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अप्रैल 19, 2022 394 0 डीकन जिम मैकफैडेन
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ऊपर की ओर देखें, आगे बढ़ें, उपहार लायें

तीन ज्ञानियों के साथ यात्रा में चलिए और आश्चर्य पूर्ण बातों का आनंद लें ।

 प्रभु प्रकाश का पर्व ज्योति का पर्व है। यशायाह नबी कहते हैं, “उठकर प्रकाशमान हो जा ! क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है, और प्रभु ईश्वर की महिमा तुझ पर उदित हो रही है” (इसायाह 60:1)। संसार की ज्योति और मुक्ति के रूप में प्रकट किये गए प्रभु येशु की ओर यात्रा में हमारे मार्गदर्शन केलिए हमें ज्ञानियों के कार्यों की ओर देखना चाहिए। यदि हमें येशु से मुलाक़ात करनी है, तो ज्ञानियों ने जो किया, उस पर हमें ध्यान देना होगा। उन्होंने क्या किया? उन्होंने तीन कार्य किये: उन्होंने तारे को देखने केलिए ऊपर की ओर सर उठाया; उन्होंने इस तारे के अर्थ को समझते हुए उस प्रकाश तक पहुँचने केलिए अपने घर और कार्य कलापों को छोड़ दिया; और प्रभु की अराधना करने के लिए वे मूल्यवान उपहार लेकर आये।

ऊपर की ओर देखिये  

यात्रा यहीं से शुरू होती है। क्या आप ने कभी सोचा है कि क्यों उन ज्ञानियों ने ही तारे को देखा और उसके अर्थ को समझा? शायद बहुत कम लोग स्वर्ग की ओर देख रहे थे, क्योंकि रोज़मर्रा की बातो पर केन्द्रित होकर उनकी नज़रें ज़मीन पर ही टिकी हुई थी। मेरे मन में सवाल उठता है कि हम में से कितने लोग आकाश की ओर देखते होंगे? हम में से कितने लोग स्तोत्र ग्रन्थ की रचयिता की तरह कह सकते हैं, “भोर की प्रतीक्षा करनेवाले पहरेदारों  से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है ….।” (स्तोत्र 130:6), या हम यह मानते हैं, “अरे, बस यही काफी है कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहे, मेरा बैंक बैलेंस सही रहे, 5-जी नेटवर्क मुझे मिलता रहे, और कुछ मनोरंजन, विशेषकर रविवार के दिन क्रिकेट या फुटबाल का खेल देखने का मौक़ा मुझे मिले!” क्या हमें ईश्वर की प्रतीक्षा करना आता है, जीवन में वह जो ताजगी लाता है, उसकी हम प्रतीक्षा करते हैं, या हम खुद को ज़िन्दगी की तेज रफ़्तार में उडाये या बहाए जाने देते हैं? ज्ञानियों ने समझा कि पूरी तरह जीवित रहने केलिए ऊँचे आदर्शों की ज़रूरत है, और साथ साथ बड़े सपने देखने की ज़रुरत है तथा हमें ऊपर की ओर ताकने की ज़रूरत है।

 आगे बढिए  

ज्ञानियों ने येशु को पाने के लिए जो दूसरा बहुत ही आवश्यक काम किया, वह है उठना और यात्रा को आरम्भ करना। जब हम येशु के सामने खड़े होते हैं, एक विचलित करने वाले विकल्प के सवाल का जवाब हाँ या ना में हमें देना पडेगा । क्या वह बालक  इम्मानुएल यानी ‘ईश्वर हमारे साथ’ है या नहीं? यदि वह इम्मानुएल है, तो अपना सम्पूर्ण बेशर्त समर्पण देने की ज़िम्मेदारी हमारी है, ताकि हमारा जीवन उस पर केन्द्रित हो। उसके तारे की तलाश में निकलना उसी की ओर बढ़ने का निर्णय है और जिस मार्ग को उसने हमारे लिए प्रशस्त किया उसी पर निरंतर आगे बढ़ने की ज़रुरत है। अक्सर हमारा सफ़र दो कदम आगे, एक कदम पीछे है, और इस यात्रा की अहम् बात येशु पर नज़र टिकाकर चलने में है, जब हम नीचे गिर जाते हैं तब उसकी मदद से स्वयं को उठाना और आगे की ओर बढ़ते रहना होगा।

लेकिन, जब तक हम अपने आरामदायक पलंग से बाहर निकलेंगे नहीं, जब तक हम अपने आराम को, अपनी सुविधाओं और सुरक्षाओं को त्यागेंगे नहीं, और सीधे खड़े रहने के बजाय जब तक बाहर यात्रा पर निकलेंगे नहीं, तब तक हम येशु की ओर बढ़ने के कार्य नहीं कर पायेंगे। येशु कुछ मांग रखते हैं: वह कहते हैं कि हम या तो उसके साथ रहें या उसके खिलाफ रहें। आत्मिक मार्ग में सिर्फ दो ही दिशाएँ हैं: या तो हम ईश्वर की ओर बढ़ रहे हैं या ईश्वर से दूर जा रहे हैं। यदि हम येशु की तरफ बढना चाहते हैं, तो हमें जोखिम उठाने के डर पर, अपनी आत्म संतुष्टि पर, और अपने आलस्य पर काबू पाना होगा। सरल भाषा में कह सकते हैं कि यदि हमें बालक येशु को खोज पाना है तो हमें खतरा मोलना होगा, और अपने के महिमान्वित करने की जीवन शैली को त्यागना होगा। लेकिन ये जोखिम, अधिक सार्थक तभी साबित होंगे, जब हम बालक येशु को खोज लेंगे, तब हम उसकी कोमलता, सौम्यता और प्रेम का अनुभव करेंगे और अपनी पहचान को पुन: प्राप्त करेंगे।

उपहारों को ले आइये

अपनी लम्बी यात्रा के अंत में ज्ञानी लोग वही कार्य करते हैं, जो ईश्वर करता है: वे उपहारों की वर्षा करते हैं। ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार स्वर्गीय जीवन है, जिसे उसके साथ अनंतता में जीवन बिताने के लिए वह हमें आमंत्रित करता है। ज्ञानियों ने अपनी समझ के आधार पर सबसे मूल्यवान उपहारों को अर्पित किया: सोना, लोबान और गंधरस। ये उपहार उस बात के प्रतीक हैं जिन्हें संत जॉन पॉल द्वितीय ने उपहार के कानून का दर्जा दिया: अर्थात स्वयं को अर्पित करनेवाले प्रेम के आधार पर ईश्वर जिस तरह कार्य करता है, उसी तरह हम अपना जीवन बिताएं, तो हम ईश्वर के साथ सच्चे रिश्ते में बने रहेंगे। जो सर्वश्रेष्ठ उपहार आप येशु को दे सकते हैं, वह है आपका अपना जीवन। मुफ्त में दे दीजिये, बिना कोई हिचक के, कुछ भी अपने लिए मत रखिये। बदले में कुछ भी पाने की इच्छा रखे बिना दीजिये – स्वर्गरूपी पुरस्कार की इच्छा रखे बिना। यह इसका सच्चा संकेत है कि आपने येशु को ढूंढ लिया है। क्योंकि येशु कहते हैं: “तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो” (मत्ती 10:8): मूल्य की गिनती किये बिना, दूसरों के लिए अच्छा कार्य कीजिये, जब इसकी मांग नहीं की जाती, तब भी, और बदले में कुछ भी न मिले, तब भी। जब यह असुविधाजनक हो, तब भी दूसरों की भलाई कीजिये। ईश्वर आपसे यही कार्य चाहता है, क्योंकि ईश्वर हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार करता है।

ईश्वर अपने आप को हमारे बीच कैसे प्रकट करता है, उसे देखिये, समझिये: वह एक शिशु के रूप में अपने को प्रकट करता है – वह हमारे लिए छोटा बना। हम प्रभु प्रकाश पर्व मनाते समय, अपने हाथों को देखें: वे हाथ आत्म-दान से रिक्त हो गए हैं, या हम बदले में कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा रखे बिना, अपने जीवन के मुफ्त उपहार को समर्पित कर रहे हैं? और हम येशु से मांगे: “प्रभु, अपनी आत्मा को भेज दें, ताकि मेरा नवीकरण हो जाए: ताकि देने के आनंद की मैं पुनर्प्राप्ति कर सकूं।“

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डीकन जिम मैकफैडेन

डीकन जिम मैकफैडेन कैलिफोर्निया के फॉल्सम में संत जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वह ईशशास्त्र के शिक्षक हैं और वयस्क विश्वास निर्माण और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करते हैं।

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