहा था। वयस्कों के लिए ईसाई दीक्षा संस्कार कार्यक्रम में भाग लेने और कलीसिया के श्रेष्ठ पिताओं के ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से, मैं कैथलिक धर्म के बारे में जितना हो सके उतनी जानकारी प्राप्त करने में डूब गया। जितना मैंने सीखा, उतना ही मैं ईश्वर की कलीसिया के निर्माण के तरीके से प्यार करने लगा और इस कलीसिया के द्वारा उस ईश्वर को जानने, उससे प्यार करने और इस जीवन में उसकी बेहतर सेवा करने के साधन के रूप में अपने आप को समर्पित कर दिया ताकि हम स्वर्ग में ईश्वर के साथ अनंत काल बिता सकें।
मेरे पिताजी जल्दी सेवानिवृत्त हो गए थे। वे डालस में एक कंप्यूटर कंपनी के लिए काम करते हुए बहुत सफल रहे थे। इसलिए जब वे सेवानिवृत्त हुए, तो उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन डालस की एक स्थानीय मधु शाला में बिताना शुरू किया। धीरे-धीरे, जब उन्हें एहसास हुआ कि वे अपने साथ क्या गलत कर रहे थे और मेरे जीवन में हो रहे बदलावों को देखा, तो वे भी डालस से बाहर चले गए। उन्होंने खुद को अपने कैथलिक धर्म के लिए फिर से समर्पित करना शुरू कर दिया और एक दिन, उन्होंने प्यार से मुझसे कहा: “मेरे बेटे, मुझे तुम पर बहुत गर्व है।”
जब मेरी मृत्यु का दिन आयेगा और जब मैं न्यायविधि के दिन प्रभु का सामना करूँगा तब मैं यही सुनना चाहता हूँ । मैं अपने स्वर्गीय पिता से भी यही सुनना चाहता हूँ: “मेरे बेटे, मुझे तुम पर बहुत गर्व है।”
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मैं और मेरा दोस्त सड़कों पर टहल रहे थे, तभी हमने लोगों को हमारे पीछे चिल्लाते हुए सुना। दूर सड़क पर एक गुस्सैल सांड बेतहाशा दौड़ रहा था, जबकि उससे डरे हुए लोग चीख रहे थे और भाग रहे थे। “चलो भागते हैं!” मैंने चिल्लाया, लेकिन मेरे दोस्त ने शांति से जवाब दिया: “अगर हम भागना शुरू करते हैं, तो यह सांड निश्चित रूप से हमारा पीछा करेगा।” कुछ पलों के बाद, हमारे और सांड के बीच कोई दूसरा नहीं था। “बस हो गया। अब हम और नहीं रुक सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें भाग जाना चाहिए!” मैंने अपने दोस्त को चिल्लाया, और हम दोनों भागने लगे। हम अपनी पूरी ताकत से दौड़े, लेकिन हम ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। कुछ नेकदिल लोग सांड को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। सांस फूलने के कारण, मैंने एक पल के लिए इंतजार किया, उम्मीद करते हुए कि हम आखिरकार सुरक्षित हैं। दुर्भाग्य से, हमने देखा कि सांड का हमारा पीछा करना जारी था ।
उसी समय, मुझे याद आयी कि क्यों न प्रार्थना किया जाय।
फिर, मैंने दौड़ना बंद कर दिया। मैं वहीं खड़ी रही, और मेरी ओर दौड़ रहे सांड को घूरती रही। जब वह कुछ इंच दूर था, तो वह रुक गया। हमने एक-दूसरे की आँखों में देखा। हम कुछ पल के लिए आमने-सामने खड़े रहे। मैं मुश्किल से साँस लेने की हिम्मत कर पायी। फिर, अचानक वह दूसरी दिशा में भाग गया, जिससे हम चकित रह गए।
मैं हमेशा सोचती हूँ कि उस पल क्या हुआ था। मेरे और सांड के बीच कौन खड़ा था? मैंने वास्तव में एक शक्तिशाली उपस्थिति को महसूस किया था जो मुझे विनाश से बचा रही थी।
हम में से कई लोग हमेशा किसी न किसी चीज़ के डर से भागते रहते हैं। हम शायद ही कभी अपने डर का सामना करते हैं और परमेश्वर की शक्तिशाली उपस्थिति के साथ उसका सामना करते हैं। हम आसानी से, शराब, ड्रग्स, शॉपिंग, पोर्नोग्राफ़ी को हमें शान्ति दिलाने वाले साधन समझकर, उनके गुलाम बन जाते हैं या यहाँ तक कि करियर के लक्ष्यों के प्रति अति-प्रतिबद्धता के भी गुलाम बन जाते हैं।
अपनी चिंताओं को दबाने के लिए भोग विलास या अत्यधिक काम या काम से सम्बंधित गतिविधियों में डूब जाने पर दु:खी बचपन, न चुकाए गए कर्ज के बोझ, अप्रिय अधिकारी या सहकर्मी, शराबी जीवनसाथी, अप्रिय घर या व्यक्तिगत विफलताओं के दर्द से कुछ समय के लिए हमें छुटकारा मिल सकता है। लेकिन यह स्वस्थ संबंध या रिश्ता बनाने की हमारी क्षमता को नष्ट कर देता है। हमें इस बात का डर रहता है कि दाएं मुड़ें या बाएं मुड़ें। इस डर के कारण, हम खुद को घबराहट में बंद कर देते हैं। हम बिना किसी और नुकसान के अपने दर्द को कैसे ठीक कर सकते हैं और राहत पा सकते हैं?
“मैं अपनी आँखें पहाड़ों की ओर उठाता हूँ – क्या वहां से मुझे सहायता मिलेगी? जिसने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है, वाही प्रभु मेरी सहायता करता है।” (स्तोत्र 121:1-2)। जब आप किसी भी तरह की पीड़ा से परेशान होते हैं, तो लक्ष्यहीन रूप से भागना बंद करें और ईश्वरीय सहायता माँगें। न तो दाईं ओर देखें और न ही बाईं ओर, बल्कि अपनी समस्याओं के सर्वोत्तम उत्तरों को खोजने के लिए ऊपर प्रभु की ओर देखें।
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जुलाई 2013 में, मेरी ज़िंदगी बदल गई। इसे पचाना आसान नहीं था, लेकिन मुझे खुशी है कि ऐसा हुआ
मैं बचपन से कैथलिक हूँ। मैं मध्य इटली के एक छोटे से शहर में पली-बढ़ी, मोंटे कैसिनो के मठ के पास, जिसे छठी शताब्दी में संत बेनेदिक्त ने स्थापित किया था और जहाँ संत की और उनकी जुड़वां बहन संत स्कोलास्टिका की कब्र है। मेरी दादी ने वास्तव में मेरे विश्वास को पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके साथ नियमित रूप से सामूहिक प्रार्थना में भाग लेने, सभी संस्कार प्राप्त करने और मेरी पल्ली की गतिविधियों में सक्रिय होने के बावजूद, यह सब कुछ ईश्वर के प्रति सच्चे प्यार के बजाय, हमेशा एक रिवाज या कर्तव्य की तरह लगता था, जिस पर मैंने कभी सवाल नहीं उठाया।
इसका सदमा!
जुलाई 2013 को, मैं वार्षिक युवा महोत्सव के दौरान मेडजुगोरे की तीर्थयात्रा पर गयी थी। तीन दिनों तक महोत्सव कार्यक्रम में भाग लेने के बाद, पाप स्वीकार संस्कार, प्रार्थना, साक्ष्य, माला विनती, मिस्सा बलिदान और आराधना इन सब के साथ, मुझे अचानक लगा कि उस प्यार के दिव्य अनुभूति के कारण मेरा दिल लगभग विस्फोट के कगार पर है। मैं पूरी तरह से प्यार में थी, ‘मेरे पेट में तितलियों’ की तरह… और मैंने निरंतर प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
यह एक नया एहसास था – मुझे अचानक अपने दिल के आकार का यह भौतिक बोध हुआ (जो मुझे पता है कि मेरी मुट्ठी के बराबर है) क्योंकि ऐसा लगा कि यह उस प्यार से फटने वाला है जिससे मैं अभिभूत थी। मैं उस समय इस एहसास का वर्णन नहीं कर सकती थी, और मैं आज भी नहीं कर सकती…
एक अतार्किक पागलपन
तो क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी रहा हो, एक तरफ कैथलिक होने और दूसरी तरफ दुनियावी और धर्महीन जीवन जीने के बीच समझौता कर रहा हो, अचानक येशु मसीह से मिल जाए, उनसे प्यार करने लगे और पूरे दिल से उनका अनुसरण करने लगे? उस समय यह पागलपन जैसा लगा- और यह अभी भी होता है!
मैं वैज्ञानिक और शिक्षाविद हूँ। मैं जो कुछ भी करती हूँ, उसमें मेरी मानसिकता बहुत तार्किक और तथ्यपरक होती है। उस समय मेरे बॉयफ्रेंड को भी समझ में नहीं आया कि मेरे साथ क्या हो रहा था (उसने कहा कि मेरा दिमाग खराब किया जा रहा है!); मुझे उम्मीद नहीं थी कि एक नास्तिक होने के नाते, वह इसे समझेगा।
यहाँ तक कि मैं उस तीर्थयात्रा में क्यों शामिल हुई, यह भी मुझे स्पष्ट मालूम नहीं था – मेरी माँ और मेरी बहन पहले भी वहाँ जा चुकी थीं और उन्होंने मुझे वहाँ जाने के लिए प्रोत्साहित किया था। कलीसिया ने मेडजुगोरे के दर्शन और वहां दिए गए प्रकाशना के बारे में कोई स्पष्ट और आधिकारिक बयान नहीं दिया है, इसलिए मैं केवल खुले दिल से, इस पर विश्वास करने या न करने के किसी दबाव के बिना वहाँ गयी। और तभी चमत्कार हुआ।
मैं यह नहीं कह सकती कि मैं पहले की तुलना में अब बेहतर इंसान हूँ, लेकिन मैं निश्चित रूप से एक बहुत अलग इंसान हूँ। जैसे-जैसे येशु मेरे जीवन का केंद्र बन गए हैं, मेरी प्रार्थना जीवन और गहरा होता गया है। माँ मरियम के माध्यम से येशु के साथ उस मुलाकात के बाद से बहुत कुछ बदल गया है, और मैं चाहती हूँ कि हर कोई ईश्वर के महान प्रेम और दया का समान और उससे भी बेहतर अनुभव कर सके। मैं सभी से केवल यही कह सकती हूँ: अपना दिल खोलो और परमेश्वर जो मार्ग, सत्य और जीवन है उसके प्रति समर्पण करो।
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जब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे?
2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी – अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है।
उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है।
जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली – यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी – और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी।
मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया।
मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप
मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है।
एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी।
इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं।
* संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
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मैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया…
विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है।
ईश्वर से नाराज़!
मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था।
किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था।
भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे ‘आँकड़ों’ वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ।
मेरी यात्रा में एक मोड़
एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग’ सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी ‘हाँ’ कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया।
इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी।
जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा।
मुझे पता है कि तू यह कर सकता है
जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं…हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी।
क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: “तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।”
इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी।
एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे
वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: “आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।” मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: “मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।”
जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में ‘धन्यवाद’ कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी।
जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं ‘चल’ नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: “तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।” मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: “तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।”
मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: “तुम ही मेरी ज़रूरत हो।” मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया।
ऊंची आवाज़ में गवाही
इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है।
ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
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हम हमेशा अपने कैलेंडर को जितना संभव हो उतना भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई अप्रत्याशित अवसर आ जाए?
नया साल आने पर हमें ऐसा लगता है कि हमारे सामने एक खाली स्लेट है। आने वाला साल संभावनाओं से भरा है, और हमारे नए–नए छपे कैलेंडर को भरने के लिए हम ढेर सारे संकल्प लेते हैं। हालाँकि, ऐसा होता है कि बेहतरीन साल के लिए कई रोमांचक अवसर और विस्तृत लक्ष्य विफल हो जाते हैं। जनवरी के अंत तक, हमारी मुस्कान फीकी पड़ जाती है, और पिछले सालों की पुरानी आदतें हमारे जीवन में वापस आ जाती हैं।
अगर हम इस साल, इस पल को थोड़ा अलग तरीके से लें तो कैसा होगा? अपने कैलेंडर पर खाली जगह को जल्दी जल्दी भरने के बजाय, उन खाली जगहों में जहां हमारे पास पहले से कुछ भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं है, वहां थोड़ा और स्थान और समय क्यों न दें? इन्हीं खाली जगहों में हम पवित्र आत्मा को अपने जीवन में काम करने के लिए सबसे अधिक जगह दे सकते हैं।
जो कोई भी एक घर से दूसरे घर में स्थानांतरित हुए है, वह जानता है कि एक खाली कमरा कितनी आश्चर्यजनक जगह बना सकता है। जैसे-जैसे फर्नीचर बाहर जाता है, कमरा बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। जब पूरा कमरा खाली हो जाता है, तब यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पर्याप्त जगह की कमी पहले बड़ी समस्या थी, अब देखो वही कमरा कितना बड़ा हो गया है! कमरा जितना अधिक कालीनों, फर्नीचर, दीवार पर लटकने वाली वस्तुओं और अन्य चीजों से भरा होता है, उतना ही जगह की कमी महसूस होती है। तभी, कोई आपके घर एक उपहार लेकर आता है, और आप सोचने लगते हैं – अब, हम इसे कहां रखेंगे?
हमारा कैलेंडर भी लगभग इसी तरह काम कर सकता है। हम अपने कैलेंडर को हर दिन काम, अभ्यास, खेल, प्रतिबद्धता, प्रार्थना, सेवा आदि से भर देते हैं – वे सभी अच्छी और अक्सर ज़रूरी लगने वाले बहुत सारे काम हैं। लेकिन जब पवित्र आत्मा एक ऐसे अवसर के साथ दस्तक देता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, तब क्या होता है? क्या हमारे कैलेंडर में उसके लिए जगह है? पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करने के लिए हम मरियम को एक आदर्श नमूने के रूप में देख सकते हैं।
मरियम स्वर्गदूत के शब्दों को सुनती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करती है। अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित करके, वह ईश्वर के उपहारों को प्राप्त करने के लिए सही स्वभाव का प्रदर्शन करती है। इसके बारे में सोचने का एक और तरीका है जिसे बिशप बैरन ने ‘अनुग्रह की कुंडली’ कहा है।
ईश्वर हमें भरपूर कृपा और अनुग्रह देना चाहता है। जब हम ईश्वर की प्रेमपूर्ण उदारता के प्रति स्वीकृति देते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब ईश्वर का ही उपहार है। खुशी के साथ, हम आभार और धन्यवाद के द्वारा ये उपहार ईश्वर को वापस देते हैं, और इस तरह कुंडली को फिर से चालू करते हैं।
ईश्वर मरियम तक पहुँचता है, और मरियम स्वतंत्र रूप से खुद को उसकी इच्छा और उद्देश्य के लिए समर्पित करती है। फिर वह येशु को स्वीकार करती है। हम इसे येशु के जीवन के अंत में फिर से देखते हैं। बहुत दुःख और भयानक दर्द में, मरियम अपने प्यारे बेटे को कलवारी की ओर जाने देती है। जब येशु क्रूस पर लटका हुआ था, तब भी मरियम उससे चिपकी नहीं रहती। उस दर्दनाक क्षण में, सब कुछ खो गया लगता है, और उसका मातृत्व खाली हो जाता है। वह भागती नहीं है, वह अपने बेटे के साथ रहती है, और लगता है कि उसके बेटे येशु ने ही उसे त्याग दिया है। फिर, येशु ने उसे योहन के रूप में न केवल एक बेटा दिया, बल्कि कलीसिया के मातृत्व में अनगिनत बेटे और बेटियाँ दीं। क्योंकि मरियम ईश्वर की योजना के प्रति उदार और ग्रहणशील रही, उन सबसे दर्दनाक क्षणों में भी, इसलिए अब हम उसे हमारी माँ कहकर पुकार सकते हैं।
जैसे-जैसे साल आगे बढेगा, शायद अपने सम्पूर्ण कार्य योजना के बारे में प्रार्थना करने के लिए कुछ समय निकालें। क्या आपने अपनी तिथियों को पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ज़्यादा कामों से भर लिए हैं? पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह आपको यह सोचने के लिए प्रेरित करे कि उसके उद्देश्यों के लिए कौन सी गतिविधियाँ ज़रूरी हैं और कौन सी आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं और लक्ष्यों के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं। अपनी कार्य योजनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए साहस माँगें, ज़रूरत पड़ने पर “नहीं” कहने की बुद्धि माँगें, ताकि जब वह आपके दरवाज़े पर दस्तक दे तो आप खुशी-खुशी और आज़ादी से “हाँ!” कह सकें।
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