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जिंदगी हर किसी पर जोरदार प्रहार करती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग क्यों कभी हारते नहीं हैं?
सऊदी अरब में काम करने वाले प्रत्येक प्रवासी के लिए वार्षिक छुट्टियां वर्ष का मुख्य आकर्षण होती हैं। मैं भी भारत की ओर अपनी वापसी यात्रा का इंतज़ार कर रहा था। यह वार्षिक अवकाश हमेशा क्रिसमस के आसपास होता था।
यात्रा के लिए बस कुछ ही हफ्ते बचे थे, जब मुझे अपने परिवार से एक ईमेल मिला। हमारी एक घनिष्ठ मित्र नैन्सी ने मेरे परिवार को यह कहने के लिए फोन किया था कि येशु मेरी छुट्टियों के लिए विशेष प्रार्थनाएँ माँग रहे हैं। बेशक, मैंने इसे अपनी दैनिक प्रार्थना सूची में शामिल किया।
मेरे अधिकांश प्रवास के दौरान कोई खास असाधारण घटना नहीं हुई। एक एक सप्ताह ज़्यादतर घर में ही तेजी से बीत गए। क्रिसमस आया और परम्परागत उत्साह के साथ मनाया गया। डेढ़ महीने के मौज-मस्ती भरे दिनों के बाद, मेरी छुट्टियों के दिन लगभग ख़त्म हो चुके थे। कुछ भी असाधारण नहीं हुआ और नैंसी का वह संदेश धीरे-धीरे भुला दिया गया।
अपनी वापसी यात्रा से दो दिन पहले मैंने अपना बैग पैक करने का फैसला किया। सूची में पहला आइटम मेरा पासपोर्ट था, और मैं इसे कहीं भी नहीं ढूंढ पा रहा था! तब एक स्तब्ध कर देने वाला एहसास हुआ: मैं दो दिन बाद की अपनी उड़ान की पुष्टि के लिए उस सुबह इसे ट्रैवल एजेंट के पास ले गया था, और वह पासपोर्ट शायद अभी भी मेरी जींस की जेब में था, जिसे मैं आज सुबह पहना था। हालाँकि, मैंने पहले इस जीन्स को धोने योग्य कपड़ों की टोकरी में फेंक दिया था! और अफ़सोस की बात, मैं ने उस जीन्स को टोकरी में फेंकने के पहले जेब की जांच नहीं की थी।
मैं वॉशिंग मशीन की ओर दौड़ा और ढक्कन खोला। मशीन के अन्दर जींस इधर उधर घूम रही थी। जितनी तेजी से हो सकता था मैंने जींस को बाहर निकाला और अपना हाथ सामने की जेब में डाला; जैसे ही मैंने गीला पासपोर्ट निकाला तो मेरे मन में भय की भावना फैल गई।
अंदर के अधिकांश पन्नों पर लगी सरकारी मुहरें क्षतिग्रस्त हो चुकी थीं। कुछ यात्रा की मुहरें धूमिल हो चुकी थीं और सबसे दु:खद बात यह है कि सऊदी अरब का प्रवेश वीज़ा की स्याही भी धुंधली हो चुकी थी। अब मैं क्या करूं, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। एकमात्र अन्य विकल्प नए पासपोर्ट के लिए आवेदन करना और राजधानी शहर में आगमन पर नया प्रवेश वीजा प्राप्त करने का प्रयास करना था। हालाँकि, मेरे पास इसके लिए पर्याप्त समय नहीं बचा था। मेरी नौकरी संकट में थी।
मैंने पासपोर्ट को अपने बिस्तर पर खुला रख दिया और इसे सूखने की उम्मीद में छत का पंखा चालू कर दिया। मैंने अपने परिवार के बाकी सदस्यों को सब कुछ बता दिया। हमेशा की तरह, हम एक साथ प्रार्थना में शामिल हुए, उस स्थिति को येशु के हाथों में सौंपा और उनसे मार्गदर्शन मांगा। मैंने नैंसी को भी फोन करके हादसे के बारे में बताया। वह हमारे लिए भी प्रार्थना करने लगी; इससे अधिक हम और कुछ नहीं कर सकते थे।
उस रात को, नैन्सी ने मुझे यह कहने के लिए फोन किया कि येशु ने उससे कहा था कि उनका दूत मुझे रियाद तक ले जाएगा! दो दिन बाद, प्रार्थना में शक्ति पाकर, मैंने अपने परिवार को अलविदा कहा, अपना सामान चेक किया और रियाद की ओर अपनी पहली उड़ान में चढ़ गया।
मुंबई हवाई अड्डे पर जहां मैंने उड़ानें बदलीं, मैं अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल पर आव्रजन मंजूरी के लिए लाइन में शामिल हो गया। थोड़ा चिंतित महसूस करते हुए, मैंने अपना पासपोर्ट खोलकर इंतजार किया। शुक्र है, अधिकारी ने बमुश्किल नीचे देखा और फिर बिना सोचे-समझे पन्ने पर मोहर लगाकर मुझे विदा कर दिया!
ईश्वरीय कृपा से भरा हुआ, मैं ने शांति का अनुभव किया। सऊदी अरब में हवाई जहाज के उतरने के बाद, मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और अपना सामान उठाया और आव्रजन जांच चौकी पर लंबी लाइनों में से एक में शामिल हो गया। लाइन धीरे-धीरे आगे बढ़ी क्योंकि अधिकारी प्रवेश वीजा पर मुहर लगाने से पहले प्रत्येक पासपोर्ट की सावधानीपूर्वक जांच कर रहे थे। आख़िरकार, मेरी बारी आ गयी। अपने पासपोर्ट का सही पृष्ठ को खोलकर, मैं उनकी ओर आगे बढ़ा। उसी क्षण, एक अन्य अधिकारी आये और इनसे बातचीत करने लगे। जब वे चर्चा में डूबे हुए थे, आव्रजन अधिकारी ने मेरे पासपोर्ट पर प्रवेश वीजा की मोहर लगा दी, और बमुश्किल पन्नों पर नज़र डाली।
मैं रियाद सकुशल वापस आ गया था, अपने रखवाल स्वर्गदूत को धन्यवाद, जिसने बिल्कुल सही समय पर मुझे “आग की भट्टी में से बाहर निकाला था”।
निस्संदेह, इस यात्रा ने रखवाल दूत के साथ मेरे रिश्ते को समृद्ध और सुदृढ़ बना दिया। हालाँकि, येशु ने मेरे लिए एक और सबक रेखांकित किया: मेरा मार्गदर्शन और नेतृत्व एक जीवित ईश्वर द्वारा किया जा रहा है जो मेरे रास्ते में आने वाले हर संकट का मुझे पूर्वाभास दिलाता है। उसकी अंगुली पकड़कर चलने से, उसके निर्देशों को सुनने से, और उसका पालन करने से, मैं किसी भी बाधा को संभाल सकता हूं। “यदि तुम सन्मार्ग से दायें या बाएं भटक जाओगे, तो तुम पीछे से यह वाणी अपने कानों में सुनोगे – सच्चा मार्ग यही है, इसी पर चलो” (इसायाह 30:21)।
अगर नैन्सी ईश्वर की आवाज़ नहीं सुन रही होती, और अगर हम निर्देशानुसार प्रार्थना नहीं कर रहे होते, तो शायद मेरा जीवन पटरी से उतर जाता। तब से हर क्रिसमस, तथा अपनी मातृभूमि की ओर मेरी हर यात्रा, ईश्वर की अग्रणी व्यवस्था और सुरक्षात्मक आलिंगन की याद दिलाती है।
Zacharias Antony Njavally संचार और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त हैं और उन्होंने भारत और विदेश में पत्रकार, जनसंपर्क अधिकारी और विपणन निदेशक के रूप में काम किया है। वे कई वर्षों से करिश्माई नवीनीकरण में शामिल रहे हैं और भारत के बेंगलुरु शहर में रहते हैं।
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