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मार्च 09, 2023 308 0 Father Sean Davidson
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आखिरकार आज़ादी मिल गई

सत्य को खोजने की कोशिश करते समय यह एक अनवरत गाथा है, लेकिन एक त्वरित नवीनीकरण भी है जब सत्य स्वयं आपको खोज लेता है

संत पिता बेनेदिक्त सोलहवें से एक बार पूछा गया कि अगर वे कभी खुद को एकांत टापू पर फंसा हुआ पाते हैं तो वे अपने साथ कौन सी किताब रखना चाहेंगे। उन्होंने बाइबिल के साथ-साथ संत अगस्टीन की किताब ‘कन्फेशंस’ को चुना। कुछ लोगों को यह विकल्प आश्चर्यजनक लगा होगा, लेकिन मैं इससे सहमत हूँ। चौथी या पाँचवीं बार यह पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं स्वयं को उस किताब में मग्न होते हुए पाया। पुस्तक का पहला भाग विशेष रूप से आकर्षक है, जहां उनके परिवर्तन की कहानी लिखी गयी है।

संत तेरेसा द्वारा लिखित ‘द स्टोरी ऑफ़ ए सोल’ की तरह यह पुस्तक कई बार पढ़ने के बाद एक बार फिर अत्यंत परिचित लगती है, फिर भी यह किताब हर बार किसी तरह नई रोशनी से भरी हुई लगती है। संत अगस्टीन हमें यह सिखाता है कि हम ऐसे किस चीज़ की खोज में जाएँ जो आध्यात्मिक विकास के लिए आधार बनाती है, अर्थात हम ‘आत्म-ज्ञान की प्राप्ति’ की खोज करें। अगस्टीन ईश्वर के अनुग्रह के कार्य के सूत्र का पता लगाता है, साथ ही साथ अपने स्वयं के पापीपन को, अपनी शुरुआती यादों से लेकर अपने परिवर्तन के समय तक की तथा उसके आगे तक की सच्चाई का पता लगाता है। यहाँ तक कि वह अपनी यादों से भी पीछे चला जाता है और लिखता है कि दूसरों ने उसे अपने बचपन के बारे में क्या बताया था। बचपन में सोते समय हंसने की आदत के बारे में उसका यह विवरण विशेष रूप से मजेदार और प्यारा लगता है।

इसे चौथी या पांचवी बार पढ़ने के बाद, मैं कुछ चिंतन कर रहा हूँ जिसे इस छोटे से लेख में आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। इसका संबंध उस पर अपनी युवावस्था के मित्रों के प्रभाव के बारे में है। अपने बच्चों के मित्रों के विषय में माता-पिता काफ़ी सतर्क नहीं हो पाते। हममें से बहुत से लोग, अपने पथभ्रष्ट साथियों के कारण और उनके द्वारा दिए गए प्रलोभन के कारण, अपनी युवावस्था में जो कुछ थोड़ा सा सद्गुण था, उससे दूर हो गए हैं। अगस्टीन भी इससे भिन्न नहीं था। चौथी शताब्दी की जीवन शैली आश्चर्यजनक रूप से हमारे समय की जीवन शैली के समान प्रतीत होती है।

नाशपाती और दोस्त

नाशपाती की चोरी वाली अगस्टीन का प्रसिद्ध वाकया इस बात को अच्छी तरह दर्शाता है। भले ही उसके घर पर बेहतर नाशपाती थी और वह भूखा नहीं था, वह किसी और के बाग से चोरी करने के फैसले के पीछे के तथ्य का पता करने के लिए अपनी स्मृति की जांच करता है। अधिकांश नाशपाती तो फेंककर सूअरों को दी गईं। वह उस समय पूरी तरह से जानता था कि वह जो कर रहां है वह अनुचित और अन्याय पूर्ण है। क्या उसने बुराई करने के लिए यूँ ही बुराई की? फिर भी, हमारा हृदय आमतौर पर इस तरह से प्रवृत्त नहीं होता है। हमारे अन्दर आमतौर पर पाप कुछ अच्छाई की विकृति है। इस मामले में, यह पाप बाग के मालिकों के आक्रोश पर विचार करते हुए एक प्रकार का उग्र सौहार्द और दोस्तों के समूह की उपहासपूर्ण खुशी के कारण किया गया था।

यह सब विकृत दोस्ती की वजह से थी। अगस्टीन ने ऐसा कभी अकेले नहीं किया होता, बल्कि केवल इसलिए क्योंकि उसके साथियों ने उसे प्रेरित किया था। वह अपने दोस्तों को प्रभावित करके उन्हें खुश करने और उनकी नासमझ शरारतों में हिस्सा लेने के लिए बेताब था। मित्रता ईश्वर के महान उपहारों में से एक है, परन्तु पाप से विकृत हुई मित्रता के विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं। संत का वाक् पटु विलाप इसके खतरे को बेपर्दा करता है, “हे मित्रता, सब अमित्र! तू आत्मा का अनोखा मोहक और प्रलोभक है, जो आनंद और प्रचंडता के आवेगों से शरारत के लिए भूखा है, जो अपने स्वयं के लाभ या बदले की इच्छा के बिना दूसरे के नुकसान की लालसा रखता है – ताकि जब वे कहें, “चलो चलें, चलो कुछ करते हैं,” हमें बेशर्म न होने पर शर्म आती है। (कन्फेशंस, पुस्तक II, 9)।

कैद

पाप से संबंधित एक समान प्रतिमान है जो अगस्टीन की आत्मा के लिए घातक जहर बन जाएगा और जो उसके अनन्त विनाश का कारण बन सकता था। उस मित्रता के कारण वासना के पाप ने भी उसके दिल को जकड़ लिया जिसे वह मानव जीवन की “तूफानी संगति” कहता है। अपनी किशोरावस्था के दौरान उसके मित्रों में कामुकता को लेकर एक दुसरे से आगे निकलना मानो रिवाज बन गया था। वे अपने कारनामों की शेखी करते और एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अपनी अनैतिकता के वास्तविक पैमाने को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते थे। अब उन्हें केवल एक ही चीज़ पर शर्म आती थी, वह थी मासूमियत और ब्रह्मचर्य। जब अगस्टीन सोलह साल का था, तब उसकी धार्मिक माँ ने उसे व्यभिचार से बचने और अन्य पुरुषों की पत्नियों से दूर रहने की सख्त चेतावनी दी थी। वह बाद में अपनी माँ की नसीहतों को अहंकारी तरीके से खारिज करने के बारे में लिखेगा, “ये मुझे स्त्रियों की युक्‍तियाँ जेसी दिखाई देती थीं, जिनका पालन करने में मैं लज्जित होता। प्रभु, ये युक्तियाँ तेरी ओर से थीं, मैं यह नहीं जान पा रहा था” (कन्फेशंस पुस्तक II, 3)। शारीरिक सुख की वासना के एक या दो पापों से जो शुरू हुआ, वह जल्द ही एक आदत बन गयी, और दुख की बात है कि अगस्टीन के लिए, यह बुरी आदत बाद में एक आवश्यकता की तरह लगने लगी। अपने दोस्तों के सामने शेखी बघारने और उनकी स्वीकृति पाने के लिए शुरू की गयी बुरी आदतों ने आखिरकार उसकी इच्छा को जकड़ लिया और उसके जीवन पर कब्ज़ा कर दिया। दूसरों को प्रभावित करने की व्यर्थ लालसा के द्वारा, वासना के दानव ने उसकी आत्मा के सिंहासन कक्ष में प्रवेश कर लिया था।

सत्य की चाह

उन्नीस साल की उम्र में “सिसरो” को पढ़ने के बाद, बौद्धिक खोज की कृपा प्राप्त अगस्टीन के दिल में ज्ञान की खोज करने की इच्छा जागृत हुई। इस आवेशपूर्ण खोज उसे बुराई की समस्या पर लंबे समय तक विचार करने के लिए दर्शनशास्त्र और ज्ञानवाद की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन की ओर ले गयी। इस दौरान, यह यात्रा उस यौन अनैतिकता के समानांतर चलती रही जिसने उसके जीवन को अपनी चपेट में ले लिया था। ऊपर की ओर निहारकर उसका मन प्रकाश पाने के लिए टटोल रहा था, लेकिन उसकी इच्छा अभी भी पाप की कीचड़ में धँसी हुई थी। इस यात्रा का अंत लगभग बत्तीस वर्ष की आयु में हुआ, जब उसके भीतर दोनों प्रवृत्तियाँ हिंसक रूप से आपस में टकराईं। यह संघर्ष अब उसके अनन्त भाग्य का निर्धारण करेगा – और क्या वह मसीहियों की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रकाश बन जाएगा या बस उग्र आंतरिक नरक में समाप्त होनेवाले अंधेरे में गायब हो जाएगा?

महान संत अम्ब्रोस के उपदेशों को सुनकर और संत पौलुस के पत्रों को पढ़ने के बाद, उसके मन में कोई और संदेह नहीं हो सकता था कि केवल कैथलिक चर्च में ही उसे वह सत्य मिलेगा जिसकी उसने हमेशा तलाश की थी। अब उसे यह स्पष्ट हो गया था कि येशु मसीह उसके दिल की सच्ची अभिलाषा थी, फिर भी जिस वासना ने उसके दिल को पाप की कैद में बंद कर दिया था, वह उस वासना की जंजीरों को तोड़ने के लिए शक्तिहीन था। वह सत्य के सामने इतना ईमानदार था कि वह यह सोच भी नहीं सकता था कि गंभीर पाप के बदले में मरने की इच्छा किये बिना वह कभी भी मसीही जीवन में आ सकता है।

युद्ध और मुक्ति

उसकी आत्मा के लिए युद्ध का फैसला करने वाली वह अंतिम लड़ाई तब हुई जब उसने अपने दोस्तों के साथ कुछ उत्साही रोमियों के बारे में चर्चा की। उन रोमियों ने मसीह का अनुसरण करने के लिए सब कुछ पीछे छोड़ दिया था। (अब अच्छे मित्रों की उपस्थिति जवानी की गलतियों को सही करने लगी थी।) संतों के उदाहरण का पालन करने की पवित्र इच्छा ने अगस्टीन को जकड़ लिया, फिर भी वासना के प्रति लगाव के कारण पवित्रता में आने में असमर्थ होने से, भावुक होकर, वह घर से भागकर बाहर बगीचे में आया। एकांत की जगह की तलाश में, उसने पश्चाताप और आंतरिक निराशा के आँसुओं को अंततः स्वतंत्र रूप से बहने दिया। वे शुद्धीकरण के आंसू साबित होने वाले थे।

आखिर वह क्षण आ ही गया जब वह सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हो गया। उसने पाप पर से अपनी पकड़ को हमेशा के लिए छुड़ाने का निर्णय लिया। जैसे ही इस पवित्र आध्यात्मिक अभिलाषा ने शारीरिक सुख के लिए उसकी अत्यधिक इच्छा पर काबू पाया, उसने एक बच्चे की आवाज को बार-बार गाते हुए सुना, “लो और पढ़ो।” उसने शिशुओं के होठों पर रखी गयी सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञा के रूप में इसकी व्याख्या की। संत पौलुस के पत्रों की पुस्तक जिसे उसने घर के अन्दर मेज पर छोड़ दिया था, उसे लेने के लिए, वापस घर के अन्दर की ओर भागते हुए उसने खुद से कहा कि वह अपने जीवन के लिए ईश्वर की इच्छा की अभिव्यक्ति के रूप में जो भी शब्द पहले देखेगा, उसे स्वीकार करेगा। उसने पत्र की पुस्तक को खोला तो यह पढ़ा, “हम दिन के योग्य सदाचरण करें। हम रंगरलियों और नशेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहें। आप लोग प्रभु येशु मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएं तृप्त करने का विचार छोड़ दें।” (रोमियों 13:13-14)

विजय

बाइबिल के इन शब्दों के साथ उनकी आत्मा में अलौकिक प्रकाश का संचार हुआ। वास्तव में पहली बार, उद्धार पाने की अभिलाषा के कुछ ही क्षणों के बाद, उसका उद्धार आ चुका था। जिन जंजीरों ने उसकी इच्छा को इतने लंबे समय तक जकड़ रखा था, उसे उस जुनून भरी वासना के प्रचंड आधिपत्य के अधीन कर लिया था, वह  मुक्तिदाता येशु मसीह की कृपा से टुकड़े-टुकड़े हो गई थी। उसकी तड़पती हुई आत्मा को तुरंत आनंद, शांति और ईश्वर की संतानों की स्वतंत्रता में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई। पूरी कलीसिया के लिए वह महत्वपूर्ण घड़ी थी क्योंकि जो व्यक्ति किसी समय युवावस्था में दुर्भाग्यपूर्ण संगत के चलते वासना का गुलाम था, उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी, और अब तक के सबसे प्रभावशाली संतों में से एक को अचानक जीवन प्राप्त हो रहा था।

वर्षों बाद पीछे देखते हुए, संत अगस्टीन को यह विश्वास करना कठिन लग रहा था कि वह कभी ऐसी तुच्छ बातों केलिए प्रभु से और मसीह में दी जाने वाली परमानंद की खुशी से स्वयं को दूर रखने की अनुमति कैसे दे सकता था। पहले वह एक ऐसे व्यक्ति की तरह था जो बेकार के गहनों से बुरी तरह चिपका हुआ था, जबकि उसके सामने बेशकीमती खजाना रखा हुआ था। उस दिन जो हुआ उसके स्मरणीय महत्व के बारे में बताते हुए प्रोटेस्टेंट विद्वान आर.सी. स्प्राउल ने सभी ईसाइयों की आम सहमति को सारांशित किया, “यदि कोई महान है जो कलीसिया के इतिहास में उस व्यक्ति के रूप में खड़ा है, जिसके कंधों पर धर्मशास्त्र का पूरा इतिहास खड़ा है, तो वह एक ही आदमी है जिसका नाम औरेलियस अगस्टीन, यानि संत अगस्टीन है।

 

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Father Sean Davidson

Father Sean Davidson is parish priest of St Joseph’s Parish and Eucharistic Shrine in Stockport, Greater Manchester, UK.

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