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नवम्बर 24, 2022 291 0 Graziano Marcheschi, USA
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चमत्कार की तलाश में

चमत्कार हर दिन होते हैं लेकिन हम शायद ही ध्यान देते हैं

मैं आपको अनुग्रह की दो कहानियाँ बताना चाहता हूँ, अद्भुत अनुग्रह की घटनाएं, जो वास्तव में मेरी ज़रूरत के समय, मेरे मांगने पर घटित हुई थी। मुझे लगता है कि अनुग्रह के ये अनुभव चमत्कार पूर्ण थे, और इससे पहले कि मैं इन्हें आपके साथ साझा करूं, मैं चमत्कारों पर थोड़ा चिंतन करना चाहता हूं।

लोग आपको बताएंगे कि चमत्कार मांगने पर नहीं आते… और वे सही हैं। मांगने पर चमत्कार नहीं आते। परन्तु येशु हमें माँगने के लिए कहते हैं, और प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि हम माँगें, तो हमें मिलेगा (मत्ती 7:7)। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब हम माँगते हैं, तो ईश्वर हमारी सुनता है और जिस बात की हमें वास्तव में ज़रूरत होती है, ईश्वर हमें वही देता है।

हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि चमत्कार एक ऐसा रहस्य है, जो मानवीय समझ से परे है। हमें रहस्यों की कुछ झलक मिल सकती है, हमारे पास अंतर्ज्ञान हो सकता है, लेकिन हम “चमत्कार” के रूप में प्रकट ईश्वर की कृपा के कार्यों को पूरी तरह से समझ नहीं पायेंगे या व्याख्या नहीं कर पायेंगे।

मुझे कुछ नहीं मिला!

कई लोग इस धारणा का उपहास उड़ाते हैं कि “अगर हम मांगेंगे” तो हम “प्राप्त करेंगे।” कुछ लोग कहेंगे कि “मैंने माँगा और मुझे कुछ नहीं मिला”। यह चमत्कार के रहस्य को और अधिक बढाता है। येशु चमत्कार करनेवाला व्यक्ति था, परन्तु उसने इस्राएल के सभी लोगों को चंगा नहीं किया। लूर्द्स में लाखों लोग जाते हैं, लेकिन कुछ ही चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया जाता है। क्या हम कह सकते हैं कि लोग “सही” बात के लिए नहीं मांगते हैं या जिस बात के लिए वे मांग रखते हैं उसकी उन्हें वास्तव में ज़रूरत नहीं है? नहीं! दिल को सिर्फ ईश्वर पढ़ता है; हम न्याय नहीं कर सकते।

लेकिन मेरा अनुभव और कई अन्य लोगों का भी अनुभव इस बात की पुष्टि करता है कि येशु का यह कथन बिलकुल सही है, जब उसने हमें अपने पिता परमेश्वर से उत्तर मांगने और उत्तर की अपेक्षा करने के लिए कहा था। इसलिए, मैं चमत्कारों में विश्वास करता हूं। यह केवल ईश्वर की कृपा की अभिव्यक्ति हैं- कभी नाटकीय अंदाज में और कभी-कभी इस तरह के किसी अंदाज के बिना; कभी-कभी इतना स्पष्ट कि कोई भी उन्हें पहचान सकता है; और कभी-कभी इतना सूक्ष्म और “संयोग” के रूप में वह प्रच्छन्न होता है कि केवल विश्वास की आंखें उन्हें अनुभव कर सकती हैं।

चमत्कारों की अपेक्षा करनी चाहिए… जैसे बच्चे अपेक्षा करते हैं कि भूख लगने पर उनकी माताएँ उन्हें खिलाएँगी। लेकिन क्या खाएं क्या न खाएं इस पर बच्चों का नियत्रण नहीं रहता। माँ तय करती है कि बच्चे क्या खायेंगे; नहीं तो बच्चे हर रात नूडल्स  और पिज़्ज़ा खायेंगे। मां लोग अपने बच्चों को खाना खिलाते कभी थकती नहीं हैं। इसी तरह ईश्वर के साथ भी है। वह हमारे अनुरोधों से कभी नहीं थकता और हमारी माताओं की तरह वह हमें वही देता है जिसकी हमें ज़रुरत होती है, न कि वह जंक फूड जिसकी हम चाहत रखते हैं।

चमत्कार ईश्वर का किया गया कोई जादू नहीं है, जिस पर हम डींग मारें, “देखो ईश्वर ने मेरे लिए क्या किया!” परमेश्वर के चमत्कार हमारे दिलों की गहरी लालसाओं का जवाब हैं जो हमें हमेशा उस पर भरोसा करने की याद दिलाते हैं। जब परमेश्वर हमें चमत्कार देता है, तो वह उसका उपयोग उस अनुग्रह की ओर इंगित करने के लिए करता है जो जीवन के सामान्य क्षणों में हमारे चारों ओर विद्यमान है – प्रत्येक दिन का सूर्योदय, क्षमा की याचना करते हुए बढ़ा हुआ कोई हाथ, माफ़ी का आलिंगन, निस्वार्थ सेवा का कोई कार्य। अगर हम जीवन के उन साधारण चमत्कारों को पहचानते हैं तभी हम असाधारण चमत्कारों को देखने और पहचानने की उम्मीद कर सकते हैं।

चमत्कार विश्वास का निर्माण करते हैं, वे इसे प्रतिस्थापित नहीं करते हैं। जब हम लगातार चमत्कार देख रहे हैं, तो हमें ज्यादा विश्वास की जरूरत नहीं है। लेकिन जब ईश्वर मौन रहता है और साफ तौर पर दिख रहे उसके आशीर्वाद से हम वंचित रह जाते हैं, तो हमारे पास अपने विश्वास को और अधिक गहराई से जीने का अवसर होता है। इसलिए विश्वास में परिपक्व होने के समय की अपेक्षा, विश्वास में नए होने पर, हम अधिक चमत्कार देख सकते हैं।

कहानी – एक  

सालों पहले, मैं और मेरी पत्नी नैन्सी एक बड़े कैथलिक शहरी विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन सेवा संस्थान में पढ़ाते थे। प्रत्येक गर्मी में हम नृत्य नाटिका का मंचन किया करते थे, जिस केलिए हम छह सप्ताह के ग्रीष्मकालीन सेवा के दौरान आलेख,गीत लिखकर और निर्देशन देकर अभ्यास कराते थे। हमारे कलाकार संस्थान के ही छात्र थे, जो पूरे देश और दुनिया भर से आते थे। इस तरह पांच साल गतिशील और रोमांचक कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के बाद हम दोनों संस्थान के छात्रों और शिक्षकों के बीच समान रूप से प्रसिद्ध हुए और उनसे बहुत सम्मान और आदर के पात्र बने थे। हमने दुनिया भर में सेवाकार्य करने वाले पेशेवर कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने के इस अद्भुत अवसर को संजोया, क्योंकि उन्होंने हमसे सीखा कि कैसे सेवकाई और अध्यापन के लिए नृत्य और नाटक की कलाओं को एक शक्तिशाली संसाधन के रूप में उपयोग करना है।

लेकिन हमारी छठी गर्मियों से पहले हमें बताया गया था कि हम अपने ग्रीष्मकालीन कला प्रदर्शन को अब और निर्देशित नहीं करेंगे और इसके बजाय हमें एक पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए निमंत्रण दिया गया। हमने स्वीकार किया, और अपनी कक्षा को पढ़ाया, आराधना विधि को कलात्मक रूप से आयोजित करने में हमने योगदान दिया, और जितना हो सके हर जगह अपनी सेवा द्वारा उपस्थित रहने की कोशिश की, लेकिन यह पहले के पांच वर्षों जैसा नहीं था। पिछले पांच गर्मियों में से प्रत्येक में किए गए सारे काम, आपसी प्रेमपूर्ण संवाद, रचनात्मकता और अद्वितीय योगदान से हम चूक गए।

एक दिन पूरे परिसर में टहलते हुए, अपनी घटती भूमिका के बारे में सोचकर मैंने पीड़ा का अनुभव किया। मैंने उस विश्वविद्यालय के एक भवन में दक्षिण छोर से प्रवेश किया और प्रभु से विलाप करते हुए कहा कि मुझे कुछ सबूत चाहिए कि हमारी उपस्थिति मायने रखती है या नहीं, कि हमने इस संस्थान पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है या नहीं। मैं भवन के प्रांगण से गुजरा और जब तक मैं भवन के उत्तरी दिशा से बाहर निकला तब तक मेरी प्रार्थना का उत्तर मुझे दिया गया। सीढ़ियों के एक लम्बी कतार के शीर्ष पर खड़े होकर मैंने देखा कि एक कार अचानक नीचे सड़क पर रुक गई। कार का इंजन चालू था, लेकिन एक महिला ने कार से बाहर निकलकर मेरा नाम पुकारा।

“ओह, ग्राज़”, वह बोली, “मैं आपको देखकर बहुत खुश हूं। मैं आपको बताना चाहती थी कि मुझे कितनी खुशी है कि आप यहां संस्थान में हैं। आप और नैन्सी इतना प्रभाव डालते हैं कि आपके बिना यहाँ का ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम अधूरा है। आपने जो कुछ किया उन सबके लिए धन्यवाद।” इतना कहकर वह वापस अपनी कार में बैठी और चल दी। मैंने सोचा,”वाह, प्रभु, इतनी तेजी से तू ने जवाब दिया!”

कहानी – दो  

उस घटना के बाद एक दर्जन साल आगे की ओर बढ़ते हैं। मैं शिकागो महाधर्मप्रांत के एक कार्यालय का निदेशक हूँ। मैं एक कठिन सप्ताह से गुज़र रहा हूं, निराश महसूस कर रहा हूं, मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि क्या मैं वही कर रहा हूं जो ईश्वर मुझसे चाहता है? मैं अपने कार्यालय भवन की रसोई में हूं, अपने दोपहर के भोजन के बाद टिफ़िन बॉक्स धो रहा हूं और मैं प्रार्थना करता हूं, “हे ईश्वर, तू मुझे छोटे छोटे संकेत दिया करता था कि तू मेरी देखभाल कर रहा था, कि मैं तेरी इच्छा के अनुसार कार्य कर रहा था … अब ऐसे ही एक संकेत की मुझे ज़रुरत है।”

अगली सुबह।  मैं अभी भी निराश हूँ, मैं काम छोड़ने का फैसला करता हूं। गर्मी का मौसम है, बच्चे स्कूल से बाहर हैं, इसलिए मैं घोषणा करता हूँ: “सुनो, तुम्हारा पापा आज काम पर न जाकर, मस्ती करेगा। ‘शिकागो कब खेल’ में कौन जाना चाहता है?” मुझे यह भी नहीं पता था कि ‘शिकागो कब’ शहर में हैं या नहीं, लेकिन जांच करने के बाद पता चला कि खेल उपलब्ध है, और हम सभी चले जाते हैं।

हम बच्चों को टिकट के लिए पहले प्रवेश द्वार के बगल में लाइन में खड़े होने केलिए छोड़ देते हैं और गाडी पार्क करने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। वृग्ली मैदान में पार्किंग हमेशा बड़ी चुनौती का काम होता है। या तो आप बहुत दूर पार्क करते हैं, लेकिन आपको बहुत दूर पैदल चलना पडेगा,  नहीं तो आप पार्किंग में मोटी रकम देकर भुगतान करते हैं। कोई भी विकल्प हमारे लिए व्यावहारिक नहीं है – लंबी देर पैदल चलने के लिए हमारे पास समय नहीं है और पार्किंग शुल्क की मोटी रकम का भुगतान करने से मेरा बजट चरमरा जाएगा। मैं सड़क किनारे, भुगतान किये बिना, पार्किंग की तलाश करने का विकल्प ढूँढता हूं, जिसका सौभाग्य मेरे लिए करीब करीब असंभव है।

प्रवेश द्वार के सीधे सामने मीटर के आधार पर पार्किंग करने की एक जगह है। दो डॉलर का भुगतान करने पर मुझे अधिकतम दो घंटे पार्किंग का अवसर मिलेगा, जिसका मतलब है कि मुझे खेल को बीच में छोड़ना होगा, मीटर के अनुसार पैसा का भुगतान करना होगा, और खेल में वापस जाना होगा (मुझे यह भी नहीं पता था कि खेल के बीच में छोड़ने और लौटने की अनुमति नहीं रहती है)। जैसे ही मैं अपनी कार से बाहर निकलता हूं, मैं देखता हूं कि सड़क की विपरीत दिशा में एक महिला पार्किंग स्थल से बाहर निकलने के लिए तैयार हो रही है। उस तरफ कोई मीटर नहीं है! मैं उसके पास दौड़ता हूं, उस महिला को अपनी स्थिति समझाता हूं और पूछता हूं कि क्या वह मेरे बाहर निकलने तक इंतजार करेंगी, ताकि मैं उसकी जगह ले सकूं। वह खुशी से मुझे अनुमति देती है।

वाह, मुझे वृग्ली फील्ड के प्रवेश द्वार के सीधे सामने, सिर्फ एक मिनट की दूरी पर मुफ्त में स्ट्रीट पार्किंग का मौक़ा मिल गया  है। अविश्वसनीय! नैन्सी और मैं बच्चों के पास जाते हैं जहाँ और भी बड़ा आश्चर्य हमारा इंतज़ार कर रहा है। हमारी बेटी उत्साह से पुकारती है, “पापा,” वह कहती है, “हमें मुफ्त में टिकट मिल गया।”

“क्या?” अविश्वास और हैरानी के साथ मैं पूछता हूं।

वह हमें समझाती है: “एक आदमी ने मुझसे और क्रिस्टोफर से पूछा कि क्या तुम लोग खेल में जा रहे हो। मैंने कहा, हाँ; और उस आदमी ने कहा कि वे यहाँ एक बड़े दल के साथ आये थे और उनके दल के कुछ लोग नहीं पहुँच पाए, इसलिए उन्होंने मुझे दो टिकट दिए। फिर मैंने कहा, ‘मेरी माँ और पिताजी को टिकट कैसे मिलेंगे?’

‘ओह, तुम्हारे माता-पिता भी यहाँ हैं? ये लो, और दो टिकट, पकड़ो।”

वाह, अविश्वसनीय! खेल के लिए मुफ्त पार्किंग और मुफ्त टिकट! ईश्वर ने मुझे संकेत दिया जिसे पिछले दिन मैंने माँगा था।

तथ्यपरक विशलेषण करते हुए, आप कहेंगे कि मुझे केवल एक बार थोड़ा सा पुष्टिकरण मिला था और अगली बार मुझे कुछ मुफ्त उपहार मिला होगा। हालाँकि, सच्चाई यह है कि ईश्वर ने कृपापूर्वक मुझे वही प्रदान किया जिसकी मुझे आवश्यकता थी, और मैं ने इसकी मांग की थी, और वही चमत्कार है।

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Graziano Marcheschi

Graziano Marcheschi serves as the Senior Programming Consultant for Shalom World. He speaks nationally and internationally on topics of liturgy and the arts, scripture, spirituality, and lay ecclesial ministry. Graziano and his wife Nancy are blessed with two daughters, a son, and three grandchildren and live in Chicago.

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