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जून 23, 2021 1276 0 बिशप रॉबर्ट बैरन, USA
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हम बुराई क्यों न करें, जिससे भलाई उत्पन्न हो ?

रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र के तीसरे अध्याय में एक बहुत ही उत्सुकता भरने वाली और संशय पूर्ण हिस्सा है, जो कैथलिक नीति शास्त्र के पिछले 2000 वर्ष के इतिहास का अहम् कोने का पत्थर साबित होता है | अपने कुछ आलोचकों को जवाब देते हुए संत पौलुस कहते हैं : “हम बुराई क्यों न करें ताकि भलाई उत्पन्न हो?” ऐसा कहनेवाले “दण्डाज्ञा के योग्य है” (रोमी ३:८) पौलुस के जटिल कथन को इस प्रकार कहा जा सकता है: “भलाई का परिणाम पाने के लिए हमें कभी भी बुराई नहीं करनी चाहिए ।“

वास्तव में दुनिया में ऐसे दुष्ट लोग हैं जो नश्वर सुख पाने केलिए बुराई करने में लगे रहते हैं। अरस्तू के अनुसार वे शातिर हैं या कभी कभार वे “जानवर जैसा” हैं । लेकिन हममें से ज्यादातर लोग अपने बुरे काम के लिए आम तौर पर एक अच्छे अंत की अपील के माध्यम से अपने व्यवहार के लिए एक स्पष्टीकरण ढूंढ लेते हैं, जिसे हम अपने कार्य के माध्यम से प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं । मैं अपने आप से कह सकता हूँ कि “मैं ने जो किया उस पर वास्तव में गर्व नहीं करता, लेकिन कम से कम यह कुछ सकारात्मक परिणाम लाया।” लेकिन संत पौलुस के निर्देश का अनुपालन करते हुए कलीसिया लगातार इस तरह की सोच की निंदा करती आयी है क्योंकि ऐसी सोच नैतिक अराजकता के लिए द्वार खोलती है। नतीजतन, कलीसिया ने दासता, व्यभिचार, बच्चों का यौन शोषण, निर्दोषों की प्रत्यक्ष हत्या आदि कुछ कृत्यों को “आंतरिक रूप से बुरा” होने की मान्यता दी है | कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी सोच प्रेरणादायक नहीं है, परिस्थितियों के लुप्त होने पर भी, या परिणाम न रहने पर भी यह न्यायसंगत होने में असमर्थ है । अब तक इतना सरल और स्पष्ट है।

लेकिन यह सिद्धांत मेरे दिमाग में हाल ही में आया है, व्यक्तियों के नैतिक कृत्यों के संबंध में नहीं, बल्कि हमारे समाज का बहुत कुछ मार्गदर्शन कर रही उन नैतिक धारणाओं के सम्बन्ध में । मैं उदाहरण दे सकता हूँ: 1995 में ओ.जे.सिम्पसन की अदालती जांच के साथ एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ था। मुझे लगता है कि यह कहना उचित है कि बहुसंख्यक तर्कसंगत लोग इस बात से सहमत होंगे कि सिम्पसन पर आरोपित उन भयानक अपराधों को उसने अंजाम दिया था, फिर भी उस समय के न्यायाधीशों के दल ने उन्हें दोष मुक्त कर दिया और हमारे समाज के बहुत बड़े वर्गों द्वारा बड़ी ताकत से न्यायाधीशों के फैसले का समर्थन भी किया गया | कई लोगों के मन में ओ.जे. सिम्पसन को बरी करना उचित था, क्योंकि यह विशेष रूप से लॉस एंजिल्स पुलिस विभाग द्वारा और सामान्य रूप से देश भर के पुलिस के द्वारा अफ़्रीकी अमेरिकन लोगों के प्रति नस्लीय भेदभाव का व्यवहार और उत्पीड़न के व्यापक सामाजिक बीमारी के समाधान में एक योगदान के रूप में देखा गया था। एक दोषी आदमी को दोषमुक्त करने की अनुमति देने के साथ बड़े पैमाने पर हुए एक अन्याय को अनसुना करना, सहन किया गया, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस से कुछ बड़ी भलाई के कार्य को अंजाम दिया जाएगा ।

हाल ही में घटित कार्डिनल जॉर्ज पेल के दुखद मामले में भी हमारी कानूनी सोच का सिम्पसनीकरण प्रबल रूप से दिखाई दिया था। एक बार फिर, आरोपों की प्रभावहीनता और किसी भी सबूतों के पूरे अभाव को देखते हुए, सामान्य बुद्धि के लोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य थे कि कार्डिनल पेल को मुकदमे में नहीं लाया जाना चाहिए था और सजा देने का सवाल ही नहीं उठता था । इसके बावजूद पेल को दोषी माना गया और कारावास की सजा सुनाई गई, और बाद में एक अपील ने मूल आरोप की पुष्टि की। हम कैसे इस सम्बन्ध विहीनता को समझा सकते हैं? पुरोहितों द्वारा बच्चों के साथ यौन शोषण तथा कुछ अधिकारियों द्वारा वैध तरीके से इस मुद्दे पर चादर ओढाने के बाद ऑस्ट्रेलियाई समाज में कई लोगों ने नाराजगी प्रकट की, और उन्हें लगा कि कार्डिनल पेल का कारावास किसी तरह इस अतिरंजित मुद्दे पर चर्चा का विषय बनेगा । इसलिए एक बार फिर, संत पौलुस के सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए इस लिए बुराई की गई ताकि इसमें से कुछ अच्छाई निकल सकती है ।

महिलाओं के खिलाफ यौन आक्रामकता के संबंध में भी यही समस्या स्पष्ट है। हार्वे वीनस्टीन की परिस्थिति और उसके बाद ‘मी टू’ आन्दोलन के दौर में कोई भी गंभीर सोच का व्यक्ति संदेह नहीं करता है कि कई महिलाओं के साथ शक्तिशाली पुरुषों द्वारा जाने या अनजाने में गलत व्यवहार किया गया है और इस तरह का शोषण राजनीति का कैंसर है। इसलिए, इस समस्या को हल करने की भलाई प्राप्त करने के लिए, कभी-कभी जांच या अदालती प्रक्रिया के बिना, पुरुषों पर अभियोग लगाया जाता है, परेशान किया जाता है और प्रभावी रूप से सजा भी दी जाती है। मेरी निष्पक्षता साबित करने के लिए मैं जस्टिस ब्रेट कावनोह और हाल ही में जो बिडेन के साथ घटित वाकया पर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ |

हमारे समाज में इस नैतिक परिणामवाद की व्यापकता बेहद खतरनाक है | जब हम कहते हैं कि अच्छाई के लिए बुराई की जा सकती है, तब हम कोई भी आंतरिक रूप से बुरे कार्य होने की बात से इनकार कर देते है| और जब हम ऐसा करते हैं, तब हमारी नैतिक प्रणाली के लिए बौद्धिक समर्थन अनायास ही रास्ता खोल देता है। और फिर उपद्रव आते हैं। इस सिद्धांत का एक बहुत ही शिक्षाप्रद उदाहरण फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत का आतंक है । चूंकि अठारहवीं शताब्दी के फ्रांस में आभिजात्य वर्ग द्वारा गरीबों के प्रति निस्संदेह जबरदस्त अन्याय किया गया था, इसलिए जो भी क्रांति का दुश्मन माना जाता था, उसे बिना किसी भेदभाव के, मृत्युदंड दिया जाता था । लोग मानते थे कि अगर दोषियों के साथ-साथ कुछ निर्दोष लोग मारे जाते हैं, तो कोई बात नहीं  – क्योंकि यह नए समाज के निर्माण में काम आता है। मेरा मानना ​​है कि यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उस समय के घातक परिणामवाद से उत्पन्न नैतिक अव्यवस्था और अराजकता से पश्चिमी समाज अभी तक उबर नहीं पाया है |

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बिशप रॉबर्ट बैरन

बिशप रॉबर्ट बैरन लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित हुआ था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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