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जीवन अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव से भरा हो सकता है, लेकिन यदि आप निम्न प्रकार कार्य करना शुरू करते हैं, तो आप अभी भी सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर सकते हैं, ।
करीब पचपन साल से पहले, हमारे घर के सामने के दरवाज़े पर एक दस्तक सुनाई दी। हम किसी मेहमान की प्रतीक्षा नहीं कर रहे थे। मेरी माँ ने दरवाज़ा खोला और पाया कि कुछ अजनबी लोग अपने सहकर्मियों के साथ क्रिसमस के लिए खाने-पीने के डिब्बों और खिलौनों से लदे हुए झोलों और पेटियों के साथ खड़े थे। वह दौर हमारे परिवार के लिए बड़ी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण दौर था। महीनों पहले वसंत ऋतु में मेरे पिता लकवाग्रस्त हो गए थे, मेरी माँ को परिवार का भरण-पोषण अकेले करना था, और पैसे की बड़ी कमी थी। ये अनजान और अजनबी लोग हमारे क्रिसमस को थोड़ा और खुशनुमा बनाने और मेरे माता-पिता का बोझ हल्का करने की संभावना पर खुशी और प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। यह स्मृति मेरे दिमाग में गहराई से अंकित है। अप्रत्याशित ज़रूरतें, हैरान करने वाला दुख, विनाशकारी नुकसान और चमत्कारी समर्थन के उस अनुभव ने मुझे वह व्यक्ति बनाने में मदद की जो मैं आज बन गयी हूँ।
हमारे जीवन में कुछ बातें क्यों हो रही हैं, इसका उद्देश्य समझना कठिन है। ईसाइयों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे विश्वास करें और स्वीकार करें कि जीवन में सुख और दुख के माध्यम से, परमेश्वर वास्तव में हमसे प्यार करता है और हमारी परवाह करता है। पुरानी कहावत, ‘इसे प्रभु को अर्पित करें’, आजकल शायद ही कभी बोली जाती है, लेकिन मेरे बचपन में यह जोर से और स्पष्ट रूप से बोली जाती थी। मेरा परिवार हर दिन इस वास्तविकता को जीता था।
“तो भी प्रभु, तू हमारा पिता है; हम मिट्टी हैं, और तू कुम्हार है: तू ने हम सबों को बनाया है।” (यशायाह 64:७)
एक पल के लिए मिट्टी के उस ढेर की कल्पना करें जो मैं हूँ। उस्ताद कुम्हार मिट्टी के इस ढेर में अपार क्षमता देख पाता है। वह अपने अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस मिटटी के ढेर में एक पुत्री को देख पाता है, एक साधन को देख पाता है। अप्रशिक्षित आँखें, उस मिट्टी के ढेर में शायद कोई केवल एक कॉफी पीने या टूथब्रश रखने के कप की कल्पना कर सकती हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान के लिए, इस मिट्टी के ढेर में इतिहास और अनंत काल दोनों केलिए, उसकी योजना में एक अवर्णनीय लक्ष्य है। दुविधा यह है कि, यह मिट्टी का ढेर कुछ खास नहीं है, इसे उस काम के लिए विशिष्ट रूप से तैयार करने की आवश्यकता है जिस के लिए उसे बुलाया जाएगा।
कुम्हार किसी बोझ से दबा नहीं है बल्कि उसका इरादा उसके लिए स्पष्ट है। वह स्पष्ट लक्ष्य देखता है, बारीकी से सोचता है और वह चतुर है। वह कथानक को, उस कथानक के पात्रों को और उन स्थितियों को जानता है जिसमें वह अपनी इच्छा को पूरा करने केलिए उत्कृष्ट कृति की रचना करेगा। वह उन परिस्थितियों को जानता है जो इस कार्य के लिए एक नारी को उचित रूप से तैयार करेगा। उस नारी के निर्माण में कुछ भी छोटा या महत्वहीन नहीं है।
वह नारी सोच सकती है कि उसके पिता को इतना कष्ट क्यों सहना पड़ा, उसे जल्दी से बड़ी क्यों होनी पडी, और उसका भविष्य उसे उत्कृष्ट और कष्टदायक दोनों तरह की चुनौतियाँ क्यों देगा। वह उन बच्चों की प्रतीक्षा करते हुए आँसू बहाती है जो आने में देरी कर रहे थे, इस प्रकार उसने परमेश्वर पर अधिक भरोसा करना सीखा और अपनी अपेक्षाओं को उसके सर्वशक्ति संपन्न लालन पोषण में उस के हवाले कर दिया।
जीवन की कठिनाइयों और परीक्षणों ने उसके खुरदुरे हिस्सों को चमकाने में मदद की और उसे उस उस्ताद कलाकार के स्पर्श के आगे झुकना सिखाया। हर बारीकी ज़रूरी है, हर भेंट या मुलाक़ात कला के उस उस्ताद के उद्देश्यों और इच्छा की पूर्ती के लिए ज़रूरी है। कुम्हार के चाक का हर चक्कर और उस्ताद के हाथों का कोमल मार्गदर्शन उस नारी के अंगों को परिपूर्ण करने के लिए ज़रूरी था। उन अंगों को विकसित होने के अवसर तैयार किए गए, साथ ही साथ उस नारी के विकास के रास्ते में सहायता करने वाले लोग भी। जब कला के उस उस्ताद ने सब कुछ गति में ला दिया तो कृपा बह रही थी।
मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ और अपने जीवन में इस सत्य की वास्तविकता को देखती हूँ। ईश्वर ने हर परिस्थिति और हालात में मुझे विकसित किया, सुसज्जित किया और मेरा साथ दिया। यह महसूस करना आश्चर्यजनक है कि वह हर समय मेरे प्रति कितना चौकस रहा है। मेरे जीवन के कुछ सबसे दर्दनाक अनुभव सबसे अधिक लाभकारी साबित हुए। भट्टी की आग धातु को कठोर बनाती है और परिष्कृत भी करती है, जिससे उस धातु को अपने उद्देश्य के पूर्ती के लिए मजबूत बनने में मदद मिलती है।
मिट्टी का बर्तन नीचे गिरने पर आसानी से टूट भी सकता है। यह अंत नहीं है, बल्कि ईश्वर की योजनापूर्ण व्यवस्था में एक नई शुरुआत और उद्देश्य है। जापानी कला ‘किंत्सुगी’ की तरह, लाख में मिश्रित बढ़िया धातुओं का उपयोग करके टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों की मरम्मत करने की उस अद्भुत कला की तरह, ईश्वर हमें जीवन की टूटन के माध्यम से फिर से बना सकता है। मैं लगातार बढ़ रही हूँ और बार-बार बनायी गयी हूँ। कोई भी कठिन सबक महत्वहीन या दुर्भाग्यपूर्ण नहीं था। बल्कि, उन सीखों से मैंने एक ऐसी बेटी के रूप में विकसित होने में मदद प्राप्त की जो ईश्वर पर भरोसा करती है – बिना किसी संकोच के भरोसा करती है और समर्पण करती है। हाँ प्रभु, तू मुझे आकार देना और बनाना जारी रखता है, मेरे दिल को परिष्कृत करता है और मेरी आत्मा को तरोताजा करता है।
हे पिता, जब जब मैं चिल्लाती थी: “रुको, मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकती” तब भी इस मिट्टी के ढेले को नहीं त्यागने, हर बार हार न मानने के लिए, तुझे धन्यवाद। मैं धन्यवाद देती हूँ कि तूने मुझे बनाया और जाना, मुझे परखा, मुझे आजमाया, और मुझे योग्य पाया,।
आज समय निकालकर इस बात पर विचार करें कि उस कुम्हार ने आपको कैसे बनाया है, आपके माध्यम से, उसकी महिमा के लिए, उसका भला काम करने के लिए कैसे आपको तैयार और सुसज्जित किया है। इस अति सुन्दर सृष्टि को निहारना वाकई एक अद्भुत अनुभूति है।
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बारबरा लिश्को ने बीस से अधिक वर्षों तक कैथलिक कलीसिया की सेवा की है। बयालीस वर्षों से वे उपयाजक मार्क से विवाहित हैं और वे पाँच संतानों की माँ और नौ बच्चों की दादी हैं। वे उत्तरी अमेरिका के एरिज़ोना में रहती हैं, और वह अक्सर pourmyselfoutingift.com पर ब्लॉग लिखती हैं|
बारबरा लिश्को has served the Catholic Church for over twenty years. Married to Deacon Mark for over forty-two years, she is a mother of five, a grandmother of nine, and counting. They live in Arizona, USA, and she frequently blogs at pouredmyselfoutingift.com
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