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जून 03, 2023 235 0 Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.
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ईश्वर बुला रहा है

आज यदि आप स्पष्ट रूप से सुनते हैं कि ईश्वर आपसे क्या करवाना चाहता है…तो इसे करने का साहस करें!

“पहले मठवासी बनो।” जब मैं 21 साल का था तब मुझे ईश्वर से यही शब्द मिले थे; जिन सपनों, योजनाओं, आकांक्षाओं और ख्वाहिशों के साथ एक औसतन 21 वर्षीय व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है, ऐसे में 21 साल की उम्र में मुझे यही आदेश प्राप्त हुआ था। एक वर्ष के भीतर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई करने की मेरी योजना थी। हॉलीवुड में स्टंटमैन के रूप में काम करते हुए युवको के बीच धर्मसेवा के कार्य करने का सपना भी था। मैंने कल्पना की कि मैं एक दिन फिलीपींस जाऊंगा, और एक दूरस्थ द्वीप पर जनजातियों के बीच रहते हुए कुछ समय बिताऊँगा। और हां, शादी और बच्चों के प्रति मेरा बहुत मजबूत आकर्षण था। जब परमेश्वर मुझसे उन चार अचूक शब्दों को बोला, तब मेरी ये आकाक्षाएँ आचानक से अवरुद्ध हो गयीं। जब मैं लोगों को बताता हूं कि कैसे ईश्वर ने मेरे जीवन के लिए अपनी इच्छा स्पष्ट की, तब कुछ उत्साही ईसाई ईर्ष्या व्यक्त करते हैं। वे अक्सर कहते हैं, “काश ईश्वर मुझसे इस तरह बात करता।” इसके जवाब में, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ईश्वर के बोलने के तरीके पर कुछ स्पष्टीकरण देना चाहता हूं।

ईश्वर तब तक नहीं बोलता जब तक कि हम, जो वह कहना चाहता है उसे सुनने और ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं होते। उसे क्या कहना है यह इस बात से निर्धारित हो सकता है कि हमें तैयार होने में कितना समय लगता है। जब तक हम परमेश्वर के वचन को सुन और ग्रहण नहीं कर सकते, तब तक वह केवल प्रतीक्षा करेगा; और परमेश्वर बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा कर सकता है, जैसा उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में दिखाया गया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उन्हें पूरे पवित्रग्रन्थ में सम्मानित किया गया है। मुझे मठवासी बनने की अपनी बुलाहट की शुरुआत इस बात के विवरण के साथ करनी चाहिए कि मेरी बुलाहट वास्तव में कैसे शुरू हुई। जब मैंने एक किशोर के रूप में कलीसिया के श्रेष्ठ आचार्यों को पढ़ना शुरू किया, या अधिक सटीक रूप से, जब मैंने प्रतिदिन बाइबल पढ़ना शुरू किया, तब मैंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी। इन विवरणों पर गौर करने से पता चलता है कि सात साल के विवेक के बाद ही मुझे परमेश्वर से सिर्फ चार शब्द मिले।

किताबों में गहन खोज

मुझे बचपन में किताब पढ़ने से नफरत थी। जब अंतहीन रोमांच भरे साहस के कार्य मेरे दरवाजे के ठीक बाहर थे, तब एक उमस भरे कमरे में एक किताब के साथ घंटों तक बैठे रहने का कोई मतलब नहीं था। हालाँकि, प्रतिदिन बाइबल पढ़ने की अनिवार्यता ने एक अनसुलझी दुविधा पैदा कर दी। प्रत्येक सुसमाचार के उद्घोषक जानता है कि कोई भी ईसाई जो बाइबिल पर धूल जमा होने देता है वह ईसाई नहीं है। लेकिन मैं पवित्र शास्त्र का अध्ययन कैसे कर सकता था जब मुझे पढ़ना ही पसंद नहीं था? एक युवा पादरी के प्रभाव और उनके आदर्श से प्रेरित होकर, मैंने अपने आप को समझाया और एक समय में एक किताब पढ़ते हुए अपने आप को ईश्वर के वचन पर मनन करने के कार्य में लगा दिया। जितना अधिक मैंने पढ़ा, उतना ही अधिक मैं प्रश्न पूछने लगा। अधिक प्रश्नों ने मुझे अधिक उत्तरों के लिए और किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

किशोर लोग स्वभाव से तीव्र होते हैं। सूक्षम्ता कुछ ऐसी चीज़ है जो वे जीवन में बाद में सीखते हैं, यही कारण है कि कलीसिया के आचार्यों ने मुझे एक युवा व्यक्ति के रूप में इतना मुग्ध कर दिया। इग्नेसियुस सूक्ष्म नहीं था। ओरिजन परिष्कृत व्यक्ति नहीं था। कलीसिया के आचार्य हर दृष्टि से अतिवादी थे, उन्होंने सांसारिक वस्तुओं को त्याग दिया, रेगिस्तान में रहते थे, और अक्सर प्रभु के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देते थे। एक किशोर के रूप में चरम की ओर झुकाव के साथ, मुझे ऐसा कोई नहीं मिला जो कलीसिया के आचार्यों का मुकाबला कर सके। किसी एम.एम.ए. के लड़ाकू का पेरपेतुआ के साथ तुलना नहीं की जा सकती। हेरमास के चरवाहे से बड़ा कोई सर्फर नहीं था। और फिर भी, इन प्रारंभिक मौलिकवादियों ने जिस चीज की परवाह की, वह बाइबल में बताए गए मसीह के जीवन की नकल करने के अलावा और कुछ नहीं थी। इसके अलावा, वे सभी ब्रह्मचर्य और ध्यान मनन का जीवन जीने पर सहमत थे। यह विरोधाभास मुझपर प्रभाव डालने वाला था। कलीसिया के आचार्यों की तरह अतिवादी होना सतही तौर पर सांसारिक जीवनशैली दिखाई देती थी। विचार करने के लिए और भी प्रश्न थे।

ईश्वर के साथ बातचीत

मेरे स्नातक स्तर की पढ़ाई लगभग पूरी होने के साथ, मैं नौकरी के प्रस्तावों को लेकर परेशान था जो कॉलेज के बाद मेरी आगे की शिक्षा के लिए सामुदायिक संबद्धता के साथ ही संभावित संस्थानों को निर्धारित करेगा। उस समय, मेरे एंग्लिकन पादरी मित्र ने मुझे इस मामले को प्रार्थना में ईश्वर के सामने रखने की सलाह दी। मुझे ईश्वर की सेवा कैसे करनी चाहिए, यह निर्णय अंततः मेरा नहीं बल्कि ईश्वर का निर्णय होना था। और प्रार्थना के द्वारा ईश्वर की इच्छा को जानने के लिए एक मठ से बेहतर जगह कौन हो सकती है? इसलिए मैं सेंट एंड्रयूज मठ में गया। वहां रहते हुए पास्का रविवार को मेरे पास एक महिला आई जिससे मैं पहले कभी नहीं मिला था और वह मुझसे बोली, “मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रही हूं, और मैं तुमसे प्यार करती हूं।” मेरा नाम पूछने के बाद, उसने मुझे संत लूकस के पहले अध्याय को पढ़ने की सलाह दी, और बोली “यह पाठ आपको अपनी बुलाहट निर्धारित करने में मदद करेगा।” मैंने उसे धन्यवाद दिया और जैसा उसने निर्देश दिया था वैसा ही किया। जब मैं प्रार्थनालय के लॉन में बैठकर योहन बप्तिस्ता के जन्म की कहानी के बारे में पढ़ रहा था, मैंने अपने और योहन के जीवन के बीच कई समानताएँ देखीं। मैं यहां पूर्ण विवरण नहीं देना चाहूँगा। मैं बस इतना ही कहूँगा कि यह ईश्वर के वचन के साथ मेरा अब तक का सबसे आंतरिक अनुभव था। ऐसा लगा जैसे वह वाक्य उसी क्षण मेरे लिए लिखा गया हो।

मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और घास के लॉन पर बैठकर ईश्वर के निर्देश की प्रतीक्षा करता रहा। क्या वह मुझे न्यूपोर्ट बीच, या वापस मेरे गृहनगर सैन पेड्रो में कोई नौकरी ढूँढने के लिए निर्देशित करेगा? बड़े सब्र के साथ मैं ईश्वर का दिशानिर्देश का इंतज़ार करता रहा। घंटों बीत गए। अचानक मेरे मन में एक अनपेक्षित आवाज गूंजी; “पहले मठवासी बनो।” यह चौंकाने वाला था, क्योंकि यह वह उत्तर नहीं था जिसकी मुझे तलाश थी। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद मठ में प्रवेश करने का विचार मेरे मन की आखिरी सोच थी। इसके अलावा, मेरे पास आगे के जीने के लिए एक मजेदार और रंगीन जीवन था। मैंने हठपूर्वक ईश्वर की आवाज़ को यह कहते हुए अनसुना कर दिया कि यह मेरे अवचेतन से उठने वाला कोई उटपटाँग विचार होगा। दोबारा प्रार्थना करते हुए, मैंने फिर से ईश्वर को सुनने की कोशिश की ताकि वह अपनी इच्छा मुझ पर प्रकट करे। अगले ही क्षण, एक छवि ने मेरे दिमाग पर कब्जा कर लिया; तीन सूखी नदियों के तट दिखाई दिए। किसी तरह, मुझे पता था कि एक नदी का किनारा मेरे गृहनगर सैन पेड्रो को दर्शाता था, दूसरी नदी का किनारा न्यूपोर्ट को दर्शाता था, लेकिन बीच वाली नदी का किनारा एक मठवासी बनने का संकेत देता था। मेरी इच्छा के विरुद्ध बीच वाली नदी का तट सफेद पानी से लबालब होने लगा। मैंने जो देखा वह पूरी तरह से मेरे नियंत्रण से बाहर था; मैं इसे नहीं देख सका। उस समय मैं डर गया कि या तो मैं पागल हो रहा था, या फिर ईश्वर मुझे कुछ अप्रत्याशित करने के लिए बुला रहा था।

अखंडनीय

जैसे ही मेरे गालों पर आंसू छलक पड़े, घंटी बजी। यह संध्या वंदना का समय था। मैं मठवासियों के साथ प्रार्थनालय में प्रवेश किया। जैसे-जैसे हम भजन गाते गए, मेरा रोना बेकाबू होता गया। अब मैं भजन नहीं गा पा रहा था। मुझे याद है कि मैं जिस तरह से बर्ताव कर रहा था उससे मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। जैसे ही मठ के धर्म बंधू एक-एक करके बाहर आए, मैं प्रार्थनालय में ही रहा।

वेदी के सामने मुँह के बल लेटकर मैं जितना उस दिन रोया था शायद ही अपने पूरे जीवन में उतना कभी रोया हूँगा। मेरे रोने के साथ मेरी भावनाओं का पूर्ण अभाव था, और यह बात मुझे अजीब लगी। न गम था न गुस्सा, बस सिसकियां थीं। मैं अपने फूट-फूट कर रोने की केवल एक ही व्याख्या कर सकता था, वह थी पवित्र आत्मा का स्पर्श। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर मुझे मठवासी जीवन के लिए बुला रहा था। मैं उस रात अपनी सूजी हुई आँखों के साथ सोने गया, लेकिन अपने लिए ईश्वर का मार्ग जानकर मुझे शांति का अनुभव मिला। अगली सुबह, मैंने ईश्वर से वादा किया कि मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए, सबसे पहले मठवासी बनने की कोशिश करूंगा।

मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई?

यद्यपि परमेश्वर कई बार समय का पाबंद होता है, जैसा कि सीनई पर्वत पर मूसा या कार्मेल पर्वत पर एलियाह के साथ हुआ था, लेकिन ज्यादातर परमेश्वर के शब्द असामयिक हैं। हम यह नहीं मान सकते कि हमारे अपने जीवन को दांव पर लगाने से, ईश्वर बोलने के लिए मजबूर हो जायेगा। हम उसके साथ जरा भी हेरा-फेरी नहीं कर सकते। इस प्रकार, हमारे पास अपने नीरस कार्यों को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता जब तक कि हम उसे लगभग भूल न जाएँ — यही वह समय है जब वह प्रकट होता है। युवा समूएल ने ईश्वर की आवाज़ तब सुनी जब वह अपने दैनिक (सांसारिक) कर्तव्यों को पूरा कर रहा था, यानी यह सुनिश्चित कर रहा था कि तम्बू की मोमबत्ती जलती रहे। बुलाहटों के अन्दर भी बुलाहट होती है; बुलाहट में बुलाहट। इस प्रकार, एक छात्रा अपनी बीजगणित के सवालों को हल करते हुए भी ईश्वर की वाणी को अच्छी तरह से सुन सकती है। शहर के व्यस्त ट्रैफिक के बीचोबीच चुपचाप बैठी एक अकेली माँ को ईश्वर की वाणी सुनने को मिल सकती है। आशय यह है कि हमेशा देखते रहें और प्रतीक्षा करें, क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रभु कब प्रकट होंगे। यह एक प्रश्न को जन्म देता है; ईश्वर की एक वाणी को सुनना इतना दुर्लभ और अस्पष्ट क्यों है?

ईश्वर हमें केवल उतनी ही स्पष्टता प्रदान करता है जितनी हमें उसका अनुसरण करने के लिए चाहिए; उससे ज्यादा नहीं। ईश माता ने बिना किसी स्पष्टीकरण के ईश्वर के शब्द को ग्रहण किया। नबी, जो लगातार ईश्वर की वाणी प्राप्त करते रहते थे, अक्सर उलझन में पड़ जाते थे। योहन बपतिस्मा, जो मसीहा को पहचानने वाले पहले व्यक्ति थे, बाद में उन्होंने स्वयं येसु के मसीह होने के बारे में अनुमान लगाया। यहाँ तक कि उनके चेले और रिश्तेदार जो उनके सबके करीबी थे, प्रभु के वचनों को समझने में कठिनाई महसूस करते थे। जो लोग ईश्वर की वाणी को सुनते हैं अक्सर उनके पास प्रश्न अधिक रह जाते हैं, उत्तर नहीं। ईश्वर ने मुझे पुरोहित बनने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि कैसे और कहाँ। अपनी बुलाहट के बारे में और अधिक पता लगाने के लिए उसने मुझ पर छोड़ दिया। मुझे अपनी बुलाहट को पहचानने में चार साल लगे; मुझे सेंट एंड्रयूज में प्रवेश मिलने से पूर्व, चार साल की अवधि में मैंने अठारह अन्य मठों का दौरा किया था। भ्रम, शंका और अनुमान लगाना, ये सभी बुलाहटों को पहचानने की लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, ईश्वर हवा में नहीं बोलता है। उसके शब्द दूसरों के शब्दों से पहले और बाद में हैं। मेरे जीवन में एक युवा पादरी ने, एक एंग्लिकन पादरी ने और सेंट एंड्रयूज मठ के एक साधू ने ईश्वर के जागीरदारों के रूप में काम किया। परमेश्वर के वचन ग्रहण करने से पहले इनके शब्दों को सुनना आवश्यक था।

मेरी बुलाहट अभी अधूरी है। यह अभी भी खोजी जा रही है, अभी भी हर दिन महसूस की जा रही है। मैं अब छह साल से मठवासी हूं। बस इसी साल मैंने अपना व्रतधारण किया है। हो सकता है कोई बोले कि मैंने वह किया है जो परमेश्वर ने मुझे करने के लिए कहा। कुछ भी हो, ईश्वर ने अभी बोलना पूरा नहीं किया है। उसने सृष्टि के पहले दिन के बाद से बोलना बंद नहीं किया है, और वह तब तक नहीं करेगा जब तक उसकी महान रचना पूरी नहीं हो जाती। कौन जानता है कि वह क्या कहेगा या वह अगली बार कब बोलेगा? अजीब बातें बोलने का ईश्वर का इतिहास रहा है। हमारा भाग प्रतीक्षा करना और देखना है; उसके भण्डार में जो कुछ भी है, उसकी प्रतीक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

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Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.

Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B. कैलिफ़ोर्निया के वल्येर्मो में सेंट एंड्रयूज में मठवासी हैं। वर्तमान में वे वाशिंगटन डीसी में डोमिनिकन हाउस ऑफ स्टडीज से ईशशास्त्र में एम.ए. कर रहे हैं। वे मार्शल आर्ट, सर्फिंग और ड्राइंग के शौकीन हैं।

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