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फरवरी 20, 2024 87 0 डीकन जिम मैकफैडेन
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आप जो कुछ भी हैं, उससे कहीं अधिक हैं

बहुत धनी, सर्व-ज्ञानी, अति-सम्मानित और आदरणीय, शक्तिशाली असरदार व्यक्ति … सूची अंतहीन है, लेकिन आप कौन हैं, इस सवाल की बात जब आती है तो ये सब विशेषण मायने नहीं रखते।

60 के दशक की शुरुआत के दौर में, द बर्ड्स नामक लोक-रॉक समूह का एक प्रचलित और लोकप्रिय गाना था: टर्न! टर्न! टर्न! इसे बाइबिल के उपदेशक ग्रन्थ के तीसरे अध्याय से रूपांतरित किया गया था। मुझे यह गाना बहुत पसंद आया। इसने मुझे पूरा उपदेशक ग्रन्थ को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जो मुझे बहुत अजीब लगा। यह इसलिए अजीब था क्योंकि, गाने के बोलों के विपरीत, मेरे लिए ग्रन्थ का बाकी हिस्सा, खासकर पहला अध्याय, मानवीय स्थिति का एक अविश्वसनीय वर्णन था।

उपदेशक ग्रन्थ के लेखक कोहेलेथ, अपने आप को बूढ़ा व्यक्ति कहता है जिसने जीवन में भौतिक वस्तुओं का यह सब सुख देखा है, यह सब किया है, और यह सब अनुभव किया है। उसने जीवन की हर चीज का सुख भोगा है: वह बहुत धनी है, उसने बहुत ज्ञान संचित किया है, अपने साथियों द्वारा अच्छी तरह से सम्मानित है, जीवन को सही दिशा में संचालित करने का सामर्थ्य है, और मूल रूप से उसके रास्ते में आ चुके हर सुख को भोगा है। लेकिन, यह सब देखते हुए, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

क्यों नहीं? मुझे लगता है कि उसने गहराई से महसूस किया है कि आपके पास क्या है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि आप कौन हैं। ऐसा क्यों? इसका कारण अपेक्षाकृत सीधा और सरल है – दुनिया की चीजें हमेशा हाथ से निकल जाती हैं और  गायब हो जाती हैं क्योंकि वे क्षणभंगुर, अस्थाई, सीमित और अल्पकालिक हैं।

इससे पहले कि आप का जीवन आपसे ले लिया जाएं

हम कौन हैं यह हमारे नैतिक और आध्यात्मिक चरित्र का मामला है, हमारी आत्मा का मामला है। उत्पत्ति ग्रन्थ  के शुरुआती अध्यायों में, हमें पता चलता है कि हम ईश्वर के प्रतिरूप और सादृश्य में बनाए गए हैं, जो हमें ईश्वर के असली अस्तित्व और अनंतता में भाग लेने के लिए तैयार करता है। सीधे शब्दों में कहें तो, हम ईश्वर के साथ अपने रिश्ते में वही हैं जो हम हैं, न कि हमारे पास क्या है। हम मूल रूप से आध्यात्मिक और धार्मिक प्राणी हैं।

सुसमाचार में धनी मूर्ख के दृष्टांत में, येशु उपरोक्त सत्य से मिलती जुलती बात कहते हैं, लेकिन इससे बढ़कर  कहीं आगे जाते हैं। येशु प्रभावी रूप से उस व्यक्ति का मजाक उड़ाते हैं जो अपना पूरा भरोसा अपनी संपत्ति और सुरक्षा के प्रति रखता है, इस गलत धारणा में कि उसकी संपत्ति उसे आनंद देगी। वह व्यक्ति न केवल धनी है, बल्कि उसकी संपत्ति में नाटकीय रूप से वृद्धि होने वाली है क्योंकि उसकी फसल अच्छी हुई है। तो, वह क्या करता है? वह अपने पुराने खलिहानों को गिराने और अपने अतिरिक्त दौलत को संग्रहीत करने के लिए बड़े खलिहान बनाने का संकल्प लेता है।  उस मनुष्य ने अपने जीवन को कई बातों पर आधारित किया है: (1) दुनिया की चीज़ें मूल्यवान हैं; (2) कई साल वह ऐसी जीवनशैली जियेगा जो उसकी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने में काम आएगी; (3) उसका धन शांति और उन्मुक्त असीमित आनंद की भावना को बढ़ावा देगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, उसके पास किसी बात की कमी नहीं है।

इसके विपरीत, हे मूर्ख! कहकर परमेश्वर ने उससे जो वचन कहा, वह उसकी योजनाओं को निरर्थक कर देता है: “हे मूर्ख, इसी रात प्राण तुझ से ले लिए जायेंगे, और तू ने जो इकट्ठा किया है, वह अब किस का होगा?” (लूकस  12:20) येशु उसे बता रहे हैं कि परमेश्वर उसकी सम्पत्ति नहीं, बल्कि उसका जीवन माँग रहा है—वह कौन है! और यह माँग दूर के भविष्य में नहीं, बल्कि यहीं, अभी की जा रही है।

इस रात, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा हृदय, तुम्हारा जीवन तुमसे माँग लिया जाएगा। “इसलिए,” येशु कहते हैं, “यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हैं।” (लूकस 12:21) ‘जीवन में सुख’ के बजाय, अर्थात्, संसार की वस्तुओं के संचय के बजाय, येशु उसे अपना जीवन समर्पित करने का प्रस्ताव देते हैं। “ईश्वर के राज्य की खोज में लगे रहो, ये सब चीज़ें भी तुम्हें यों ही मिल जाएँगी।” (लूकस 12:31)

अंततः वास्तविक

प्रिय पाठक, यह मुख्य बिंदु है – एक मौलिक या तो यह या वह विकल्प: क्या मेरी नज़र ईश्वर पर है या दुनिया की वस्तुओं पर? यदि पहला, तो हम मानव होने की अपनी सच्ची गरिमा को जीएँगे। हम ईश्वर को अपने पूरे दिल और आत्मा से प्यार करेंगे और अपने पड़ोसी को अपने जैसा ही प्यार करेंगे, क्योंकि हमारी नीव अंततः जो वास्तविक है, उसमें निर्मित है । हम ईश्वर, अपने पड़ोसी और पूरी सृष्टि के साथ सही रिश्ते में होंगे।

दुनिया की वस्तुओं से जुड़े रहना संभवतः दिल की इच्छा को संतुष्ट नहीं कर सकता, क्योंकि वे हमें प्यार नहीं कर सकते, और प्यार पाना ही आत्मा की मूल इच्छा है। इसके बजाय, दुनिया की वस्तुओं से प्यार पाने का  जुनून और लत अधिक भूख का कारण बनती है और चिंता की अत्यधिक बढ़ी हुई भावना को जन्म देती है। सीधे शब्दों में कहें तो, अगर हम अपने जीवन में पवित्र और पारलौकिक को अस्वीकार करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से अपने अस्तित्व के प्रति भय, अपने साथी मनुष्यों से खालीपन और अलगाव की भावना, गहरे अकेलेपन तथा अपराधबोध का अनुभव करेंगे।

इसका अंत इस तरह नहीं होना चाहिए। येशु हमें इस बात पर यथार्थवादी नज़र डालने के लिए आमंत्रित करते हैं कि कैसे धन हमारे दिलों को गुलाम बना सकता है, और हमें उस जगह से विचलित कर सकता है जहाँ हमारा सच्चा खजाना है, जिसकी पूर्ती स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य के रूप में होती है। इसी तरह, संत पौलुस ने कलोसियों  को लिखे अपने पत्र में हमें याद दिलाया कि “आप पृ्थ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिंता किया करें” (3:1-2)। 

इसलिए, हमारे लिए यह जाँचना ज़रूरी है कि हम वास्तव में किससे प्यार करते हैं। सुसमाचार के अनुसार जिया गया प्रेम सच्ची खुशी का स्रोत है, जबकि भौतिक वस्तुओं और धन की अतिरंजित और बिना किसी प्रतिफल की खोज अक्सर बेचैनी, चिंता, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार, हेरफेर और वर्चस्व का कारण बन जाता है।

उपदेशक ग्रन्थ, लूकस के सुसमाचार और पौलुस के पत्र से प्राप्त सभी पाठ इस प्रश्न की ओर संकेत करते हैं: ‘मैं कौन हूँ?’, आप कौन है यह आपके पास जो है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जो बात मायने रखती है वह यह है कि आप ईश्वर की प्रिय संतान हैं, जिन्हें अंततः ईश्वर के प्रेम में विश्राम करने के लिए बनाया गया है।

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डीकन जिम मैकफैडेन

डीकन जिम मैकफैडेन कैलिफोर्निया के फॉल्सम में संत जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वह ईशशास्त्र के शिक्षक हैं और वयस्क विश्वास निर्माण और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करते हैं।

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