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अगस्त 12, 2021 1271 0 Deacon Doug McManaman, Canada
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वर्तमान की ताकत

आपकी सबसे पसंदीदा याद कौन सी है? कभी सोचा है कि वह याद आपके ज़हन में आज भी ताज़ा क्यों है?

 यादों की गलियों में

एक दिन अचानक मैंने सोचा कि क्यों न अपने एक पुरोहित मित्र से मिलने जाया जाए। मेरे दोस्त की अब उम्र हो चली है और ईश्वर ही जानता है कि उनके पास कितनी ज़िंदगी बची है। पिछले कुछ दिनों से मैं मानव जीवन पर मनन चिंतन कर रहा था, क्योंकि हम तीस साल से दोस्त रहे हैं। और मुझे अहसास हुआ कि हमने न जाने कितने ही बहुमूल्य पल एक साथ गुज़ारे है, जिनमे से काफी पल तो मुझे अब याद भी नहीं हैं। कभी कभी अगर मैं दिमाग पर ज़ोर डालूं तो बड़ी मुश्किल से मुझे उनमें से कुछ पल याद आ जाते हैं। या कभी कोई बात मुझे इन पलों की याद दिला देते हैं। ये यादें उस हर एक दिन की हैं जब भी मैं अपने दोस्त से अलग अलग पल्ली या अलग स्थानों में मिलने जाया करता था।

जो बात मुझे सोच में डालती है वह यह है कि समय के साथ हम कितना कुछ भूलते जाते हैं और कितना कम हमें आखिर में याद रह जाता है। देखा जाए तो वर्तमान में मिला समय किसी ख़ज़ाने की तरह है जो समय बीतने के साथ साथ खर्च होता जाता है और कुछ समय बाद हमारे पास इन पलों की यादें तक नहीं बचती। पर जब हम इन बीते लम्हों को याद करने की कोशिश करते हैं तब हमें अहसास होता है कि उस बीते लम्हे में कैसे हमारे अवचेतन मन को उस वक्त बस इस बात की समझ थी कि वर्तमान का यह लम्हा ही सबसे बहुमूल्य है।

समय तेज़ी से भाग रहा था इसीलिए मैं अपने दोस्त से मिलने के लिए निकला; रास्ते में मैं यह सोचने लगा, एक दिन यह रात भी खुद में अनेक राज़ छुपाए मेरे यादों के गलियारे में एक धुंधली सी याद बन कर रह जाएगी। वर्तमान का यह लम्हा जब अतीत में परिवर्तित हो जाएगा, तो उसका सिर्फ ढांचा ही रह जाएगा और उसका एक बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए खो जाएगा। और जो बचेगा वह कुछ ऐसा सामने लाएगा जो उस वक्त छिपा था जब वह लम्हा जीवंत था, खेत में छुपे ख़ज़ाने की तरह (मत्ति 13:44-46)

जीवन का केंद्र

मैं मन ही मन यह सोचने लगा कि ऐसा क्या है जो मेरे लिए दोस्तों के साथ बिताए इस पल को यादगार बनाता है? ऐसा क्या है जो इन लम्हों को बहुमूल्य बनाता है? मेरे लिए इसका जवाब बेहद सरल है। मेरे लिए हमारी दोस्ती और हमारी आपसी समझ ही इन लम्हों को खास बनाती है। अक्सर दोस्ती सामान्य गुणों और रुचियों पर आधारित होती है। आपस में कुछ न कुछ सामान्य गुण तुच्छ भी हो सकते हैं जिनकी नीव पर बनी दोस्ती भी तुच्छ होती है। पर हमारी दोस्ती ऐसी नही है, तो फिर हमारी दोस्ती किस समानता की नीव पर स्थापित है? इसका जवाब है ख्रीस्त के लिए हमारा प्रेम। वे ही हमारे केंद्र में हैं। हमें अपने कैथलिक विश्वास से प्रेम है, पवित्र मिस्सा से स्नेह है, पाप स्वीकार और धर्मशास्त्र की गहराइयां हमें आकर्षित करती हैं। जब हम साथ होते हैं, तब हम अपना ज़्यादातर समय धर्मशास्त्र के सिद्धांतों, महान किताबों, सियासी बातों आदि में चर्चा करने में गुज़ारते हैं। और इन सारी बातों के केंद्र में हैं मसीह और उनके प्रति हमारा प्रेम।

और ख्रीस्त कौन हैं? ख्रीस्त समय को अनंत काल से जोड़ने का काम करते हैं। जैसा कि बोथियस ने कहा “अनंत काल अपने आप में अनगिनत सदियां पूर्णता में समेटे हुए हैं।” ईश्वर अनंत हैं, हम नहीं, क्योंकि हमारे मन में हमारी ज़िंदगी का हर पल अपनी पूर्णता में उपस्थित नहीं है। हमारी सारी यादें अधूरी हैं, अपूर्ण हैं। इसीलिए हमारी ज़िंदगी में समय अपूर्णता और असंतोष से भरा हुआ है। हालांकि हमारा दिल यह चाहता है कि हमें सब कुछ पूर्णता में प्राप्त हो। संक्षेप में कहें तो हमें अनंत काल की आशा है, हमें ईश्वर की आशा है। इसीलिए उपदेशक की किताब में सच ही लिखा गया है, ” व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है” (उपदेशक 1:2)। इस ज़िंदगी में समय हमें सब कुछ नही दे सकता। पर अनंत काल ने समय में प्रवेश किया, शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। (योहन 1:14) इसका नतीजा यह हुआ है कि अब समय ईश्वर से जुड़ कर ईश्वर में समाहित हो गया है जिसके द्वारा हमें हमारे हृदय की इच्छा प्राप्त होती है, जो कि अनंत काल है।

अनंत काल में वर्तमान

हम उस शब्द की इच्छा रखते हैं जिसमें हम अपने स्वर्गीय पिता की छवि देखते हैं और जिसके द्वारा हम मानव जीवन के रहस्यों को समझ पाते हैं, यानी जिसमें हम अपने जीवन के बिखरे टुकड़ों को सिमटता देख पाते हैं। हम ख्रीस्त की इच्छा रखते हैं। और जब हमारी दोस्ती, हमारा दिन प्रतिदिन का जीवन येशु में केंद्रित और येशु में समाहित है, तब हमारे लिए समय कईं ज़्यादा अर्थपूर्ण बन जाता है। वर्तमान में छुपा अर्थ वर्तमान की बेड़ियां पार कर जाता है और हमारी स्मृति हमें इस बात की सिर्फ झलक मात्र दे पाती है। एक झलक उस बहुमूल्य ख़ज़ाने की, जिसे हमने उस पल में जिया तो ज़रूर, पर समझ नही पाए। इस प्रकार ईश्वर समय के द्वारा हर मनुष्य में जाने अंजाने में समाहित हैं, क्योंकि खुद को मानव प्रकृति से जोड़ कर ईश्वर ने खुद को हर इंसान से जोड़ लिया। हम जिसकी आशा करते हैं वह हमारे अंदर ही है, क्योंकि “ईश्वर का राज्य हमारे ही बीच है।” (लूकस 17:21) और हमारे बाहर भी, हर गुज़रते पल में समाहित।

ख्रीस्त को समझ पाना जैसे अनंत काल के रहस्यों को वर्तमान काल में समझ पाना है। ख्रीस्त से दूर जाना जैसे वर्तमान की गहराई से दूर जाना और यह दूरी हमारे अंदर एक बेचैनी को, ठहर जाने की इच्छा को जन्म  देती है। फिर हम अतीत में जीने लगते हैं, और अपने पुराने कर्मों को कोसते हुए, वर्तमान की ताज़गी से दूर जीवन बिताने लगते हैं। हम भविष्य की आशा में वर्तमान पर ध्यान ही नही देते हैं; वह भविष्य जो कभी आएगा ही नही क्योंकि जिस भविष्य की हम बाट जोहते हैं वही तो वर्तमान है, और हमें वर्तमान की कोई कदर ही नहीं है। हो सकता है कि हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के एक साल बाद स्वर्ग सिधार जाएं। हो सकता है कि हमारी मृत्यु उसी घर में हो जिसे हमने सालों मेहनत करके अपने बुढ़ापे के लिए खड़ा किया हो। हो सकता है कि हमारी मृत्यु कैंसर की वजह से हो, या सड़क दुर्घटना की वजह से, या हार्ट अटैक से हो। हो सकता है कि हमारी मृत्यु पर हमारा कोई नियंत्रण न हो। और ऐसा सब कुछ इसलिए क्योंकि हम ख्रीस्त के लिए नहीं जिए और हमने जीते जी वर्तमान की ताकत, अहमियत और सौंदर्य को कभी अपनाया ही नहीं। इसकी जगह हम उन चीज़ों में सौंदर्य और संपदा ढूंढते रहे जो अभी उपस्थित भी नही है, यानी भविष्य। ख्रीस्त को हार जाना यानी ज़िंदगी में हार जाना। एक हारी हुई ज़िंदगी एक व्यर्थ ज़िंदगी है। लोग कहते हैं रुको और फूलों की महक को महसूस करो। हमारे लिए ख्रीस्त वह गुमान का फूल हैं, कांटों के मुकुट से सुसज्जित, जिसकी खुशबू हमें यह बताती है कि जब ख्रीस्त का रक्त हमारी रगों में दौड़ता है, तभी हमारी ज़िंदगी खूबसूरत बनती है।

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Deacon Doug McManaman

Deacon Doug McManaman is a retired teacher of religion and philosophy in Southern Ontario. He lectures on Catholic education at Niagara University. His courageous and selfless ministry as a deacon is mainly to those who suffer from mental illness.

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