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अगस्त 18, 2021 1420 0 Poor and unworthy friend of Christ
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डर पर विजय

अब समय है अपने डर से लड़ने का

एक और कोरोना रविवार की बात है, मैं परिवार के साथ ऑनलाइन मिस्सा में भाग ले रहा था। कोरोना की इस महामारी के बीचों बीच भी मैं यह देख सकता था कि पवित्र आत्मा हम सब को ऑनलाइन मिस्सा और शक्तिशाली प्रवचनों के द्वारा प्रेरित कर रहा था। इन सब के बावजूद, अपनी दुर्बलताओं की वजह से मैं यह देख सकता था कि मिस्सा में भाग लेते समय मेरा ध्यान और मेरी श्रद्धा समय के साथ कम होती जा रही थी। मिस्सा आगे बढ़ रहा था और अब पुरोहित उनके सामने कम संख्या में उपस्थित लोगों को परम प्रसाद बांट रहे थे। एक तरफ मुझे दुख हो रहा था कि मैं परम प्रसाद ग्रहण नहीं कर पा रहा था। वहीँ दूसरी ओर मैं खुद को यह समझा रहा था कि बाहर ना जाना और घर में रहना इस वक्त सबसे समझदारी का काम था।

मेरी पत्नी भी बच्चों को संभालते संभालते मेरे साथ ऑनलाइन मिस्सा में भाग ले रही थी। मेरी पत्नी अस्पताल में काम करती है, इसीलिए उसे कोरोना काल में बरती जाने वाली सारी सावधानियों और लापरवाहियों का अच्छी तरह से खयाल था। उसने तुरंत ही ध्यान दिया कि पुरोहित मिस्सा के दौरान कुछ लोगों को परम प्रसाद देने से पहले अपने हाथों को सैनिटाइज करना भूल गए थे। यह जानने के बाद मुझे बुरा लगा कि मैं उन लोगों की समझ पर सवाल कर रहा था जो इस महामारी में भी मिस्सा सुनने गए हुए थे। और हालांकि मुझे इस बात का अहसास था कि घर बैठ कर मिस्सा सुनना ही इस महामारी काल के लिए सही है, फिर भी चर्च जा कर मिस्सा सुनने के लिए मेरे कान तरस गए थे। इसीलिए अपनी समझ के खिलाफ जा कर मैंने चर्च में मिस्सा सुनने के लिए अर्जी डाली। अपने इस फैसले की वजह से मुझे अपने परिवार को बड़ी मुश्किल से मनाना पड़ा।

फिर अगले रविवार, डर और चिंता से घिरे हुए मैं मिस्सा सुनने के लिए निकला। हर जगह यह बताया जा रहा था कि कोरोना बूढ़े लोगों के लिए जानलेवा है, फिर भी मिस्सा में उपस्थित आधे से ज़्यादा लोग बूढ़े थे। मैं बिल्कुल स्वस्थ था और तीस वर्ष का था, इस कम उम्र को देखा जाए तो कोरोना से ज़्यादा खतरा भी नहीं था। फिर भी मुझे चर्च जाने में डर लग रहा था। कभी कभी मैं ख्वाब देखा करता था कि  मैं निडर हो कर अपना विश्वास उसी तरह प्रदर्शित कर रहा हूं जिस प्रकार ईसाई संतों ने उत्पीड़न करने वालों के सामने अपना विश्वास प्रकट किया था। और अब जब मेरे विश्वास की इतनी छोटी सी परीक्षा ली गई थी, तब मैंने इतनी आसानी से हार मान ली थी।

मुझे याद है वे सारे दिन, जब मैं राशन और बाकी ज़रूरत के सामान लेने गया था। मैंने उन सारी चीज़ों को अपने आध्यात्मिक भोजन से ज़्यादा महत्व दिया था। मुझे याद है वह हर लम्हा जब मैंने यह सच्चे दिल से विश्वास किया था कि येशु मसीह परम प्रसाद में उपस्थित हैं और परम प्रसाद के द्वारा कई चमत्कार होते हैं। इन सब के बावजूद, मैं कई महीनों तक चर्च जाने से डरता रहा और बाकी लोगों की बुद्धि पर सवाल करता रहा। लेकिन ईश्वर ने मुझे अहसास दिलाया कि मैं कितना डरपोक बन रहा था। मेरे सपने सिर्फ सपने बन कर रह गए थे और मैं अब अपने इरादों के बिखर जाने पर शोक मना रहा था।

मुझे अहसास हुआ कि एक साल घर पर बिताने के बावजूद मुझे अब भी व्यक्तिगत प्रार्थना के लिए समय नही मिल रहा था और मेरे परिवार में भी सामूहिक प्रार्थना कम हुई थी। हम सब दिनभर काम और घर की साफ सफाई या टीवी देखने में अपना समय बर्बाद कर रहे थे। बचा हुआ समय फिल्म देखने में निकल जाता था।

मेरा ध्यान कोरोना महामारी के पहले के दिनों की ओर गया। मैं अच्छी तरह से प्रार्थना किया करता था, मैं एक पवित्र जीवन जीने की कोशिश किया करता था और रविवार के मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए उत्साहित रहता था। तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरे जीवन में पवित्रता और प्रार्थना मिस्सा में भाग लेने की वजह से ही थी। लूकस 17:33 बार बार मेरे मन में आ रहा था: जो अपना प्राण सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा, वह उसे खो देगा, और जो उसे खो देगा वह उसे जीवित रखेगा।

क्योंकि मैं औरों से ज़्यादा दुर्बल हूं, मुझे यह समझ आया है कि मेरा अनंत जीवन पवित्र मिस्सा में सम्मिलित होने और अधिक से अधिक बार परम प्रसाद ग्रहण करने पर आश्रित है। उस दिन जब मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया, वह दिन मेरे लिए बहुत खास था। क्योंकि मैं कई दिनों से अपने आध्यात्मिक भोजन को पाने के लिए भूखा था। मुझे अभी भी कोरोना महामारी से डर लगता है क्योंकि मुझे अपने को संभालना है। लेकिन अब मैं अपने विश्वास को कार्य में ला कर सर्वशक्तिमान, दयालु, प्रेममय ईश्वर पर विश्वास करते हुए हफ्ते में कम से कम एक बार अपना आध्यात्मिक भोजन ग्रहण करता हूं।

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