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अगस्त 12, 2021 1324 0 बिशप रॉबर्ट बैरन, USA
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पापा फ्रांसिस, “फ्रातेल्ली तूत्ती,” और वस्तुओं का सार्वभौमिक गंतव्य

संत पापा फ्रांसिस के सबसे हालिया सार्वभौम परिपत्र ‘फ्रातेल्ली तूत्ती’ के प्रकाशन के मद्देनजर, पूंजीवाद और निजी संपत्ति के प्रति संत पापा के रवैये के बारे में नकारात्मक टिप्पणी का एक बड़ा तूफ़ान मचा हुआ है। कई पाठकों ने पापा फ्रांसिस के विचारों की व्याख्या इस प्रकार की कि पूंजीवादी व्यवस्था अपने आप में शोषणकारी है और निजी संपत्ति की पकड़ नैतिक रूप से गलत है। जो भविष्यवाणी-शैली में लिखते हैं, उनकी तरह संत पापा फ्रांसिस भी वास्तव में मजबूत और चुनौतीपूर्ण भाषा का प्रयोग करते हैं, और इसलिए, यह समझना आसान है कि उनके विरोधी किस तरह उत्तेजित हो जाते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि संत पापा फ्रांसिस के कथन को बड़े ध्यान से पढ़ने की आवश्यकता है और उसे कैथलिक सामाजिक शिक्षण की लंबी परंपरा के संदर्भ में व्याख्या करने की ज़रूरत है।

सबसे पहले, जिस पूंजीवाद के संबंध में कलीसिया “बाजार अर्थव्यवस्था” कहती है, उस के सम्बन्ध में संत पापा का कहना है: “व्यावसायिक गतिविधि अनिवार्य रूप से एक महान बुलाहट है, जिसका लक्ष्य धन का उत्पादन कर हमारी दुनिया को बेहतर बनाना है” (फ्रातेल्ली तूत्ती, 123)। इसके अलावा पूंजीवाद को दुष्ट कहनेवाली किसी भी विचारधारा से संत पापा खुद को अलग कर लेते हैं | वे स्पष्ट रूप से पुष्टि करते हैं कि नैतिक रूप से सराहनीय आर्थिक व्यवस्था वह है जो न केवल धन वितरित करती है बल्कि उद्यमशीलता के माध्यम से धन पैदा भी करती है। इसके अलावा, वे तर्क देते हैं कि एक निश्चित स्व-चिंता, जिसमें कुछ लाभ लेना भी शामिल है, आर्थिक गतिविधि के नैतिक उद्देश्य के प्रतिकूल नहीं है: “ईश्वर की योजना में, प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के विकास को बढ़ावा देने के लिए बुलाया गया है, और इसमें उत्पादन को बढ़ाने और धन में वृद्धि करने का सबसे अच्छे आर्थिक और तकनीकी साधन की खोज भी शामिल है ”(123)। ऐसी टिप्पणियाँ करते हुए, संत पापा फ्रांसिस संत जॉन पॉल द्वितीय की परंपरा में मजबूती से खड़े हैं, जिन्होंने मानव रचनात्मकता, सरलता और साहस के अभ्यास के लिए बाजार की अर्थव्यवस्था को एक अवसर के रूप में देखा जो हमेशा अधिक से अधिक लोगों को अपनी गतिशीलता में खींचने का प्रयास करता आया है। आधुनिक कैथलिक सामाजिक परंपरा के संस्थापक, महान लियो तेरहवें, जिसने रेरुम नोवारुम सार्वभौम परिपत्र के द्वारा, निजी संपत्ति का बचाव किया और कई तर्कों का उपयोग करते हुए, साम्यवादी आर्थिक व्यवस्थाओं को नकार दिया। संत पापा फ्रांसिस ने अपने इन दोनों पूर्वगामियों की परंपरा की पुष्टि की है | इसलिए मैं आशा करता हूँ कि ‘संत पापा फ्रांसिस पूंजीवाद के दुश्मन है और वैश्विक समाजवाद के जयजयकार करनेवाले व्यक्ति हैं’, ऐसी मूर्खतापूर्ण झूठी अफवाह के विरुद्ध उपरोक्त सबूत दिये जा सकते हैं ।

अब, इसमें से किसी से भी लाभ प्राप्त किए बिना, हमें अब यह भी इंगित करना चाहिए कि, सामाजिक शिक्षण परंपरा में अपने सभी पूर्वगामियों की तरह, अपवाद के बिना, संत पापा फ्रांसिस भी बाजार की अर्थव्यवस्था के लिए, कानूनी और नैतिक सीमाओं की आवश्यकता पर भी बल देते हैं। और इस संदर्भ में, शास्त्रीय कैथलिक धर्मविज्ञानं “वस्तुओं के सार्वभौमिक गंतव्य” के रूप में जो संकेत करता है उस पर संत पापा भी जोर देते है। यहाँ ‘फ्रातेली तूत्ती’ में पापा फ्रांसिस ने इस तरह कहा है: “निजी संपत्ति का अधिकार हमेशा इस प्राथमिक और पूर्व सिद्धांत के साथ होता है कि पृथ्वी की भौतिक वस्तुओं के सार्वभौमिक गंतव्य के लिए सभी निजी संपत्ति की अधीनता का और उपभोग का सभी को अधिकार है” (123)। स्वामित्व और उपभोग के बीच अंतर करने में, संत पापा फ्रांसिस, संत थॉमस एक्विनास के विचार को दुहरा रहे हैं, जिन्होंने सुम्मा थियोलोजिया के प्रश्न संख्या 66 में इस पर प्रासंगिक अंतर किया था। संत थॉमस का तर्क है कि कई कारणों से, लोगों को “माल की खरीद और निस्तारण” का अधिकार है और इसलिए उन्हें “संपत्ति” के रूप में रखने का भी अधिकार है। लेकिन वे जो कुछ भी स्वयं के लिए नीतिगत रूप से उपयोग करते हैं, उसके संबंध में, उन्हें हमेशा सबसे पहले सामान्य कल्याण को ध्यान में रखना चाहिए: “इस लिहाज से मनुष्य को भौतिक चीजों पर स्वामित्व होना चाहिए, अपनी निजी वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि सामूहिक रूप में, ताकि वह वे उन्हें दूसरों की जरूरत के हिसाब से उन के साथ साझा करने के लिए तैयार रहें।”

अब, इस अंतर के संबंध में, संत थॉमस खुद एक पुरानी परंपरा के उत्तराधिकारी थे, जो कलीसिया के आचार्यों की परंपरा है। पापा फ्रांसिस संत जॉन क्रिसोस्टम का उद्धरण इस प्रकार देते हैं: “गरीबों के साथ हमारे धन को साझा नहीं करना, उन्हें लूटने और अपनी आजीविका छीनने के समान है। हमारे पास जो धन है वह हमारा अपना नहीं है, बल्कि उनका भी है।” और इसी प्रकार वे संत ग्रेगरी महान का भी हवाला देते हैं: “जब हम जरूरतमंदों को उनकी बुनियादी ज़रूरतें प्रदान करते हैं, तो हम उन्हें वही दे रहे हैं जो हमारा नहीं, बल्कि उनका अपना है।” स्वामित्व और उपभोग के बीच के अंतर को समझने का सबसे सरल तरीका यह है कि देर रात को आपके घर के दरवाजे पर आकर भोजन की माँग करने वाले भूखे आदमी के परिदृश्य की आप कल्पना करें। हालांकि आप अपने ही घर में हैं, जिसका स्वामित्व वैध रूप से आप ही के पास है, और आप दरवाजे के पीछे हैं, जिसे आपने घुसपैठियों से बचने केलिए बंद कर दिया है, फिर भी उस भिखारी को उसकी सख्त जरूरत में आप अपनी कुछ संपत्ति को देने के लिए नैतिक रूप से बाध्य होंगे। संक्षेप में, निजी संपत्ति एक अधिकार है, लेकिन वह एक “अलंघनीय” अधिकार नहीं है – और ऐसा कहना साम्यवाद को बढ़ावा देना नहीं होता है।

संत पापा फ्रांसिस के सार्वभौमिक परिपत्र में एक नवीनता हमें दिखाई देती है वह उपरोक्त अंतर है जो राष्ट्रों के बीच के संबंध, न केवल व्यक्तियों के बीच के सम्बन्ध का अनुप्रयोग है। एक राष्ट्र या राज्य के पास वास्तव में अपनी संपत्ति रखने का अधिकार होता है, जो अपने लोगों की ऊर्जा और रचनात्मकता के माध्यम से प्राप्त होता है, और उसे अपनी सीमाओं को वैध रूप से बनाए रखने का अधिकार है; हालाँकि, ये विशेषाधिकार नैतिक रूप से पूर्ण नहीं हैं। पापा फ्रांसिस के शब्दों में, “हम फिर कह सकते हैं कि प्रत्येक देश, विदेशी का भी है, क्योंकि किसी अन्य क्षेत्र से आने वाले जरूरतमंद व्यक्ति को किसी क्षेत्र की संपत्ति या वस्तु देने से इनकार नहीं किया जान चाहिए।” (124) यह “वैश्विकता” नहीं है या राष्ट्रीय अखंडता का खंडन नहीं है; यह केवल स्वामित्व और उपभोग के बीच थॉमस एक्विनास द्वारा प्रतिपादित प्रभेद या अंतर है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू है।

ऐसा न हो कि हम पापा फ्रांसिस के शिक्षा को यहां मूर्खतापूर्ण समझें, इसलिए  मैं निजी संपत्ति के प्रबल रक्षक और साथ साथ साम्यवाद के तीव्र विरोधी संत पापा लियो तेरहवें के वचनों को उधार लेना चाहता हूं,: “जब आवश्यकता की मांग के अनुसार पूर्ती की जाती है, और किसी के आर्थिक स्थिति पर ज़रूरी ख्याल किया गया हो, उसके बाद यह एक कर्तव्य बन जाता है कि जो कुछ भी बचता है उसे गरीब को दे दिया जाए।” (रेरुम नोवारुम, 22)।

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बिशप रॉबर्ट बैरन

बिशप रॉबर्ट बैरन लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित हुआ था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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