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जनवरी 20, 2022 462 0 Late Father John Hilton Rate
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अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन जिएं

उनके पास ज्यादा समय नहीं बचा था, लेकिन फादर जॉन हिल्टन ने प्रभि की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करते हुए जीवन जिया, और इस तरह लाखों लोगों को प्रेरित करने और जीवन बदलने में कामयाब हुए।

मेरी जीवन यात्रा बहुत आसान नहीं रही है, लेकिन जिस क्षण से मैंने येशु का अनुगमन करने का फैसला किया, उसके बाद मेरा जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहा है। मैं अपने सामने प्रभु ख्रीस्त का क्रूस है और मेरे पीछे वह दुनिया है जिसे मैं ने त्याग दिया है, इसलिए मैं दृढ़ता से कह सकता हूं, “पीछे हटने का नाम नहीं लूंगा …”

मेंटोन के बीड्स कॉलेज में अपने स्कूली दिनों के दौरान, मुझे अन्दर से एक मजबूत बुलाहट महसूस हुई। ब्रदर ओवेन जैसे महान गुरुओं ने येशु के प्रति मेरे ह्रदय में प्यार के बीज को अंकुरित और पल्लवित किया। 17 साल की छोटी सी उम्र में, मैं सेक्रेड हार्ट मिशनरीज धर्मं समाज में शामिल हो गया। कैनबरा विश्वविद्यालय में अध्ययन और मेलबर्न में ईशशास्त्र की डिग्री सहित 10 वर्षों के अध्ययन के बाद, मैं अंततः पुरोहित के रूप में अभिषिक्त हुआ।

भाग्य के साथ एक मुलाक़ात

मेरी पहली नियुक्ति पापुआ न्यू गिनी में हुई थी, जहां मुझे साधारण लोगों के बीच रहने का एक व्यावहारिक आधार मिला जिसकी वजह से वर्तमान क्षण में जीने की एक महान भावना का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। बाद में, मुझे धार्मिक विधि का अध्ययन करने के लिए पेरिस भेजा गया। तनाव और सिरदर्द के कारण रोम में डॉक्टरेट की पढ़ाई बाधित हुई और मैं इसे पूरा नहीं कर पाया। और जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि मेरी बुलाहट सेमनरी में पढ़ाने की नहीं है। ऑस्ट्रेलिया वापस आने पर, मैं पल्ली सेवकाई करने लगा और देश भर के कई अलग-अलग राज्यों में 16 पल्लियों का अनुभव मीठा अनुभव पाया। विवाह और पारिवारिक जीवन को पोषित और पुनर्जीवित करनेवाले दो शानदार अभियानों के साथ भागीदारी करने से मेरे अन्दर बड़ी ऊर्जा और स्फूर्ति आई: वे हैं- टीम्स ऑफ अवर लेडी और मैरिज एनकाउंटर।

अपने सेवा कार्य में मैं ने आत्म संतुष्टि का अनुभव किया। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। लेकिन 22 जुलाई 2015 को अचानक सब कुछ बदल गया। यह पूरी तरह से अचानक नहीं था। पिछले छह महीनों से, मैंने कई मौकों पर अपने पेशाब में खून पाया था। लेकिन अब मैं मूत्र विसर्जन कर भी नहीं पा रहा था। आधी रात में, मैं खुद अस्पताल चला गया। कई परीक्षणों के बाद, मुझे एक चौंकाने वाली खबर मिली। मुझे किडनी का कैंसर हो गया है जो अब तक चौथे चरण में पहुंच चुका था। मैं सदमे की स्थिति में था। मैं सामान्य लोगों से कटा हुआ महसूस कर रहा था। डॉक्टर ने मुझे सूचित किया था कि दवा के सेवन करने पर भी, मेरे जीने की उम्मीद केवल साढ़े तीन साल तक थी। मैं अपनी बहन के छोटे-छोटे बच्चों के बारे में सोचता रहा कि मैं इन आकर्षक बच्चों को बढ़ते हुए भविष्य में नहीं देख पाऊँगा।

मुझे प्रातःकाल में ध्यान-मनन करना अच्छा लगता था, लेकिन जब से यह संकट आया, तब से मुझे ध्यान और मनन चिंतन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। कुछ दिन बाद, मुझे ध्यान करने का एक आसान तरीका मिल गया। ईश्वर की उपस्थिति के सामने आराम करते हुए, विख्यात कवि डांते से प्रेरणा लेकर मैं ने एक मंत्र दोहराया, “तेरी इच्छा ही मेरी शांति है।” ध्यान-मनन के इस सरल रूप ने मुझे ईश्वर में अपनी शांति और विश्वास बहाल करने में सक्षम बनाया। लेकिन जैसा कि मैं अपने सामान्य दिनचर्या को करने लगा, मुझे यह और अधिक कठिन लगा। ‘मैं ज्यादा दिन तक नहीं रहूंगा …’, इस तरह के विचारों से मैं अक्सर विचलित हो जाता था।

सबसे अच्छी सलाह

तीन महीने के उपचार के बाद, दवा ठीक से काम कर रही है या नहीं, यह देखने के लिए जांच की गयी। परिणाम सकारात्मक थे। अधिकांश हिस्सों में कैंसर की उल्लेखनीय कमी आई थी, और मुझे सलाह दी गई थी कि क्षतिग्रस्त गुर्दे को निकालने के लिए एक सर्जन से परामर्श कर लूं। मुझे एक राहत की अनुभूति हुई, क्योंकि मेरे दिमाग में बराबर यह सवाल उठता था कि क्या दवा वास्तव में काम कर रही है या नहीं। तो यह वाकई बहुत अच्छी खबर थी। ऑपरेशन के बाद, मैं स्वस्थ हो गया और एक पल्ली पुरोहित के रूप में लौट आया।

इस बार, मैं सुसमाचार प्रचार के प्रति अधिक ऊर्जावान महसूस कर रहा था। न जाने कब तक मैं इस काम को कर पाऊंगा, ऐसा सोचकर मैंने अपना सम्पूर्ण ह्रदय उन सारी बातों में लगा दिया जिन्हें मैं ने शुरू किया था। हर छह महीने में, मेरा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता था। शुरुआत में परिणाम अच्छे रहे, लेकिन कुछ समय बाद, मैं जो दवा ले रहा था वह कम असर करने लगी। मेरे फेफड़ों में और मेरी पीठ में कैंसर बढ़ने लगा, जिससे मुझे सियाटिका हो गई और मुझे चक्कर आने लगे। कीमोथेरेपी से मुझे गुजरना पड़ा और एक नया इम्यूनोथेरेपी उपचार शुरू करना पड़ा। यह निराशाजनक था, लेकिन आश्चर्य की बात नहीं थी। कैंसर से पीड़ित कोई भी व्यक्ति जानता है कि हालात बदल जाती हैं। आप एक पल ठीक हैं तो अगले ही पल आपदा आपको जकड ले सकती है।

मेरी एक खूबसूरत मित्र कई सालों से ऑन्कोलॉजी विभाग में नर्स रही है। उसी ने मुझे सबसे अच्छी सलाह दी: जितना हो सके अपने जीवन को सामान्य रूप से जीते रहें। यदि आप कॉफी का आनंद लेते हैं, तो कॉफी लें, या दोस्तों के साथ भोजन कर लें। सामान्य चीजें करते रहें।

मुझे पुरोहित का कार्य करना पसंद था और हमारी पल्ली में हो रही अद्भुत बातें मुझे उत्साहित करती थीं। हालांकि पहले की तुलना में अब जीवन यात्रा आसान नहीं थी, फिर भी मैंने जो भी किया मैं उसे पसंद करता था। मैं हमेशा मिस्सा बलिदान को अर्पित करना और संस्कारों का अनुष्ठान करना पसंद करता था। इन बातों को मैंने अपने जीवन में बहुत मूल्य दे रखा है और मैं इस महान कृपा के लिए ईश्वर का हमेशा आभारी हूं।

क्षितिज से परे

 मेरा दृढ़ विश्वास था कि गिरजाघर में आने वाले लोगों की घटती संख्या की समस्या को दूर करने के लिए हमें सक्रिय होकर अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। अपनी पल्ली में हमने रविवार की आराधना में और अधिक लोगों की भागीदारी हो इसके लिए प्रयास किया। चूँकि मैं कलीसिया की मननशील पक्ष से हमेशा प्यार करता आया था, इसलिए मैं अपनी पल्ली में थोड़ा सा मठवासी भावना लाकर उसे प्रार्थना और शांति से भरपूर मरुस्थल का उद्यान बनाना चाहता था। इसलिए प्रत्येक सोमवार की रात, हमने आनंददायक मननशील संगीत के साथ, मोमबत्ती की रोशनी में मिस्सा बलिदान का आयोजन किया। प्रवचन देने के बजाय, मैंने मनन चिंतन का एक पाठ पढ़ा।

मैट रेडमैन द्वारा गाया गया ग्रैमी विजेता एकल गीत “10,000 कारण” (ब्लेस दि लार्ड) ने मुझे गहराई से स्पर्श किया है। जब भी मैं गीत का तीसरा छंद गाता, भावुक होकर मेरा दम घुट जाता था।

और उस दिन

जब मेरी ताकत विफल हो रही है

अंत निकट आता है

और मेरा समय आ गया है

फिर भी मेरी आत्मा

तेरी स्तुति गाएगी

अंतहीन दस हजार साल

और फिर

सदा सर्वदा के लिए

मुझे यह गीत बहुत ही हृदयस्पर्शी लगा, क्योंकि हम अंततः जो करने की कोशिश कर रहे हैं वह परमेश्वर की स्तुति और येशु के साथ हमारे संबंध को मज़बूत करना है। बीमारी के बावजूद, एक पुरोहित के रूप में यह मेरे जीवन का सबसे रोमांचक समय था। इस स्थिति ने मुझे येशु द्वारा कहे गए शब्दों की याद दिला दी, “मैं इसलिए आया हूं कि वे जीवन प्राप्त करें, और परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।” योहन 10:10

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मेरे पति कैथलिक नहीं हैं और कैथलिक विश्वास के बारे में अभी अभी सीखना शुरू किया है; संयोग से उनकी मुलाक़ात फादर जॉन से हुई। बाद में उन्होंने कहा “मैं येशु नामक व्यक्ति के बारे में जो जानता हूं,… फादर जॉन उसके जैसे ही लगते हैं। यह जानना कि आप मरने वाले हैं और इसके बावजूद आप अपने आप को अधिक से अधिक दूसरों को देना जारी रखते हैं, भले ही आपके आस-पास के लोगों को यह एहसास न हो कि ये आपके अंतिम दिन हैं यह वाकई अद्भुत है

  • कैटिलिन मैकडॉनेल

 फादर जॉन जीवन में अपने लक्ष्य को लेकर बिलकुल स्पष्ट थे। वह एक सर्वगुण संपन्न अगुवा थे और उन्होंने येशु को इस दुनिया में वास्तविक बनाया। मैं अक्सर सोचता था कि अगर वे अपने विश्वास और मूल्यों के मामले में मजबूत नहीं होते तो क्या होता। यह उनके लिए भले ही काफी चुनौतीपूर्ण रहा हो लेकिन हर रविवार जब हम उनसे मिले तो उनमें वही ऊर्जा थी। उनके आस-पास या उनके साथ, या उन पर जो कुछ भी हुआ, लेकिन उनके अन्दर और उनकी चारों तरफ शांति ही विराजती थी। यह हम सब के लिए एक अविश्वसनीय उपहार था।

  • डेनिस होइबर्ग

 हमें बार बार उन्हें याद दिलाना पड़ता था कि उनकी सीमाएँ थीं, लेकिन इस के बावजूद उनका रफ्तार कभी कम नहीं हुआ। वे एक प्रेरणा थे, क्योंकि यहां एक व्यक्ति है जिसे बताया गया है कि आपके पास सीमित समय है। फिर भी वे अपनी बीमारी से उबरने और उसके बारे में सोचने के बजाय अपने आप को दूसरों को देते रहे।

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Late Father John Hilton Rate

Late Father John Hilton Rate passed away on 22nd of September 2019 after a long and protracted fight with cancer. At the time of his death, Father Rate was the Parish priest at Henley Beach, Australia. The article is based on an inspiring talk shared by Father John Hilton Rate in the Shalom World program “TRIUMPH”. To watch the episode visit: shalomworld.org/ show/triumph

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