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1000 से कम शब्दों में असली कामयाबी का मार्ग पढ़ें !
हम आशा,शांति और आनंद का जीवन जीने के लिए बुलाये गए हैं। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने एक बार घोषणा की थी कि, “सच्चे अर्थों में,आनंद ख्रीस्तीय संदेश का मुख्य आधार है। मेरी इच्छा है कि ख्रीस्तीय संदेश उन सभी के लिए आनंद लाएं जो इस केलिए अपने दिल खोलते हैं … विश्वास हमारे आनंद का स्रोत है।”
यदि आप अपने आप से पूछते हैं “क्या मेरा जीवन आनंद की घोषणा करता है? क्या मेरा विश्वास मेरे आनंद का स्रोत है?” तो आपका जवाब क्या होगा?
अगर हम ईमानदार हैं, तो हमें यह कहना होगा कि जीवन की परिस्थितियाँ अक्सर खुशी से जीने के तरीके में रुकावट पैदा करती हैं। और हाल के दिनों में निश्चित रूप से हालात अनुकूल नहीं रही हैं – महामारी ने हम में से प्रत्येक को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है।
सकारात्मक और आशावान बने रहना मुश्किल हो सकता है। हमारे आसपास की परिस्थितियों से भी अधिक, कुछ और भी है जो हमारे आनंद को चुरा लेता है: हम स्वयं । नाखुशी का एक मुख्य स्रोत हमारे अपने नकारात्मक विचारों और आत्म-धारणाओं से आता है।
हम सभी ईश्वर की संतान हैं – अनमोल और प्रिय। लेकिन अक्सर हम इस सत्य को भूल जाते हैं और खुद को दुनिया के मानकों के हिसाब से नापने लगते हैं। उन मानकों में से एक है कामयाबी। हम शायद अपनी जवानी से ही उस नाप की छड़ी से खुद को मापते रहे हैं। हमें बचपन से बार-बार कहा गया है कि हमें एक अच्छी नौकरी हासिल करनी है, कमाई करनी है, शादी करनी है। और जो भी करना है उसमे बहुत अच्छा होना है, कामयाब होना है! ऐसा लगता है कि यही एक ऐसा सन्देश है जो हमारी चारों तरफ गूंजता है – जिसकी वजह से कहीं ना कहीं हमारे अंदर असंतुष्टि की भावना उत्पन्न करती है, हम अपने आप को अपर्याप्त महसूस करते हैं ।
हमें हर चीज़ को बाहर से ही समझने के लिए प्रेरित किया जाता है। हम लोगों को उनकी उपलब्धियों के लिए सराहते हैं, ना की उनके कोशिशों के लिए। हमें सिखाया जाता है कि सिर्फ निष्कर्ष का मूल्य है।
हम इस तरह के सांचे में ढाले गए हैं कि हम आभास या दिखावे के आधार पर सब कुछ आंकते हैं। हम लोगों की उपलब्धियों पर उनकी सराहना करते हैं, उनकी मेहनत के लिए नहीं। हमें बताया गया है कि सिर्फ परिणाम मायना रखता है। इसीलिए हम उन बातों को नजरंदाज कर देते हैं जो कि असल में मायने रखती हैं।
ईश्वर ने इसराएल के लोगों पर होनेवाले आसन्न संकट के बारे में चेतावनी देने के लिए नबी यिरमियाह को बुलाया था। लेकिन नबी के अपने शब्दों से हमें उनकी असफलता का पता चलता है: “मैं किन को संबोधित कर उन्हें चेतावनी दूं, जिससे वे सुनें? उनके कान बहरे हैं। वे सुन नहीं सकते। वे प्रभु की वाणी को फटकार समझते हैं और उसे सुनना नहीं चाहते” (यिरमियाह 6:10)। लोगों ने यिरमियाह को सुनने से इनकार कर दिया और इसराएल के नेताओं ने नबी को अस्वीकार कर दिया। उसने जो चेतावनी दी थी, वैसा ही हुआ और इस्राएल देश को बहुत सी पीडाएं भुगतना पड़ा।
यदि हम इसे एक दुनियावी दृष्टिकोण से देखें, तो यिरमियाह के सारे कार्य कोई मायने नहीं रखते हैं। हालाँकि, उन्होंने अपार विरोध के बावजूद भी उल्लेखनीय विश्वास को प्रकट किया। वे ईश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी थे और इसी कारण उन्हें सफलता मिली।
अब, आइये हम आधुनिक समय की एक मिसाल को देखें। संत मदर तेरेसा का कथन विख्यात है, “ईश्वर ने मुझे सफल होने के लिए नहीं बुलाया है; उसने मुझे ईमानदार बनने के लिए बुलाया है।” क्या वर्तमान दुनियावी तरीके के विरुद्ध इस से किसी और बेहतर वाक्य की कल्पना आप कर सकते हैं?
मुझे लगता है कि ज्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि मदर तेरेसा ने एक सार्थक और सराहनीय जीवन जीया। किसने उसके जीवन को सार्थक और सराहनीय बनाया? मदर तेरेसा के ही शब्द हमें इसका जवाब देते हैं। अपने काम में सफल होने की कोशिश करने के बजाय, उन्होंने बस वही किया जिसे जो ईश्वर उनसे करवाना चाहते थे। उनका ध्यान खुद पर ना हो कर ईश्वर पर था। यह बात उनकी छू जाने वाली दयालुता से ज़ाहिर होती हैं क्योंकि वे गरीब से गरीब और कमज़ोर से कमज़ोर इंसान में ईश्वर को देखती थीं।
नबी यिरमियाह और मदर तेरेसा के साक्ष्य हमें एक महत्वपूर्ण समझ देते हैं: “जिस दृष्टि से मनुष्य देखता है, उस दृष्टि से मैं (ईश्वर) नहीं देखता। मनुष्य व्यक्ति के बाहरी रूप – रंग को देखता है, पर मैं (ईश्वर) उसके हृदय को देखता हूं।” (1 सामुएल 16:7)
तो आइए हम दुनिया के मापदंडों से भयभीत और परेशान न हों और सफलता के लिए कोशिश न करें। अगर हम ईश्वर के नज़दीक रहेंगे और अपने पूरे दिल से उसकी सेवा करेंगे, तो वह निश्चय ही हमारी कोशिशों को अनुग्रहीत करेगा। हालांकि ईश्वर के प्रति विश्वासपूर्ण रहने की अपनी चुनौतियां हैं। इन चुनौतियां को पार करने के लिए ढेर सारा धैर्य और सहनशीलता चाहिए, लेकिन हम जानते हैं कि इसका पुरस्कार महान है।
यह सच है कि हमारे लिए दूसरों से खुद की तुलना ना करना थोड़ा मुश्किल है और दुनियाई सफलता के मापदंडों के पीछे ना भागना भी मुश्किल है। लेकिन सफलता की यह भागदौड़ हमें दुखी और व्याकुल कर देती है, क्योंकि कहीं ना कहीं, कोई ना कोई हमसे ज़्यादा बेहतर, ज्ञानी, और सफल होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि जिस नज़रिए से दुनिया हमें देखती है उसी नज़रिए से ईश्वर हमें नहीं देखते। ईश्वर हमारे हृदय को देखते हैं। और आखिर में ईश्वर के मन में हमारी छवि किस प्रकार की है, यही सबसे महत्वपूर्ण बात है।
Steffi Siby has a passion for reading and writing. She lives with her family in Blackpool, England. To read more of her articles visit: spreadyoursmile.home.blog/
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