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अक्टूबर 28, 2023 251 0 फ़ियोना मैककेना, Australia
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चंगाई की कुंजी

जब आपकी आत्मा थक जाती है और आप नहीं जानते कि अपने मन को कैसे शांत करें…

आप शायद इस बात से परिचित होंगे कि कैसे असीसी के संत फ्रांसिस ने एक बार पूछा था: “हे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ?” उन्होंने समर्पण के रूप में अपने हाथों को ऊपर उठाया, और जब उन्होंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब आपका है”, तब उन हाथों में से एक सुनहरी गेंद ऊपर की ओर उठी।

उपरोक्त घटना का वर्णन मैं ने पहली बार एक आत्मिक साधना के दौरान सुना था जहाँ हमें इसी प्रश्न पर विचार करने का काम सौंपा गया था: हे मेरे ईश्वर, तू कौन है, और मैं कौन हूँ? प्रार्थनालय में, पवित्र संस्कार के सामने, मैंने अपने घुटनों पर गिरकर और वह प्रार्थना की।

परमेश्वर ने मेरे हृदय को मेरे सामने प्रकट किया, जो पुराने खून से लथपथ पट्टियों की परतों से ढका हुआ, घायल और कड़ा हो चुका था। मैं ने महसूस किया कि इन वर्षों में, मैं ने अपने हृदय की सुरक्षा केलिए उसके चारों ओर दीवारें बना ली थीं। उस प्रार्थनालय में, मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद को ठीक नहीं कर सकती; मुझे बचाने केलिए ईश्वर की ज़रूरत थी। मैंने उसे रोते हुए कहा: “मेरे पास तुझे देने केलिए कोई सुनहरी गेंद नहीं है, मेरे पास बस मेरा घायल दिल है!” मैंने महसूस किया कि ईश्वर ने उत्तर दिया: “मेरी प्यारी बेटी, तुम्हारा दिल ही वह सुनहरी गेंद है। इसे मैं लूंगा।”

आंसुओं में भीगे हुए, मैंने अपने दिल को अपने सीने से निकालने का अभिनय किया, और अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है।” मैं प्रभु की उपस्थिति से भर गयी थी, और मुझे पता था कि जिस पीड़ा ने मुझे जीवन भर बंधन में रखा था, मैं उससे पूरी तरह से ठीक हो गयी हूं। मेरे बगल की दीवार पर मैं ने रेम्ब्रांट की “रिटर्न ऑफ द प्रोडिगल सन” (उडाऊ पुत्र की वापसी) की एक प्रति देखी और तुरंत मुझे लगा कि मेरे स्वर्गिक पिता ने अपने घर में फिर से मेरा स्वागत किया है। मैं गरीबी और संकट में, अयोग्य और पश्चाताप महसूस करते हुए लौटी उड़ाऊ बेटी थी, जिसे उसने अपनी बेटी के रूप में स्नेहपूर्वक अपनाया।

अक्सर, प्रेम के बारे में हमारी अपनी सांसारिक समझ बनती है। इस के कारण, ईश्वर हमारे लिए क्या कर सकता है इस बात की हमारी समझ सीमित और भ्रमित हो जाती है। मानव प्रेम, चाहे कितना भी नेक नीयत का क्यों न हो, वह शर्तयुक्त है, बेशर्त नहीं। परन्तु ईश्वर का प्रेम अटल और असाधारण है! उदारता में ईश्वर कभी भी मात नहीं खाता; वह अपने प्रेम से हमें कभी भी वंचित नहीं रखेगा।

ईश्वर को अपने सर्वश्रेष्ठ में से केवल जिनका हम अवमूल्यन करते हैं, उन हिस्सों को अर्पित करने केलिए हमारा अहंकार या भय हमें प्रेरित करता है, और इस तरह का अर्पण ईश्वर को हमारे उन हिस्सों को परिवर्तित करने से रोकता है जिनका हम अवमूल्यन करते हैं। उसकी चंगाई प्राप्त करने केलिए, हमें अपना सब कुछ उसे सौंप देना चाहिए और उसे निर्णय लेने देना चाहिए कि वह हमें कैसे बदलेगा। ईश्वर का उपचार या चंगाई अक्सर अप्रत्याशित होती है। इस केलिए हमारे पूर्ण विश्वास की आवश्यकता है। इसलिए, हमें ईश्वर की बात सुननी चाहिए जो हमारे लिए सर्वोत्तम चाहता है। ईश्वर को सुनना तब शुरू होता है जब हम अपना सब कुछ उसे समर्पित कर देते हैं। अपने जीवन में ईश्वर को प्रथम स्थान देकर, हम उसके साथ सहयोग करना शुरू करते हैं। ईश्वर हमारा संपूर्ण अस्तित्व चाहता है – अच्छा, बुरा और कुरूप, क्योंकि वह इन अंधेरी जगहों को अपनी उपचारात्मक रोशनी से बदल देना चाहता है। ईश्वर हमारी लघुता और टूटेपन में उसे खोजने केलिए धैर्यपूर्वक हमारी प्रतीक्षा करता है।

आइए हम ईश्वर के पास दौड़ें और उसे गले लगा लें जैसे खोया हुआ बच्चा अपने पिता के पास घर लौटता है, यह जानते हुए कि पिता उसे खुली बांहों से स्वीकार करेगा। हम संत फ्रांसिस की तरह प्रार्थना कर सकते हैं: “हे ईश्वर, मैं कुछ भी नहीं हूं, लेकिन यह सब तेरा है” यह भरोसा करते हुए कि वह हमें परिवर्तनकारी आग से शुद्ध कर देगा और कहेगा: “मैं यह सब ले लूंगा, और तुम्हें बिल्कुल नया बना दूंगा।”

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फ़ियोना मैककेना

फ़ियोना मैककेना resides in Canberra, Australia. She recently completed a two-year Catholic ministry equipping course with Encounter School of Ministry and is studying for a Masters Degree in Theological Studies.

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