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अगस्त 20, 2021 1396 0 Tara K. E. Brelinsky
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जीवन जीने का एक नुस्खा

मुझे क्या पता था कि एक पारिवारिक चढ़ाई मुझे जीवन जीने की एक नायाब तरकीब सिखा जाएगी।

पिछले साल मेरे बेटे की इच्छा थी कि हम उसके कॉलेज कैंपस आएं। हालांकि मैंने उसकी महंगी यूनिवर्सिटी और उसके आसपास के पहाड़ देखे थे, मेरे पति और बाकी बच्चे उस कैंपस में अभी तक नही गए थे। क्योंकि हमारा रेस्टोरेंट का बिज़नेस था, इसीलिए हमारे लिए समय निकाल कर पांच घंटे गाड़ी चला कर बेटे के कैंपस जाना मुश्किल ही था, फिर भी बेटे की ज़िद पर मैंने समय निकाल कर सारी तैयारियां की। चूंकि हमारे पास एक पूरे दिन रुकने का ही समय था, मैंने बेटे से कहा कि वह एक दिन के अंदर ही सारे घूमने फिरने के इंतज़ाम कर ले। इसीलिए बेटे ने हाइकिंग या पर्वतारोहण का प्रोग्राम बनाया।

काबिलियत से बढ़ कर संकल्प

मेरा मानना है कि उनचास साल की उम्र में अब मैं थोड़ी कमज़ोर हो चली हूं। मेरे पास कसरत करने का वक्त नही रहता है, क्योंकि मैं कपड़े धोती, बिखरे सामान को समेटती और अपने तीन मंज़िला घर की साफ सफाई करती करती थक जाती हूं। इसीलिए जब मैंने पहाड़ की चढ़ाई करना शुरू किया, तभी मुझे समझ आ गया था कि हाइकिंग पूरी करने के लिए मेरी काबिलियत नही बस मेरी हिम्मत काम आएगी।

जैसे जैसे हम आगे बढ़ने लगे, वे लोग जो मुझसे ज़्यादा ताकतवर और फुर्तीले थे आगे निकलने लगे और मैं पीछे रह गई। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मेरी सांस थमने लगी और मुझे थकान होने लगी। मेरे पैरों में तेज़ दर्द शुरू हो गया। तब मुझे समझ आ गया कि इस चढ़ाई को पूरा करने के लिए मुझे कोई विशेष रणनीति बनानी पड़ेगी।

मैंने लक्ष्य से ध्यान हटा कर छोटी छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। तीन मील की चढ़ाई के लक्ष्य से ध्यान हटा कर मैंने बस अगले कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया। कई बार ऐसे बड़े लक्ष्य मुझे भयभीत कर देते हैं। पर जब मैं उन लक्ष्यों की बारीकियों पर ध्यान देती हूं तब मैं खुद को वर्तमान समय में स्थिर कर पाती हूं। मैंने इस बात से डरना छोड़ दिया कि मैं इस चढ़ाई को पूरा कर भी पाऊंगी या नही। मैंने बस हर छोटे छोटे कदम और आस पास की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

वह अनदेखा नज़ारा

धीरे धीरे मेरा मन प्रकृति की खूबसूरती में डूबने लगा, और मैं पूरी तरह अपने लक्ष्य को भूल गई। मुझे हवाओं की मीठी धुन, और पत्तों की सरसराहट मोहने लगी, जो बच्चों की खिलखिलाहट से मिल कर जैसे एक नया गीत बुन रही थीं। जैसे जैसे मैं कदम बढ़ाने लगी, मेरी सांसे मेरा साथ देने लगीं और मेरे पूरे शरीर में खुशी की लहर दौड़ गई। मैं पहाड़ी ज़मीन पर खिले फूलों और कलियों, और उनके आस पास की हरियाली को, और पेड़ों की टहनियों से छनती धूप की किरणों को निहारने लगी। मेरे मन की आंखें उस अनदेखे नज़ारे के मोह में खो गई जो मेरे आगे, पीछे, और मेरे आसपास था। उस पथरीली ज़मीन पर चलते हुए मेरे मन में कीड़े मकौड़ों की सेना की टुकड़ियों की छवि आने लगी। मैं चिड़ियों से ले कर चूहों, गिलहरियों, यहां तक कि मधुमक्खियों के बारे में सोचने लगी। मैंने ईश्वर को इन सब छोटी बड़ी जिंदगियों के लिए धन्यवाद दिया, और इस पहाड़ी जगह के लिए भी धन्यवाद दिया जहां ईश्वर ने मुझे यह दोपहर बिताने का सौभाग्य दिया था।

जीवन जीने का नुस्खा

कुछ समय के लिए मैं रुक कर एक कटे पेड़ के तने की तस्वीर लेने लगी, ताकि मैं यह याद रख सकूं कि इस पेड़ के मरने में भी कहीं ना कहीं ईश्वर की मर्ज़ी थी। समय के साथ यह तना भी गायब हो जाएगा और इस पेड़ की जड़ें पहाड़ की ज़मीन से जा मिलेंगी। यही सब सोच कर जब मैं तस्वीर खींच रही थी तभी मेरे आगे आसमान पर एक इंद्रधनुष का नज़ारा छा गया। इंद्रधनुष से मुझे ईश्वर का मानव जाति के साथ किया गया वादा याद आया। मुझे याद आया कि ईश्वर का वह वादा आज भी जीवित है, और इसीलिए मैंने ईश्वर को उनकी वफादारी के लिए धन्यवाद दिया।

धीरे धीरे मैंने अपने कदमों को गिनना बंद कर दिया जिससे मुझे काफी आसानी हुई। मेरा सफर तब और आसानी से कटने लगा जब मैंने अपनी चिंताओं का भार ख्रीस्त पर डाल दिया और उन्हें अपने साथ चलने का बुलावा दिया। जब मुझे प्रलोभन ने जकड़ा तब मैंने येशु को खुद के और करीब कर लिया। चुनौती से भागने या उससे डर जाने की जगह, मैंने आत्मसमर्पण की प्रार्थना कही और अपने इस सफर को ईश्वर के हवाले कर दिया।

साल 2021 की शुरुआत में उस पर्वत की चढ़ाई करते वक्त मैंने जो कुछ सीखा, उस सीख की आज दुनिया को ज़रूरत है। आज भी जब दुनिया नए खतरों, नई मुसीबतों से लड़ रही है, तब मुझे वर्तमान काल में जीने के महत्व का एहसास है। और हालांकि बड़े लक्ष्य को समझ कर उसके हिसाब से फैसले लेना कई मामलों में ज़रूरी है, फिर भी भविष्य की चिंता हमें आज की खूबसूरती, शांति और प्रेम से दूर कर सकती है।

आज़ादी राह ताकती है

अगर मैंने चढ़ाई की तकलीफों और अपनी नाकाबिलियत पर ध्यान दिया होता, तो शायद मैं वह चढ़ाई कभी पूरी नहीं कर पाती। पर अपना ध्यान आज और वर्तमान में लगा कर मैंने प्रकृति के सौंदर्य और आशीषों का अनुभव किया। इसीलिए अब से मैं भविष्य के भय के बजाय आज की आशीषों को चुनती हूं। चाहे वह किसी अपने के साथ समय गुज़ारना हो, या अपनी कोई पसंदीदा किताब पढ़ना, या अपने लिए एक प्याली कॉफी बना कर उसकी महक के मज़े लेना, या किसी दोस्त से बातें करना, उनके साथ मुस्कुराना। मैं अब आज में ज़्यादा केंद्रित हूं और रोज़ ईश्वर के प्रेम को अलग अलग रूप से प्रकट करने की कोशिश करती हूं।

पहाड़ पर एक छोटी सी चढ़ाई ने मुझे जीवन जीने का यह बहुमूल्य नुस्खा दे दिया: कि हमें वर्त्तमान में उपस्थित रह कर रोज़ ईश्वर को उनकी आशीषों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।

इस नुस्खे ने मेरा सफर आसान कर दिया है, (चाहे वह पहाड़ पर चढ़ाई का सफर हो या कोई दैनिक कार्य करने की मुश्किल हो, या ईश्वर के दिए क्रूस को उठाने की कठिनाई हो या एक वैश्विक महामारी के बीच जीवन जीने का संघर्ष)। वर्तमान में जीना ही उस आज़ादी की चाभी है, जिस अलौकिक आज़ादी को दुनिया की कोई ताकत नहीं दबा सकती है। ख्रीस्त वर्तमान काल में ही निवास करते हैं। आइये, हम उन्हें वर्त्तमान में ढूंढें, और भरोसा रखिए कि वे हमें ज़रूर मिलेंगे।

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Tara K. E. Brelinsky

Tara K. E. Brelinsky एक स्वतंत्र लेखिका और वक्ता हैं। वे उत्तरी कैरोलिना में अपने पति और आठ बच्चों के साथ रहती है। उनके चिंतन और प्रेरक लेखों को आप Blessings In Brelinskyville blessingsinbrelinskyville.com/ में पढ़ सकते हैं या उन्हें The Homeschool Educator पोडकास्ट में सुन सकते हैं।

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