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जनवरी 20, 2022 273 0 Ellen Hogarty, USA
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क्या बड़े सपने देखने में कोई अदृश्य खतरा है? यदि फिलहाल के मूक, सूक्ष्म और वीर कर्तव्य हमसे चूक नहीं जाते हैं, तो कोई खतरा नहीं।

 अक्सर हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा उसके बहुत ही सामान्य स्वभाव के कारण हमारी नज़रों से ओझल रहती है। मुझे इस सच्चाई का अनुभव कुछ हफ्ते पहले फिर से हुआ।

पिछले साल जब मेरी बुजुर्ग माँ मेरे साथ रहने लगी, तब उनकी प्राथमिक ज़रूरतों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी मैं संभालने लगी, तब यह स्पष्ट हो गया कि माँ अब अपने बलबूते जीने में असमर्थ हैं। वह न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावुकता के मामले में भी नाजुक है। उसकी दिनचर्या में कोई भी बदलाव उसे भावनात्मक रूप से परेशान कर सकता है।

मेरे साथ आकर रहने केलिए उन्हें अपने राज्य से दूसरे राज्य आकर रहना पडा, इसलिए उन्हें मेरे घर के नए माहौल को अपनाने में कुछ हफ्ते लग गए। कुछ महीनों बाद परिस्थितियां ऐसी बदल गई की हमें एक नए घर में स्थानांतरित होना पड़ा। माँ को यह बताने में मुझे बड़ा डर सताने लगा, क्योंकि मैं जानती थी कि इससे माँ को फिर से नए स्थान से उखाड़े जाने की चिंता और दुविधा होगी। मैं माँ को यह सूचना देने के कार्य को टालती रही, जितने दिन मैं उसे टाल सकती थी, लेकिन अन्ततोगत्वा मुझे उन्हें बताना ही पड़ा।

लेकिन हमारी उम्मीद से बिलकुल उलटा, माँ ने यह खबर पाकर बड़ा ऊधम मचाया। वह रोने लगी, डरने लगी, और बहुत ज्यादा चिंतित रहने लगी। उन्हें दूसरी चीज़ों पर मन लगाने के लिए और खुश रखने केलिए मैं ने अपने पुराने सारे हथकंडे अपनाए, लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आया। घर बदलने के कुछ दिन पूर्व, मैं माँ को नए घर दिखाने ले गई। उन्हें वह घर पसंद आया, फिर भी बदलाव को लेकर चिंतित रहने लगी।

नयी जगह देखकर लौटने के बाद मुझे लगा कि माँ की इच्छा के अनुरूप उस दिन के बाकी घंटे भी मुझे उन्हीं के साथ बिताना होगा। वह टी.वी. में फिल्म देखना पसंद करती है, लेकिन फिल्म के मामले में हम दोनों की रूचि अलग अलग है, इसलिए अक्सर मैं किसी एक चैनल को चालू करके छोड़ देती हूँ ताकि माँ अकेले बैठकर उसे देख लें। लेकिन इस बार मैं जान बूझकर उनके साथ फिल्म देखने की इच्छा लेकर उनके बगल में बैठ गई, यह जानते हुए कि इससे इस अफरातफरी के बीच में उन्हें कुछ तसल्ली मिलेगी।

फिल्म तो मुझे बेकार और उबाऊ लगी, लेकिन मुझे पता था कि माँ के बगल में मेरी शारीरिक रूप से उपस्थिति के कारण माँ को हिम्मत और भरोसा प्राप्त हो रहे थे। मुझे बहुत सारे अन्य कार्य निपटाने थे और मैं उन सारे कामों को कर लेती, लेकिन मैं अपने दिल में महसूस कर रही थी कि मेरी माँ के बगल में बैठना ही मेरे लिए इस समय ईश्वर की योजना थी। इसलिए मैं ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करने और प्रार्थाना के द्वारा इसे ईश्वर को अर्पित करने का प्रयास करने लगी। मैं ने उन सारे लोगों के लिए प्रार्थना की, जो अपने जीवन में ईश्वर की योजना को ढूँढने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जो अकेलापन या तिरस्कार का अनुभव कर रहे थे, जिन्होंने ईश्वर के प्रेम को अब तक अनुभव नहीं किया था, हमारी दुनिया में दुःख पीड़ा भोगने वाले, ऐसे उन तमाम लोगों के लिए भी मैं प्रार्थना करने लगी। जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ रही थी, बेसब्र और चिंतित होने के बजाय मैं शांत और प्रसन्न थी, क्योंकि मुझे पता था कि फिलवक्त मेरे लिए ईश्वर की योजना के ह्रदय में मैं थी।

बाद में इस बात पर मनन करते हुए मैं ने अनुभव किया कि हमारे आसपास के बहुत सारे मामूली कार्यों की आकृति में इश्वर की इच्छा छिपी हुई है। मैडोना हाउस की संस्थापिका और प्रभु की दासी धन्य कैथरीन डोहर्टी ने इसे “फिलहाल का कर्त्तव्य” नाम दिया है। उन्होंने कहा: “मेरे सम्पूर्ण बचपन और जवानी की आरंभ की दशा में मैं इस बात से प्रेरित थी कि फिलहाल का कर्त्तव्य ही मेरा कर्त्तव्य है जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। बाद में भी मैं यही विशवास करती थी कि ईश्वर द्वारा दिया हुआ ‘फिलहाल का कर्त्तव्य’ ही मेरा कर्त्तव्य है। फिलहाल के कर्त्तव्य के द्वारा ईश्वर हमसे बात करता है। चूँकि फिलवक्त का यह कर्त्तव्य ही परमपिता ईश्वर की इच्छा है, इसलिए हमें अपना सर्वस्व इस केलिए दे देना चाहिए। जब हम फिलवक्त का कर्त्तव्य पूरा कर लेते हैं, तब हमें निश्चिंत होना चाहिए कि हम सत्य में जी रहे हैं, और इसलिए हम प्रेम में जी रहे हैं और इसलिए प्रभु ख्रीस्त में …… (“ग्रेस इन एवेरी सीजन, मैडोना हॉउस प्रकाशन, 2001)।

जैसे मैं ने अपने अतिव्यस्त कार्यों की सूचि को नज़रंदाज़ करके अपनी माँ के सबसे प्रिय कार्य को उसके साथ बैठकर किया, तो इसके द्वारा माँ को उस दिन तसल्ली मिली और उसे आश्वासन दिया गया। मुझे भी तसल्ली मिली कि प्रभु मेरे इस छोटी भेंट  से आनंदित है।

जैसे आप अपने नए दिन का और उस दिन के बहुत सारे कार्यों का सामना करने जा रहे हैं, चाहे वे कार्य कितने ही बोझिल, बोरियत से भरे और उबाऊ काम हो, एक निर्णय लीजिये कि आप अपने ह्रदय को ईश्वर के साथ जोड़ेंगे और उस कार्य को, उस दिन किसी प्रकार की बड़ी ज़रूरत में पड़े व्यक्ति केलिए अर्पित करेंगे। उसके बाद जिस फिलवक्त कार्य के लिए आप बुलाये गए हैं उसी कार्य को कीजिये, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हमारे प्रतिदिन के साधारण कार्यों को ले कर उन्हें कृपाओं की असामान्य स्रोत में, और दुनिया के परिवर्तन के लिए बदलने की क्षमता ईश्वर रखता है।

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Ellen Hogarty

Ellen Hogarty एक आध्यात्मिक निर्देशिका, लेखिका और लॉर्ड्स रैंच संस्था में पूर्णकालिक मिशनरी के रूप में कार्यरत हैं। गरीब जनों के प्रति इनके कार्यों के बारे में और जानने के लिए thelordsranchcommunity.com पर जाएं।

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