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जुलाई 27, 2021 1405 0 मेरी थेरेस एमन्स, USA
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वाह माँ

मेरी माँ को अपने आखिरी दिनों में किसी अस्पताल के बिस्तर पर शांत और सुकून से होना चाहिए था, लेकिन उनके आखिरी दिन भी उसी तरह गुज़रे जिस तरह उनकी सारी ज़िन्दगी गुज़री थी |

उस दिन मेरे पसंदीदा महीने अक्टूबर का आखिरी दिन था| मैं अपने बच्चों को अपने  माता पिता के पास ले जाने के लिए तैयार कर रही थी| एक साल पहले हमें पता चला था कि मेरी माँ को कैंसर है और उनके पास ज़्यादा समय नहीं बचा था| और उनकी नर्स ने हमें यह साफ़ साफ़ कह दिया था कि माँ की हालत जल्द ही बहुत खराब होने की कगार पर थी|

यह बात हमें अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। अभी तीन दिन पहले ही तो मैंने उन्हें ठीक ठाक और व्यस्त देखा था, वह कभी टूटी हुई रोज़रियों को ठीक कर रही थी तो कभी पापा के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। मेरी माँ हमेशा से ऐसी ही थीं। वह प्यार और निस्वार्थता की मूरत थीं। जो भी उन्हें जानता था वह उन्हें एक संत ही समझता था। उन्होंने अपने जीवन के द्वारा हमें भरोसे और आशा के क्रूस को अपने कंधों पर उठाना सिखाया। और अपनी इसी ज़िंदादिली की वजह से माँ को मौत का डर नहीं था। पवित्र मिस्सा और माँ मरियम की रोज़री पर उन्हें बहुत श्रद्धा थी। कलकत्ता की संत तेरेसा ने एक बार कहा था “ज़िन्दगी वही है जो दूसरों के लिए जिया जाए”। और मेरी माँ ने इस कथन को जिया है।

उस शाम जब मैं अपने माता पिता के घर पहुंची, तब मैं सीधे मां के छोटे से अंधियारे कमरे में गई। वहां मैंने माँ को बिस्तर पर आराम करते हुए देखा, और उस वक्त मुझे लगा कि शायद मां सो रही है। मेरे भाई-बहन माँ को घेरे खड़े थे। जब मेरी बहन ने मुझे देखा तो वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे किनारे ले गई। और उसने मुझे समझाया कि माँ को अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी इसी लिए वह यहां आराम करने आईं, लेकिन आराम करते करते वह कोमा में चली गईं और अब माँ बिल्कुल बात नहीं कर रही थीं। उस दिन माँ ने सुबह से सबके लिए खाना बनाया था, सबको घर पर बुलाया था जबकि कायदे से उन्हें किसी अस्पताल के बिस्तर पर सुकून से होना चाहिए था। उनके जीवन के आख़िरी दिन, उनके आख़िरी काम भी वैसे ही थे जैसे उनकी पूरी ज़िन्दगी थी  – क्योंकि उन्होंने सारी ज़िन्दगी दूसरों की भलाई, दूसरों की सेवा की। मेरी माँ आत्म बलिदान की मूरत थी।

मेरी माँ ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की, कभी यह नहीं ज़ाहिर किया की वह कितना दर्द सह रहीं हैं, कभी अपने दर्द भरे कैंसर के इलाज की शिकायत नहीं की। ईश्वर ने माँ के कंधों पर इतना भारी क्रूस डाला था, लेकिन माँ ने कभी कुछ नहीं कहा। मेरी माँ ने जिस विश्वास के सहारे अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ार दी, उसी विश्वास पर तब भी भरोसा रख कर माँ ने बिना किसी सवाल के ईश्वर का दिया क्रूस उठाया, बखूबी उठाया।

बारह घंटों तक मैं माँ के पास से हिली भी नहीं, मैं माँ को उनके सबसे दर्द भरे समय में कैसे अकेला छोड़ सकती थी? माँ हमेशा कहती थीं कि उन्हें अस्पताल में नहीं मरना है, आज उनके जाने के बाद मैं सोचती हूं कि कैसे उस अनंत ईश्वर ने माँ को यह कृपा प्रदान की कि वे अपने घर में, अपने पति और अपने दस बच्चों के बीच स्वर्ग सिधार सकें। जैसे जैसे मां की हालत बिगड़ने लगीं, हमारा पूरा परिवार एक आख़िरी बार उनके पास बैठ कर रोज़री बोलने लगा, उसी तरह जैसे हम बचपन से प्रार्थना करते आए थे। हमने अपनी भरी आंखों से अपने पल्ली पुरोहित द्वारा माँ को रोगियों का संस्कार देते हुए देखा। हम बारी बारी से माँ के पास बैठे, हमने उन्हें हर बात के लिए शुक्रिया कहा, क्योंकि उन्होंने ही हमें ईश्वर की योजनाओं पर भरोसा करना सिखाया था। हम सब जानते थे कि हालांकि माँ ने इस क्रूस को अपनाया था और खुद को स्वर्ग के द्वार से गुज़रने के लिए तैयार किया था, फिर भी उनका दिल इस बात से दुखता था कि उनके जाने पर हमें कितना दुख होगा। हालांकि उन्होंने हमें समझाने की कोशिश की कि स्वर्ग जा कर वह हमारे ज़्यादा काम आ पाएंगी, और मुझे उनकी बात पर भरोसा है।

और हालांकि माँ अपने आखिरी वक्त में कुछ बोल नहीं पा रही थीं, फिर भी हमने गौर किया कि जब भी हम उन्हें दवाई देने की कोशिश कर रहे थे तो वह अपनी आंखों से हमें मना कर रही थीं। उनके बार बार ऐसा करने पर आखिरकार सबने खुले आम यह कह ही दिया, कि माँ अपने आख़िरी समय में वह दर्द सहना चाहती थीं, और इसे हमारे लिए ईश्वर को समर्पित करना चाहती थीं।

धीरे धीरे रात दिन में बदलने लगी, और जब हम सब अपनी नींद से लड़ने की कोशिश कर रहे थे तभी हमने देखा कि माँ की सांसे थमने लगीं थी। हम सब तब माँ के बिल्कुल नज़दीक जा कर बैठ गए, और हमने माँ को आख़िरी बार अलविदा कहा। हमने उनसे कहा कि हम अपना और एक दूसरे का खयाल रखेंगे, ताकि वह सुकून से स्वर्ग जा कर अपने पिता और स्वर्ग की ओर जल्दी बुलाये गए अपने नाती पोतों से मिल सकें। मैंने भारी दिल से उन्हें अपनी आख़िरी सांस लेते हुए देखा। और उसके साथ ही, बारह लोगों से भरे उस छोटे से कमरे में सन्नाटा छा गया। मैंने चुपके से आहें भरते हुए कहा, “अब माँ ने ईश्वर का चेहरा देख लिया है।” उसी क्षण से मैंने “माँ के लिए” प्रार्थना छोड़ दिया और “माँ से” प्रार्थना करने लगी। वह दिन, सब संतों का दिन था। मैं सोचती हूं उस दिन स्वर्ग में मां का स्वागत कितनी धूम धाम से हुआ होगा!

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मेरी थेरेस एमन्स

मेरी थेरेस एमन्स चार बच्चों की माँ हैं जो अपनी सेवकाई में हमेशा व्यस्त रहती हैं । उन्होंने अपने स्थानीय पल्ली में छोटे बच्चों को कैथलिक धर्मशिक्षा सिखाने में 25 से अधिक वर्ष बिताए हैं। वे अपने परिवार के साथ यू.एस.ए. के मोंटाना में रहती हैं।

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