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मई 24, 2024 13 0 जॉय बर्न
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मैंने सोचा कि मौत ही जवाब है, लेकिन…

अगर मैं उस अंधकार से नहीं गुज़री होती, तो मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ नहीं होती।

मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि उनका भरापूरा परिवार हो। लेकिन मेरी माँ 40 वर्ष की आयु तक गर्भ धारण नहीं कर पाई। मैं उनकी चमत्कारी बच्ची थी। मैं माँ के जन्मदिन पर पैदा हुई थी। माँ एक बच्चा पाने के लिए एक साल से निवेदन करती हुई विशेष नौरोज़ी प्रार्थना (नोवेना) कर रही थी। एक साल की नौरोज़ी प्रार्थना पूरा करने के ठीक उसी दिन मेरा जन्म हुआ था। मेरे जन्म के एक साल बाद प्रभु ने उपहार में एक छोटा भाई भी दिया।

मेरा परिवार नाममात्र कैथलिक था; हम रविवार के मिस्सा बलिदान में जाते थे और पवित्र संस्कार प्राप्त करते थे, लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं था। जब मैं लगभग 11 या 12 वर्ष की थी, तो मेरे माता-पिता ने कलीसिया से मुंह मोड़ लिया और मेरे विश्वास-जीवन में अविश्वसनीय रूप से लंबा विराम लग गया।

तड़पती हुई पीड़ा

किशोरावस्था का दौर दबाव से भरा हुआ था, जिनमें से बहुत कुछ मैंने खुद अपने ऊपर थोपा था। मैं खुद की तुलना दूसरी लड़कियों से करती थी; मैं अपनी शक्ल-सूरत से खुश नहीं थी। मैं बहुत ज़्यादा आत्म-चेतन और चिंतित रहती थी। हालाँकि मैं पढ़ाई में अव्वल थी, लेकिन मेरा स्कूली जीवन मेरे लिए मुश्किल का दौर था क्योंकि मैं बहुत महत्वाकांक्षी थी। मैं आगे बढ़ना चाहती थी – लोगों को दिखाना चाहती थी कि मैं सफल और बुद्धिमान हो सकती हूँ। हमारे परिवार के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे अच्छी पढ़ाई करके और अच्छी नौकरी पाना चाहिए, जिससे सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

इसके बजाय, मैं और भी उदास होती गई। मैं खेलकूद और जश्न-समारोहों में जाती, लेकिन अगले दिन उठकर मैं खुद को खाली महसूस करती। मेरे कुछ अच्छे दोस्त थे, लेकिन उनके भी अपने संघर्ष थे। मुझे याद है कि मैं उनका साथ देने की कोशिश करती थी और आखिर में मैं सवाल उठाने लगती थी कि मेरे आस-पास के सभी दुखों के पीछे का कारण क्या है। मैं खोई हुई थी, और इस उदासी ने मुझे खुद को दुनिया से अलग करके बंद रहने और खुद में सिमटने पर मजबूर कर दिया।

जब मैं लगभग 15 साल की थी, तो मुझे खुद को नुकसान पहुँचाने की आदत पड़ गई; जैसा कि मुझे बाद में पता चला, उस उम्र में, मेरे पास परिपक्वता नहीं थी या मैं जो महसूस कर रही थी, उसके बारे में बोलने की क्षमता नहीं थी। जैसे-जैसे दबाव बढ़ता गया, मैं कई बार आत्महत्या के विचारों में डूब गयी। एक बार अस्पताल में भर्ती होने के दौरान, डॉक्टरों में से एक ने मुझे बहुत पीड़ा में देखा और पूछा: “क्या तुम ईश्वर में विश्वास करती हो? क्या तुम मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करती हो?” मुझे लगा कि यह सबसे अजीब सवाल था, लेकिन उस रात, मैं ने इस सवाल को याद करके इस पर विचार किया। तभी मैंने मदद के लिए ईश्वर को पुकारा: “हे ईश्वर, अगर तू मौजूद है, तो कृपया मेरी मदद कर। मैं जीना चाहती हूँ – मैं अपना जीवन अच्छे कामों में बिताना चाहती हूँ, लेकिन मैं खुद से प्यार करने में भी सक्षम नहीं हूँ। मैं जो कुछ भी करती हूँ, उन सबका कोई मतलब नहीं निकाल पाती हूँ, इसलिए मैं उदासी और दुःख में टूटकर बिखर जाती हूँ।” 

मदद का हाथ

मैंने माँ मरियम से बात करना शुरू किया, उम्मीद है कि शायद वह मुझे समझ सकें और मेरी मदद कर सकें। कुछ ही समय बाद, मेरी माँ की सहेली ने मुझे मेजुगोरे की तीर्थयात्रा पर जाने के लिए आमंत्रित किया। मैं वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहती थी, लेकिन एक नए देश और अच्छे मौसम को देखने की जिज्ञासा के कारण मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

मैं रोज़री माला की प्रार्थना कर रहे लोगों, उपवास करने वाले लोगों, पहाड़ों पर चलने और मिस्सा में जाने वाले लोगों से घिरी हुई थी, मेरा मन उसमे रम नहीं पा रहा था, लेकिन साथ ही, मैं थोड़ी उत्सुक भी थी। यह कैथलिक युवाओं के उत्सव का समय था, और वहाँ लगभग 60,000 युवा लोग थे, जो हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना करते हुए मिस्सा और आराधना में भाग ले रहे थे; इसलिए नहीं कि उन्हें मजबूर किया गया था, बल्कि खुशी से, शुद्ध इच्छा से और बड़े लगन के साथ वे भाग ले रहे थे। मैं बड़े आश्चर्य के साथ सोचने लगी कि क्या इन लोगों के अपने सही परिवार हैं, जो उनके लिए विश्वास करने, ताली बजाकर भजनों को गाने, नृत्य करने और यह सब भक्ति के कार्य को  करने में वास्तव में उनके लिए आसान बना रहा था। सच कहूँ तो, मैं उन युवाओं जैसी खुशी के लिए तरस रही थी!

जब हम उस तीर्थयात्रा पर थे, तो हमने पास के सेनाकोलो समुदाय में कुछ लड़कियों और लड़कों की गवाही सुनी, और उनकी गवाहियों ने वास्तव में मेरे लिए सब कुछ बदल डाला। 1983 में, एक इतालवी साध्वी ने सेनाकोलो समुदाय की स्थापना की थी ताकि उन युवाओं की मदद की जा सके जिनके जीवन ने गलत मोड़ ले लिया था। अब, यह संगठन दुनिया भर के कई देशों में पाया जा सकता है। 

मैंने स्कॉटलैंड की एक लड़की की कहानी सुनी जिसे नशीली दवाओं की समस्या थी; उसने अपनी जान लेने की भी कोशिश की थी। मैंने खुद से कहा: “अगर वह इतनी खुशी से रह सकती है, अगर वह उन सारे दर्द और पीड़ा से बाहर आ सकती है और वास्तव में ईश्वर में विश्वास कर सकती है, तो शायद इसमें मेरे लिए भी ईश्वर की कुछ योजना होगी।”

मेजुगोरे में रहने के दौरान मुझे एक और बड़ी कृपा मिली, वह यह कि मैं कई सालों बाद पहली बार पाप स्वीकार संस्कार के लिए गयी। मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद करनी है। लेकिन अंत में पाप स्वीकार संस्कार में जाकर मैं ने दूसरों और खुद को चोट पहुँचाने वाली सभी बातों के बारे में ईश्वर के सम्मुख कहा तो मैंने अनुभव किया कि मेरे कंधों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया है। मुझे बस शांति महसूस हुई, और मैं एक नई शुरुआत करने के लिए पर्याप्त रूप से स्वच्छ महसूस कर रही थी। मैं वापस आयी और आयरलैंड के एक विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, लेकिन मुझे पर्याप्त समर्थन नहीं पाने के कारण, मैं फिर से अस्पताल में आ गयी।

रास्ते की खोज

यह महसूस करते हुए कि मुझे मदद की ज़रूरत है, मैं इटली वापस गयी और सेनाकोलो समुदाय का हिस्सा बन गयी। यह आसान नहीं था। सब कुछ नया था—भाषा, प्रार्थना, अलग-अलग व्यक्तित्व, संस्कृतियाँ—लेकिन इसमें एक सच्चाई थी। कोई भी मुझे किसी बात के लिए मनाने की कोशिश नहीं कर रहा था; हर कोई प्रार्थना, काम और सच्ची दोस्ती में अपना जीवन जी रहा था, और यही उन्हें चंगाई प्रदान कर रहा था। वे शांति और आनंद से जी रहे थे, और यह बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक था। मैं हर दिन, पूरे दिन उनके साथ थी—मैंने इसे पूरा का पूरा अनुभव किया, आनंद लिया। मैं यही चाहती थी!

उन दिनों जिस चीज़ ने वास्तव में मेरी मदद की, वह थी आराधना। मुझे नहीं पता कि मैं कितनी बार परम पवित्र  संस्कार के सामने रोयी। कोई चिकित्सक मुझसे बात नहीं कर रहा था, कोई भी मुझे कोई दवा देने की कोशिश नहीं कर रहा था, बस ऐसा लग रहा था कि मैं शुद्ध हो रही हूँ। समुदाय में भी, ईश्वर के अलावा कुछ भी खास नहीं था।

मैंने दूसरों की सेवा करना शुरू कर दिया, और इसी ने मुझे अपने अवसाद से बाहर निकलने में मदद की। जब तक मैं अपने आप को, अपने घावों और समस्याओं को देखती रही, मैं खुद को और भी बड़े गड्ढे में धकेलती रही। सामुदायिक जीवन ने मुझे खुद से बाहर आने, दूसरों की ओर देखने और उन्हें आशा देने की कोशिश करने के लिए मजबूर किया, वह आशा जो मुझे मसीह में मिल रही थी। जब अन्य युवा लोग समुदाय में आते थे, युवा लड़कियाँ जिनकी समस्याएँ मेरी जैसी या कभी-कभी उससे भी बदतर होती थीं, तो इससे मुझे बहुत मदद मिली। मैंने उनकी देखभाल की, मैंने एक बड़ी बहन बनने, कभी-कभी एक माँ भी बनने की कोशिश की। 

मैंने सोचना शुरू किया कि जब मैं खुद को चोट पहुँचा रही होती या जब मैं दुखी होती, तो मेरी माँ ने मेरे साथ क्या अनुभव किया होगा। अक्सर एक तरह की असहायता की भावना होती है, लेकिन विश्वास के साथ, भले ही आप अपने शब्दों से किसी की मदद न कर सकें, तो भी आप अपने घुटनों पर खड़े होकर प्रार्थना के द्वारा मदद कर सकते हैं। मैंने प्रार्थना के द्वारा बहुत सी लड़कियों में और अपने जीवन में बदलाव देखा है। यह कोई रहस्यपूर्ण बात नहीं है या ऐसा कुछ नहीं है जिसे मैं ईशशास्त्र के आधार पर समझा सकूं, लेकिन माला विनती, अन्य प्रार्थना और संस्कारों के प्रति निष्ठा ने मेरा और कई अन्य लोगों का जीवन बदल दिया है, और इस से हमें जीने की एक नई इच्छा मिली है।

इस ख़ुशी को आगे बढ़ाते हुए 

मैं नर्सिंग में अपना करियर बनाने के लिए आयरलैंड लौटी; वास्तव में, करियर से ज़्यादा, मुझे गहराई से लगा कि मैं अपना जीवन इसी तरह बिताना चाहती हूँ। मैं अब युवा लोगों के साथ रह रही हूँ, जिनमें से कुछ मेरी उम्र के जैसे ही हैं – वे आत्म-क्षति, अवसाद, चिंता, मादक द्रव्यों के सेवन या अशुद्धता से जूझ रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्हें यह बताना ज़रूरी है कि ईश्वर ने मेरे जीवन में क्या किया, इसलिए कभी-कभी दोपहर के भोजन के दौरान, मैं उनसे कहती हूँ कि अगर मुझे विश्वास न हो कि बीमारी के बाद मृत्यु से ज़्यादा जीवन में कुछ और भी है, तो मैं वास्तव में यह काम नहीं कर पाऊँगी, सभी दुख और दर्द नहीं देख पाऊँगी। लोग अक्सर मुझसे कहते हैं: “ओह, तुम्हारा नाम जॉय है, यह तुम पर बहुत सूट करता है; तुम बहुत खुश और मुस्कुराती रहती हो।” मैं अंदर ही अंदर हँसती हूँ: “काश तुम्हें पता होता कि यह कहाँ से आया है!”

मेरी खुशी दुख से पैदा हुई ख़ुशी है; इसलिए यह सच्ची खुशी है। यह तब भी बनी रहती है जब दर्द होता है। और मैं चाहती हूँ कि युवा लोगों को भी यही खुशी मिले क्योंकि यह सिर्फ़ मेरी ख़ुशी नहीं है, बल्कि यह ईश्वर से मिलने वाली खुशी है, इसलिए हर कोई इसका अनुभव कर सकता है। मैं सिर्फ़ ईश्वर की इस असीम खुशी को बाँटना चाहती हूँ ताकि दूसरे लोग जान सकें कि आप दर्द, दुख और कठिनाइयों से गुज़र सकते हैं और फिर भी हमारे पिता के प्रति आभारी और आनंदित होकर इससे बाहर निकल सकते हैं।

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जॉय बर्न

जॉय बर्न आयरलैंड के डबलिन में रहती हैं और वर्तमान में नर्सिंग में डिग्री हासिल कर रही हैं। यह लेख जॉय द्वारा शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम “जीसस माई सेवियर” पर दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। एपिसोड देखने के लिए, यहाँ जाएँ: shalomworld.org/episode/do-you-believe-in-god-joy-byrne

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