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अप्रैल 19, 2022 616 0 Father John Harris OP
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जीवन की पूर्णता देने वाले तथ्य

जागने, उजागर होने और तेजस्वी बनने का वक्त आ गया है।

 संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने हम सब को यह उपदेश दिया था कि हम अपने दिल के दरवाज़े येशु के लिए खोल दें। ईश्वर की उपस्थिति में हमारे जीवन की पूर्णता को अनुभव करने केलिए संत पापा हमारा आह्वान करते हैं। लेकिन आज की दुनिया में, अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति की बात कहना अटपटा सा लगता है। बाइबिल ईश्वर को मुक्तिदाता यानी, गुलामी से हमें आज़ाद करनेवाला मानती है, परन्तु दुनिया इस बिम्ब को इससे बिलकुल भिन्न, ईश्वर को हमारी आजादी, मनमौजी, सुख, और उम्मीद के खिलाफ कार्य करनेवाला मानती है। लेकिन इस तरह की बातें करना तो सत्यता के तथ्यों से बिलकुल अदूर रहकर बात करना जैसा है।

पूरी तरह मानव बनने और पूरी तरह जीवन का आनंद लेने का मतलब है, हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का होना। जब ईश्वर हमारे जीवन में निवास करता है, तब हम उसकी उपस्थिति के फलों को अनुभव करते हैं, शांति, प्रेम, आनंद, सौम्यता, और दयालुता के फल – ये सब फल हमें बेहतर और जिंदादिल इंसान बनाते हैं।

जीवन जीने का तरीका

 येशु ने कहा, “मैं इसलिए आया हूँ कि तुम्हें जीवन मिले, और प्रचुर मात्रा में मिले”। मुझे बहुत सारे नौजवानों की ज़िंदगी में उनका हमसफ़र बनने का अवसर मिला, और अक्सर मैं ने देखा है कि वे अपने जीवन में बहुत से दबावों का अनुभव करते हैं। कॉलेज में एडमिशन लेने और नौकरी पाने के लिए वे दिन रात मेहनत करते हैं। अपने जीवन को जीने के लिए उनके पास समय ही नहीं रहता है। ज़िन्दगी सिर्फ चीज़ें हासिल करने और चीज़ों को बरकरार रखने की प्रक्रिया बन जाती है। ज़िंदगी कहीं और जगह पहुँचने की एक दौड़ बन जाती है। यह तरीका आपके लिए ज़िन्दगी जीने का तरीका नहीं हो सकता है।

आपको सही ढंग से ज़िन्दगी जीने के लिए अपनी ज़िन्दगी में, ईश्वर को बुलाना होगा, और आप के असली व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से जीने में मदद के लिए ईश्वर को अवसर देना होगा। ईश्वर ने हमें पूर्ण मानव बनने के लिए सृष्ट किया है, और हमारी मानवता पर उसे आनंद मिलता है। येशु हमारी टूटी और बिखरी हुई दुनिया में, पापियों और रोगियों से भरी हुई दुनिया में आये, जिसे ईश्वर की ज़रूरत है, जिसे प्यार, शांति और ख़ुशी की ज़रूरत है। और सच्चाई यह है कि हमारे जीवन में ईश्वर नहीं है तो हम इन चीज़ों को हासिल नहीं कर सकते हैं। ईश्वर के बिना अपने जीवन के बारे में सोचना मेरे लिए असंभव है।

एक अप्रतीक्षित बुलावा

एक बार एक महिला ने मुझसे संपर्क करके यह अनुरोध किया कि अस्पताल में पड़े उसके पति के साथ मैं कुछ समय गुज़ारूँ। उसका नाम पीटर था। उस महिला को इस बात का डर था कि जब पीटर के रोग की जांच परिणामों को उसे बताया जाएगा और उसे पता चलेगा कि उसकी ज़िन्दगी के बहुत कम महीने बचे हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया किस तरह की होगी।

मैं पीटर के साथ कुछ वक्त गुज़ारने के लिए अस्पताल गया। जब हम दोनों बैठकर प्रार्थना कर रहे थे, तब डॉक्टर ने कमरे में प्रवेश किया। डॉक्टर ने उस दुखभरे सन्देश को सुनाया और वहां बस सन्नाटा छाया रहा। मैं ने बहुत प्रार्थना की थी कि इस वक्त ईश्वर हमारे साथ रहे। पीटर ने मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: “फादर, क्या इस में ईश्वर नहीं है?”

“ज़रूर, वह इस में ज़रूर है”, मैं ने कहा।

उसने कहा, “तब ठीक है, यदि ईश्वर इसमें है, तो मैं इसका सामना कर सकता हूँ।” जब येशु मानव बना, उसने मानव के सुख, दुःख और पीडाओं का अनुभव किया। हम जिन मुश्किल भरे रास्तों पर चलते हैं, उन सारी मुश्किलों से येशु भी गुज़रे। हम चाहे जहां भी जाएँ, येशु हमारे आगे आगे चलते रहते हैं। पीटर ने यह समझ लिया। उसे मालूम था, कि येशु उसके साथ हमसफ़र बनकर चल रहे हैं। चाहे उसे जो भी दुःख तकलीफों से होकर जाना पड़े, चाहे वह मौत भी हो, येशु उसके साथ रहेंगे। येशु उसकी दुःख पीडाओं को समझ लेंगे, क्योंकि येशु ने स्वयं गेद्सेमनी बाग में घोर दुःख संकट का सामना किया था।

बड़ा परिवर्त्तन

 पीटर ने मुझे बताया कि वह अपने जीवन के आखिरी महीनों और आखिरी सप्ताहों को येशु के साथ, अपनी पत्नी और अपने बच्चों के साथ बितायेंगे। ऐसा लग रहा था कि जब मौत के साथ उसका सामना हो रहा था, तब वह अपने जीवन की सच्चाई का भी आमना सामना कर रहा था। येशु उसके साथ साथ हैं, इसे अनुभव करते हुए उसने कहा, “मैं इस जीवन को जी सकता हूँ, मैं इस बीमारी को जी सकता हूँ, मैं इसके उपचार को भी जी सकता हूँ, मैं अपने परिवार के साथ भी जी सकता हूँ।”

उस दिन पीटर की पत्नी के साथ मैं ने उसके कमरे में प्रवेश किया, इस चिंता के साथ कि हम उसकी मदद किस तरह कर पाएंगे। लेकिन अन्ततोगत्वा जीवन जीने में, उसे संपोषित करने में, और जहां कहीं येशु हैं वहां जीवन की पूर्णता है, यह जानने के तरीके को दिखाने में पीटर ने हमारी मदद की। हमारे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे येशु स्पर्श नहीं कर सकता है। ऐसी सब जगह, जहां कहीं हम जाते हैं, हमारे प्रलोभन और कमजोरियों में भी, येशु हमारे साथ चलते हैं, क्योंकि येशु इन सब जगहों में स्वयं थे। जब आप चुपचाप बैठकर सोचते हैं, “क्या कोई मेरी चिंता को समझ रहा है? क्या कोई मेरे आंसुओं को देख पा रहा है? क्या कोई वास्तव में मुझे और मेरे जीवन में मैं क्या पाना चाहता हूँ, इसे समझ पा रहा है?” तो यकीन मानिये कि आपको समझने वाला और आपकी परवाह करनेवाला कोई अवश्य है।

आनंदित रहने के लिए हमारी सृष्टि हुई है

 आपके आंसू व्यर्थ नहीं जाते; आपका दुःख भुलाया नहीं जाता। उत्पत्ति ग्रन्थ में एक महान कथन है: आदम की सृष्टि करने के बाद, ईश्वर ने कहा, “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं।” (उत्पत्ति 2:18)। आदम के लिए एक साथी को ढूँढने की ज़रुरत के बारे में ईश्वर बात कर रहा था। लेकिन मुझे लगता है कि ईश्वर कुछ और गहरी और गंभीर बात के विषय में बात कर रहा था। वह हमारे अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति की ज़रूरत पर बात कर रहा था। ईश्वर आपके जीवन में रहना चाहता है, और यह अच्छा नहीं है कि पुरुष या स्त्री या बच्चा अकेला रहे। हम सभी सहभागिता और एकात्मकता के लिए सृष्ट किये गए हैं। हम दोस्ती के लिए सृष्ट किये गए हैं। हम जीवन का आनंद अनुभव करने के लिए सृष्ट किये गए हैं।

आविला की संत तेरेसा ने नरक का एक दर्शन देखा जिसमें कुछ लोग कारागार के अपने निजी तन्हाई के कमरों में अकेले बैठे हैं, उनकी पीठ दरवाजे की ओर है, और उनका सर उनकी हथेलियों में डूबे हुए हैं, जो अपने बारे में बहुत ही दुखी होकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं। ईश्वर ने हमारी सृष्टि तन्हाई के लिए या दुखी होने के लिए नहीं की है। उसने हमारी सृष्टि इसलिए की है कि हम एक दूसरे के साथ और ईश्वर के साथ सहभागिता में रहें। हम पूर्ण रूप से मानव तब बनते हैं जब हम प्रेम का अनुभव करते हैं। पहाड़ की चोटी तक या समुद्र के सबसे निचले तह तक तीर्थयात्रा करने से हम ईश्वर को नहीं पाते हैं। हमें अपनी ही आत्माओं में, अपने ही ह्रदयों में, उसे ढूंढना होगा। और जब हम उसे वहां पायेंगे, तब हम समझ पायेंगे कि वह आनंद, शान्ति के फल देने के लिए आये हैं। येशु हमारे जीवन के ठीक बीच में खड़े होने केलिए आते हैं। वह हमारे टूटन और बिखराव में, हमारी ज़रूरतों में, हमारी गरीबी में आते हैं। हमें बस यह कहना है,

“हे प्रभु, मैं जहां भी हूँ, और मेरी ज़िन्दगी में जो भी हो रहा है, उस स्थिति में मैं चाहता हूँ कि तू मेरे साथ रहे तेरी उपस्थिति और पवित्र आत्मा की शक्ति मुझ में हो इस केलिए मैं निवेदन करता हूँ, ताकि मेरा जीवन फलदायक हो जाये मैं जीवन को पूरा का पूरा जीना चाहता हूँ क्योंकि तू मेरे लिए जीवन की पूर्णता ही चाहता है आमेन” 

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फादर जॉन हैरिस ओ.पी. डोमिनिकन धर्मसमाज के आयरिश प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष हैं। यह लेख उनके द्वारा शालोम वर्ल्ड प्रोग्राम “9 पी.एम्. सीरीज़” में साझा की गयी प्रेरणादायक शिक्षाओं पर आधारित है। इस एपिसोड को देखने केलिए देखें : shalomworld.org/episode/what-makes-us-fully-alive-fr-john-harris-op 

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Father John Harris OP

Father John Harris OP is the Prior Provincial of the Irish Province of the Dominicans.

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